अग्निहोत्री का कहना है, उच्च न्यायालय के आदेश के बाद राज्य सरकार पर यह बाध्यकारी हो गया था, 2004 से 2019 तक कंडिका 5 के आधार पर हुई पदोन्नतियों और उनसे मिली वरिष्ठता को रिवर्ट कर दिया जाए। सरकार ने ऐसा नहीं किया। अक्टूबर 2019 में एक नया नियम बनाया। न्यायालय ने जैसा कहा था वह न करके एससी वर्ग का आरक्षण 12 उस पर भी दिसम्बर से न्यायालय का स्थगन है। सामान्य प्रशासन विभाग ने फिर से पदोन्नति देना शुरू कर दिया है। यह न्यायालय के आदेश के खिलाफ है। अग्निहोत्री ने कहा, हमने अधिवक्ता के जरिए नोटिस भेजा है। एक सप्ताह में न्यायालय के आदेश को ठीक ढंग से लागू नहीं किया गया तो हम न्यायालय की अवमानना का मामला लेकर कोर्ट जाएंगे। संवैधानिक मामलों के जानकार और कभी सर्व आदिवासी समाज के सलाहकार रहे बीके मनीष बताते हैं, पदोन्नति में आरक्षण का मामला राजनीतिक और प्रशासनिक दोनों नजरिए से बेहद गंभीर है। 2003 से 2019 तक रोस्टर बिंदुओं पर की गई हजारों एससी-एसटी कर्मचारियों की पदोन्नति एक साथ पलट जाने की तलवार लटकी हुई है। अब तक दर्जनों बार विधायकों, मंत्रियों और कर्मचारी संगठनों ने मुख्यमंत्री से मिल कर इस पर चर्चा की है लेकिन कोई सुधारात्मक कदम नहीं उठाया गया है। आज तक राज्य शासन ने यह साफ़ नहीं किया है कि वह अक्टूबर 2019 में अधिसूचित नए नियम क्र.5 को वैध मानता है या नहीं। कई प्रतिनिधियों ने कर्नाटक की तर्ज पर लोक सेवा में एससी-एसटी के प्रतिनिधित्व के आंकड़े जमा करने के लिए एक समिति गठन की मांग भी मुख्यमंत्री से मिल कर पेश की है। यह साफ़ नहीं है कि ऐसी समिति की रिपोर्ट के आधार पर अक्टूबर 2019 का नियम क्र.5 वैध ठहराने के लिए उच्च न्यायालय में बहस की जाएगी या कि पुरानी गलती को मानते हुए नया नियम बनाया जाएगा। सामान्य प्रशासन विभाग ने पूरे मामले पर चुप्पी साध ली है। सामान्य प्रशासन विभाग के सचिव कमलप्रीत सिंह से बात करने की कोशिश हुई, लेकिन उन्होंने फोन नहीं उठाया। अब स्थिति कुछ भी हो लेकिन ताजा स्थिति में एससी एसटी समुदाय के 80 हजार से अधिक कर्मचारियों – अधिकारियों की पदोन्नति पर बड़ा खतरा पैदा हो गया है।
क्या कहा था उच्च न्यायालय ने
बीके मनीष के मुताबिक, 4 फरवरी 2019 के फैसले में उच्च न्यायालय ने छत्तीसगढ़ लोक सेवा पदोन्नति नियम 2003 की कंडिका 5 को खत्म कर दिया था। राज्य सरकार को सर्वोच्च न्यायालय के एम नागराज फैसले में दिए फ्रेमवर्क के आधार पर नया नियम बनाने की छूट दी गई। जीएडी ने ऐसा न करके एससी वर्ग का आरक्षण 12 की जगह 13 प्रतिशत करके नया नियम जारी कर दिया।
यह है नागराज फैसले का फ्रेमवर्क
बीके मनीष बताते हैं, एम. नागराज फ़ैसले में पदोन्नति में आरक्षण देने के लिए छ्ह पूर्व-शर्तें निर्धारित हुई थीं। पहली अजा -अजजा का पिछड़ापन दिखाने के लिए मात्रात्मक आंकड़े जुटाने होंगे। दूसरी, संवर्ग विशेष में अजा-अजजा के अपर्याप्त प्रतिनिधित्व पर मात्रात्मक आंकड़े जुटाने होंगे। तीसरी, संवर्ग विशेष में पदोन्नति में आरक्षण से प्रशासन की कुशलता अप्रभावित रहने की घोषणा करनी होगी। चौथी, पदोन्नति में आरक्षण की उच्च सीमा 50 प्रतिशत से कम रखना होगा। पांचवी, अजा-अजजा वर्गों से क्रीमी लेयर को विलग करना होगा और छठवी शर्त है, बैकलाग अनिश्चित काल तक विस्तारित न करने की घोषणा करनी होगी।