रायपुर

आधार कार्ड न होने पर जिंदा महिला को बता दिया मरा हुआ, एेसे खुला मौत पर से राज

महिला को आधारकार्ड न होने पर मृत घोषित किए जाने का सनसनीखेज मामला सामने आया है।

रायपुरMar 20, 2018 / 01:53 pm

चंदू निर्मलकर

आवेश तिवारी@रायपुर. छत्तीसगढ़ में संरक्षित जनजातियों की भोजन की थाली, आधार कार्ड की वजह से खाली हो रही है। केंद्र और राज्य सरकार हालात से अनजान हैं। कबीरधाम जिले के पंडरिया ब्लाक स्थित तेलियापानी गांव में मंगलीलाल बैगा नामक महिला को आधारकार्ड न होने पर मृत घोषित किए जाने का सनसनीखेज मामला सामने आया है। मंगली दिव्यांग हैं।

उन्हें कई महीनों से राशन नहीं मिला है। 14 राज्यों में ‘भोजन का अधिकार’ के अंतर्गत केन्द्रीय योजनाओं का लाभ मिलने में आदिवासियों-जनजातियों को आ रही अड़चनों को लेकर किए गए सर्वेक्षण में मंगली का मामला सामने आया है। भोजन का अधिकार अभियान ने इसी शनिवार को मंगलीलाल और उनके जैसे अन्य आदिवासियों के मामले को संसद सदस्यों को भेजा है। इन मामलों पर तत्काल संसद में बहस कराने की मांग की है।

ये है कहानी मंगली की
मंगलीलाल बैगा के बारे में जानकारी मिली है कि दाएं हाथ से दिव्यांग और अपने भाई एवं देवर के साथ रहने वाली मंगली को गुलाबी कार्ड दिया गया था। जिस पर उसे प्रति माह 10 किलो राशन मिलता था। लेकिन पिछले चार माह से उसे राशन देना बंद कर दिया गया। जब उसने 6 जनवरी 2018 की पीडीएस के टोल फ्री नंबर पर राशन न मिलने की शिकायत की तो उन्हें कहा गया कि बिना आधार कार्ड के उनकी शिकायत दर्ज नहीं की जा सकती। फिर ग्रामसचिव ने उनके राशनकार्ड में उन्हें मृत घोषित कर दिया। ‘पत्रिका’ के पास उस राशनकार्ड की प्रति मौजूद है, जिसमें उन्हें मृत घोषित किया गया है।

न हाथ न खाने को अन्न
कबीरधाम जिले के पंडरिया ब्लाक स्थित बोहली गांव के समलू बैगा की कहानी भी बहुत कुछ ऐसी ही है। समलू के जन्म से ही हाथों में अंगुलियां नहीं है। उनके परिवार में 6 लोग हैं। उन्हें भी पिछले कई महीने से राशन नहीं मिला है। जब उन्होंने इस सम्बन्ध में हेल्पलाइन नंबर पर संपर्क किया तो उन्हें कहा गया कि जब तक आधारकार्ड को राशनकार्ड से लिंक नहीं किया जाएगा उन्हें राशन नहीं मिलेगा।

भुखमरी के हालात में हिरलू

इधर, सरगुजा के लालमती पंचायत में उरांव जनजाति के हिरलू बचपन में ही अपने परिवार के साथ असम के चाय बागान में काम करने चले गए थे। लेकिन जब वहां भुखमरी के हालात पैदा हो गए तो वापस छत्तीसगढ़ स्थित अपने गांव गान्झादांड चले आए। यहां उन्होंने देखा कि उनकी जमीन का एक बड़ा हिस्सा बांकी डैम में डूब गया है, कुछ जमीन वन विभाग के पास चली गई। जब उन्होंने इस सम्बन्ध में पंचायत सचिव से बात की और अपना नाम राशनकार्ड में डालने को कहा तो पंचायत सचिव ने कहा कि चूंकि उनका नाम 2002 और 2011 की बीपीएल सूची में नहीं है इसलिए उनका राशनकार्ड नहीं बनाया जा सकता है।

हाल राष्ट्रपति के दत्तक पुत्रों का
सूरजपुर के सोनहट ब्लाक स्थित पोंडी गांव से भी इसी किस्म का एक मामला सामने आया है। जिनमें पूर्व राष्ट्रपति स्वर्गीय राजेन्द्र प्रसाद द्वारा गोद लिए गए पंडो आदिवासी समाज की दलेश्वरी पंडो नामक महिला के परिवार को आधारकार्ड के अभाव में पिछले चार वर्षों से राशन नहीं दिया जा रहा है। आमतौर पर बांस का काम करने वाले पंडो बिरादरी के ज्यादातर आदिवासियों को गुलाबी की जगह नीले कार्ड दिए गए हैं। दलेश्वरी बताती है कि दिसंबर 2015 में उन्होंने जनदर्शन के दौरान कलक्टर को राशनकार्ड में नाम देने के लिए दरखास्त दी थी।

जिसका आजतक संज्ञान नहीं लिया गया और तो और उनका भी नाम राशनकार्ड की सूची से काट दिया गया। जब उन्होंने कोटवार से संपर्क किया तो उन्हें कहा गया कि चूंकि बैंक का खाता और आधारकार्ड राशनकार्ड से लिंक नहीं है इसलिए राशन नहीं दिया जाएगा। आज भी दलेश्वरी के नाम से कोई बैंक खाता नहीं है।
ये मामले मेरे संज्ञान में नहीं हैं। अगर ऐसी कोई दिक्कत आ रही है तो उसे दूर किया जाएगा।
अजय चंद्राकर, पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री

हमारी मांग है कि आदिवासियों को दिए जाने वाले सार्वजनिक वितरण प्रणाली के अनाज से आधार की अनिवार्यता खत्म की जानी चाहिए। नहीं तो आने वाले दिनों में उनके लिए मुश्किलें बढेंग़ी।
दीपा सिन्हा, भोजन का अधिकार अभियान

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