जो आज के समय की सबसे कॉमन बीमारी हैं। इसके बाद किडनी, हार्ट और ब्रेन के मरीज इस वायरस के आगे हथियार डाल रहे हैं। यानी की अगर हम किसी अन्य बीमारी से ग्रसित हैं और लापरवाही बरत रहे हैं तो इसका मतलब है कि हमें जिंदगी से प्यार नहीं है।
29 मई को प्रदेश में कोरोना से पहली मौत हुई, उसके बाद से 22 नवंबर तक 2,732 जानें चली गईं। उधर, पत्रिका के 13 से 19 नवंबर के बीच हुई 125 लोगों की मौत की डेथ ऑडिट रिपोर्ट मौजूद है। इसके मुताबिक 46 मौतों की वजह सिर्फ और सिर्फ कोरोना रहा। रिपोर्ट में कुछ और बातें पूरा तरह से स्पष्ट की गई हैं।
जैसे- मृतकों में 94 पुरुष हैं और 31 महिलाएं। यानी त्यौहार की खरीदारी करने के लिए पुरुष बाजारों में निकले, संक्रमित हुए और एकाएक आईसीयू में पहुंचे और जान गंवां बैठे। इसलिए कुछ दिनों के लिए खुद को फिर से घरों में कैद करना जरूरी है।
31 प्रतिशत मौतें भर्ती होने के 24 घंटे के अंदर
रिपोर्ट से खुलासा हो रहा है कि कोडिव-19 हॉस्पिटल में भर्ती होने के 24 घंटे के अंदर-अंदर 31 प्रतिशत मरीज दमतोड़ तोड़ रहे हैं। यानी की इन मरीजों में लक्षण की पहचान में देरी हो रही है। फिर जांच में और अंत में अस्पताल शिफ्टिंग में लग रहा समय, सीधे मौत के घाट उतार दे रहा है।
3 स्तर पर हो रही चूक
पहला, मरीज के स्तर पर- मरीज को स्वयं यह देखना होगा कि उसे सर्दी, जुखाम, खांसी, बुखार, सांस लेने में तकलीफ, स्वाद न मिलना, गंध न मिलने जैसे लक्षण दिख रहे हैं तो समझ जाएं की ये कोरोना के ही लक्षण हैं। जो ये समझने में देरी कर रहे हैं या फिर नजरअंदाज कर रहे हैं।
दूसरा, परिजनों के स्तर पर- अगर, अपने घर के किसी भी सदस्य में कोरोना के लक्षण दिखें तो तत्काल उनका कोरोना टेस्ट करवाएं। जो कम देखने में मिल रहा है। नजदीकी मेडिकल से दवा लाकर दे रहे हैं। जो गलत है।
तीसरा, सरकारी सिस्टम के स्तर पर- ९ महीने में सिर्फ लॉकडाउन में सरकारी तंत्र नियमों का पालन करवा पाया, उसके बाद नहीं। सख्ती जरूरी है। स्वास्थ्य विभाग के मैदानी अमले को यह खबर होनी चाहिए कि किस घर में किसे क्या तकलीफ है? जांच सुनिश्चिच करवाई जाए। कोरोना जांच केंद्र में समय पर सैंपलिंग और फिर टेस्टिंग रिपोर्ट मिले। रिपोर्ट आने के अगले दिन क्यों, उसी दिन अस्पताल में शिफ्टिंग का व्यवस्था होनी चाहिए।
हमारी अपील है कि लक्षण दिखने पर तत्काल जांच करवाएं। ताकि पॉजिटिव आने पर इलाज शुरू हो सके। जितनी देरी होगी, उतना नुकसान होगा। बिल्कुल, देर से अस्पताल पहुंचना मौत की संख्या बढ़ रहा है।
-डॉ. सुभाष पांडेय, प्रवक्ता एवं संभागीय संयुक्त संचालक, स्वास्थ्य विभाग