scriptरेल डिवीजन के 52 साल पुराने वैगन शॉप का निजी हाथों में जाने का डर | 52-year-old wagon shop afraid of going into private hands | Patrika News
रायपुर

रेल डिवीजन के 52 साल पुराने वैगन शॉप का निजी हाथों में जाने का डर

पिछले दस वर्षों से नहीं बढ़े कर्मचारी, लोहार यूनिट भी बंद

रायपुरJul 05, 2020 / 07:13 pm

Devendra sahu

रेल डिवीजन के 52 साल पुराने वैगन शॉप का निजी हाथों में जाने का डर

रेल डिवीजन के 52 साल पुराने वैगन शॉप का निजी हाथों में जाने का डर,रेल डिवीजन के 52 साल पुराने वैगन शॉप का निजी हाथों में जाने का डर,रेल डिवीजन के 52 साल पुराने वैगन शॉप का निजी हाथों में जाने का डर

रायपुर. रेलवे ट्रैक पर निजी ट्रेनें दौडऩे के प्रस्ताव से रायपुर रेल डिवीजन में भी हलचल तेज हुई है। क्योंकि रेलवे बोर्ड ने जो ड्राप तैयार किया है, उसमें कोचिंग डिपो और वर्कशॉप भी सरकार के निजीकरण के निशाने पर हैं। मेक इन इंडिया के तहत उद्योग घरानों से निवेश को बढ़ावा देने का खाका तैयार किया जा चुका है। जानकारों का मानना है कि यदि एेसा हुआ तो रायपुर रेल डिवीजन का सबसे ५२ साल पुराना डब्ल्यूआरएस वैगन रिपेयर शॉप भी निजी हाथों में चलेगा। यह डर रेलवे यूनियन को ीाी सता रही है। लिहाजा, रेलवे यूनियन बड़ा आंदोलन खड़ा करने के प्लान में है।
मालगाड़ी के डैमेज वैगन को सुधारने का डब्ल्यूआरएस में सबसे बड़ा वर्कशॉप है। रेलवे के इस कारखाना में मालगाडि़यों के जो वैगन लोडिंग से खराब हो जाते हैं, उसका मरम्मत किया जाता है। जहां कई बड़ी मशीनें हैं और हर महीने 450 से 500 डैमेज वैगन दुरुस्त किए जाते हैं। चूंकि रेलवे की आय का सबसे बड़ा जरिया मालगाड़ी परिवहन है। इसलिए सबसे अधिक दबाब भी वैगन रिपेयर वर्कशॉप में रहता है। बताया जाता है कि वर्तमान में 70 प्रतिशत राजस्व भारतीय रेलवे को मालगाड़ी लदान से ही होता है। लेकिन, इस वैगन शॉप में पिछले 10 वर्षों से लगातार तकनीकी कर्मचारी कम होते गए और आज आउटसोर्सिंग के कगार पर पहुंच गया है।

भर्तियों पर पाबंदी
कारखाना सूत्रों के अनुसार अभी दो दिन पहले रेल मंत्रालय से एक पत्र जारी हुआ है। उसमें सेफ्टी कर्मचारियों की भर्ती के अलावा अन्य खाली पदों को भरने पर रोक लगा दी गई है। इससे पहले अक्टूबर 2019 की रिपोर्ट के अनुसार 1778 पदों में से 1609 पद भरे है। 170 पदों खाली हैं। रेलवे यूनियन के अनुसार वर्ष 2010 से हर साल 10 प्रतिशत पदों को समाप्त करके रेलवे निजी हाथों में देने के प्लान पर काम रहा है।

1968 में शुरू हुआ, बनते थे कई पाट्र्स
डब्ल्यूआरएस का रेलवे वर्कशॉप 550 एकड़ में फैला हुआ है, जो 1968 में शुरू हुआ था। यहां के कर्मचारी बताते हैं कि कई वर्षों तक मालगाड़ी में लगने वाले पार्ट वर्कशॉप में ही तैयार किए जाते थे। बाहर से खरीदने की नौबत नहीं आती थी। तब मेक इन इंडिया का ही बोलबाला था। लेकिन, सरकार की गलत नीतियों के चलते आज अधिकांश मालगाड़ी में उपयोग किए जाने वाले पार्ट बाहर से खरीदने पड़ते हैं, जिसे उन्नत तकनीक नाम दे दिया गया। उसकी आड़ में कारखाना में जिस लोहर यूनिट में तकनीकी कर्मचारी पाट्र्स ढालकर तेयार कर लेते थे, वह आज बंद हो चुकी है।

निजीकरण के प्रस्ताव से कर्मचारियों में डर का मौहाल है। वर्कशॉप में अधिकांश टेक्निकल कर्मचारी काम करते हैं। जो बच्चे ऑपरेंटिस करके निकल रहे हैं, वे क्या करेंगे। सरकार की गलत नीतियों के कारण कई यूनिटें बंद हुई हैं। यूनियन बड़े आंदोलन की तैयारी में है।
उदय यादव, सचिव मजदूर रेलवे यूनियन, वर्कशॉप
निजीकरण सरकार की पॉलसी है। इसलिए वर्कशॉप के बारे में कुछ नहीं कह सकते हैं। जहां तक यूनिटें बंद होने का सवाल है तो लोहार यूनिट को रि-कंस्ट्रक्शन कराया जा रहा है। भर्ती में सेफटी पदों को छोड़कर बाकी पदों पर जरूर रोक लगी हुई है।
प्रदीप काम्बले, मुख्य कारखाना प्रबंधक, डब्ल्यूआरएस
loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो