सीबीआई के वरिष्ठ लोक अभियोजक बृजेश सिंह ने बताया कि स्टेट बैंक की शाखा महासमुंद में वर्ष 2011 में सात लोगों के नाम पर 1 करोड़ 70 लाख रुपए का लोन स्वीकृत किया गया था जिसमें 8 होम लोन और दो टर्म लोन था। आरोपी रामध्यान शर्मा, सुषमा शर्मा ने स्टेट बैंक के तत्कालीन मैनेजर अरुण मिंज से मिलीभगत कर दस लोगों के नाम पर ऋण स्वीकृत किया जिसके लिए फर्जी दस्तावेज तैयार कर बैंक को करोड़ों का चूना लगाया गया।
लोन स्वीकृति के बाद जब किश्त की राशि जमा नहीं हुई तो बैंक ने बकायादारों को नोटिस जारी किया। रामखिलावन यादव, राजू कुमार शर्मा, बीके शर्मा, तेजनाथ उर्फ भूपेन्द्र साहू, नकुल यादव. डमरु यादव सहित अन्य लोगों को जब नोटिस मिला तो वे हैरत में पड़ गए। सभी लोगों ने बैंक आकर बताया कि उन्होंने बैंक से कर्ज नहीं लिया है। उनके नाम पर गलत तरीके से कर्ज निकाला गया है। तब जाकर इस फर्जीवाड़ा का खुलासा हुआ।
बैंक में छानबीन की गई जिसके बाद बैंक की ओर से सीबीआई की भिलाई शाखा को शिकायत की गई। सीबीआई ने इस मामले की जांच पड़ताल के बाद 2012 में एफआईआर दर्ज कर कोर्ट में तीन चालान पेश किया। सीबीआई के विशेष न्यायाधीश पंकज कुमार जैन की अदालत में भ्रष्टाचार का यह मुकदमा चला, जहां अभियोजन मामले को संदेह से परे साबित करने में सफल रहा।
सीबीआई की विशेष अदालत ने पीसीएक्ट की धारा 13(2)(डी) सहपठित 13(1)(डी). धारा 420, 467, 468 के तहत बैंक मैनेजर सहित चार लोगों को दोषी पाया है। आरोपी मैनेजर अरुण मिंज को पांच साल कारावास 3.6 लाख जुर्माना, रामध्यान शर्मा को पांच साल 75 लाख रुपए जुर्माना, बैंक के अस्थायी कर्मचारी सहदेव ध्रुव को तीन साल कारावास 24 हजार जुर्माना और सुषमा शर्मा को तीन साल कारावास 15 हजार जुर्माना की सजा सुनाई गई है।