बस्तर की खास प्रजाति है रैली
रैली कोसा बस्तर की खास प्रजाति है। इस प्रजाति को उत्पादन के लिए साल का वन चाहिए होता है। मानवीय दखलंदाजी वाले इलाके में यह नहीं होता है। इधर साल के कम होते वन व कोसा तस्करी की वजह से बीते कुछ साल में इसका उत्पादन बेहद कम हो रहा था। जो उत्पादन हो भी रहा था वह बाजार की बाजए सीधे तस्करों के हाथ लग जा रहा था। इस मर्तबा ऐसी नौबत कम होने की वजह से रैली आदिवासी संग्राहकों के लिए बेहतर आमदनी का जरिया बन रही है।
यूूं बनता है कोसा सिल्क महीन धागा
साल व साजा के वनों में कोसा की तितलियों के लार्वा से बने कुकुन में अंडे को जंगलों से इक_ा किया जाता है। इनमें से अच्छे कुकुन को चुन कर उन्हें उबाला जाता है। उबालने के बाद इनसे रेशम का धागा निकाला जाता है। इस व्यवसाय से जुडे लोगों के अनुसार 7 से 8 कोकून से मिलाकर 1 पूरा लम्बा धागा तैयार होता है। इसके बाद धागे में रंग लगाया जाता है। सूखने के बाद धागे को लपेट कर एक गड्डी बनाई जाती है जिसके बाद इस धागे से साडिय़ों को तैयार किया जाता है। ग्रामीण प्राकृतिक रंगों से सिल्क को रंगते हैं। कोसा सिल्क की एक साड़ी को तैयार करने में 7 से 8 दिन लगते हैं।
जितनी होती है धुलाई उतना खिलता है रंग
बस्तर के साल वनों मे प्राकृतिक तौर पर उत्पादित होने वाली रैली कोसा से बने धागे मटमैले व धूसर रंग के होते हैं। इनसे बनाया गया धागा मजबूत होता है। इससे बनी साडिय़ां, कुर्ते व अन्य फेब्रिक की खासियत यह होती है कि जितनी बार इसकी धुलाई होती है इसका रंग चमकदार होता जाता है। इसके चलते इसकी राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय बाजार में इसकी बेहद मांग है।
इन बाजारों में बहुतायत से पहुंच रही फसल
बस्तर के 52 हाट बाजार में कोसा फल की आवक बहुतायत से हो रही है। इनमें दरभा, नानगुर, नेंगानार, तोकापाल, बकावंड, बस्तर, करपावंड, सोनारपाल सहित अन्य हाट बाजार में इनकी बिक्री हो रही है। राज्य रेशम विभाग के अनुसार इनके दाम एक रुपए से लेकर तीन रुपए तक अदा किए जा रहे हैं। यानि की इस मौसम में 12 से 15 करोड़ रुपए की आमदनी होगी।