परिजनों के अनुरोध पर ही भारत सरकार वंदे भारत प्रोजेक्ट चला रही है। अब तक 120 छात्रों की वापसी हो चुकी है। जिन्होंने लौटकर अपने परिजनों को बताया- ‘भारत में हालात बहुत अच्छे हैं। मगर, अभी 500 से अधिक छात्र फंसे हुए हैं, जिन्हें लाने की कवायद जारी है। रायपुर के कारोबारी राजेश अग्रवाल का बच्चा भी रूस में फंसा हुआ था। पत्रिका से बातचीत में उन्होंने बताया- मैंने कुछ परिजनों के साथ मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह से मुलाकात कर हालात की जानकारी दी।
इसके बाद भारतीय विदेश मंत्रालय से संपर्क किया गया। सभी के सहयोग से बच्चों की वापसी शुरू हुई है। जानकारी के मुताबिक रायपुर, बिलासपुर की तुलना में अंबिकापुर, बलरामपुर और सूरजपुर के ज्यादा छात्र हैं। कुछ अभिभावकों ने बताया कि रूस में लॉकडाउन जैसी स्थिति नहीं है। सबकुछ ओपन है। आप अपनी सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए कहीं भी आ-जा सकते हैं। यही खतरा बना हुआ है।
मानसिक रूप से बीमार हो रहे छात्र
रूस में फंसे छत्तीसगढ़ के अभिभावकों ने बताया कि बच्चे हॉस्टल में रहकर पढ़ाई करते हैं। अब एक हॉस्टल में चार बच्चे हैं, तीन चले गए और एक बचा है। वह अकेला है। इसके चलते मानसिक स्थिति पर प्रभाव पड़ रहा है। इसलिए सब लौटने को आतुर हैं।
एक छात्र की वापसी में 1 लाख का खर्च
जानकारी के मुताबिक वंदे भारत प्रोजेक्ट के तहत परिजनों को भारत सरकार को प्लेन के टिकट का भुगतान करना होता है। छात्र जब अपने राज्य में लौटते हैं तो उन्हें 14 दिन पैड क्वारंटाइन सेंटर (होटलों) में रहना होता है। इन सबका पूरा खर्च करीब एक लाख रुपए प्रति छात्र बैठ रहा है।
सीधी फ्लाइट न होने से कम आ रहे छत्तीसगढ़ के छात्र
छत्तीसगढ़ में रूस या किर्गिस्तान से सीधी फ्लाइट न होने की वजह से दिल्ली, नागपुर और भुवनेश्वर में लैंड होना पड़ता है और वहां से बस के जरिए छात्रों को लाया जाता है।
सावधानी बरतें छात्र और पालक
स्वास्थ्य विभाग उन सभी छात्रों से संपर्क कर रही है जो अब तक रूस और किर्गिस्तान से लौटे हैं। सभी से कहा गया है कि भले ही वे १४ दिन का क्वारंटाइन पीरियड पूरा कर चुके हों, मगर वायरस कभी भी दोबारा सक्रिय हो सकता है। इसलिए सावधानी बरतें।