script

अंधविश्वास का दंश

locationरायपुरPublished: Aug 31, 2018 05:22:03 pm

Submitted by:

Gulal Verma

किशोरी ने जीभ काटकर भगवान शिव में चढ़ाई

cg news

अंधविश्वास का दंश

जांजगीर-चांपा क्षेत्र के माजरकूद गांव में अंधविश्वास के चलते किशोरी द्वारा आंख की रोशनी बढ़ाने ब्लेड से अपनी जीभ काटकर भगवान शिव में चढ़ाने की घटना जितनी दुखद है उतनी ही चिंताजनक भी है। दुखद इसलिए कि प्रदेश-समाज में अंधविश्वास की घटनाएं बढ़ रही हैं। अंधविश्वास व अंधश्रद्धा-भक्ति के नाम पर जन-धन की हानि हो रही है। चिंताजनक इसलिए कि यह किसी व्यक्ति या समाज विशेष तक सीमित नहीं है। ग्रामीण हो या शहरी, अशिक्षित हो या शिक्षित, गरीब हो या अमीर सभी वर्ग में अंधविश्वास व्याप्त है। शिक्षा का ग्राफ बढऩे, समाज में जागरुकता आने और लोगों के आधुनिक होने के तमाम दावों के बावजूद समाज में अंधविश्वास कम नहीं हो रहा है।
प्रदेश में ‘वरदानÓ या ‘मनौतीÓ के नाम पर जीभ काटने की यह पहली घटना नहीं है। इससे पहले भी अंधश्रद्धा-भक्ति के चलते जीभ काटकर भगवान को चढ़ाई गई है। इतना ही नहीं, परिवार में आ रही परेशानियों, परिजनों को हो रही तकलीफों, आर्थिक मुसीबतों से छुटकारा पाने या रंजिशवश मासूमों की बलि तक चढ़ा दी गई है। ‘जादू-टोनाÓ के नाम पर भी कई हत्याएं हो चुकी हैं। हद तो यह है कि टोनही का लांछन लगाकर महिलाओं का घर-परिवार, गांव और समाज में रहना दूभर कर दिया जाता है। ‘टोनहीÓ रूपी अंधविश्वास से प्रदेश की सैकड़ों महिलाओं की जिंदगियों और खुशियों पर ग्रहण लगा है।
अंधविश्वास का आलम यह है कि जड़ी-बूटियों की आड़ में दुर्लभ वन्यजीवों के अंगों की तस्करी का गोरखधंधा तक चल रहा है। दिल्ली की संस्था पीपुल्स फॉर एनीमल्स की शिकायत पर वन विभाग की टीम ने राजधानी रायपुर के गोलबाजार स्थित जड़ी-बूटी की जानी-मानी दुकान से वन्यजीवों के अंग बरामद किए हैं। शेर, भालू, हाथी व अन्य वन्यजीवों के अंगों का इस्तेमाल शक्तिवर्धक दवा बनाने व जादू-टोना में किया जाता है।
लोग मानते हैं कि जैसे-जैसे समाज में वैज्ञानिक जानकारियों का प्रवाह बढ़ता है, वैसे-वैसे अंधविश्वास कम होते जाता है। अंध परंपराएं शिथिल पड़ती जाती हैं। लेकिन छत्तीसगढ़ में तो ऐसा होता दिखाई नहीं पड़ता, अंधविश्वास व जादू-टोना के मामलों में तो बिल्कुल भी नहीं। लोगों के रहन-सहन, खान-पान, वेश-भूषा, बोल-चाल तो जरूर बदल गए हैं, लेकिन भारतीय समाज में सदियों से व्याप्त कुरीतियों और अंधविश्वास का साया आज भी उनके मन-मस्तिष्क पर बरकरार है। शहरी क्षेत्र की दुकानों, प्रतिष्ठानों में भी नींबू-मिर्च टंगे हुए आसानी से देखे जा सकते हैं।
बहरहाल, अंधविश्वास के खिलाफ हर स्तर पर आवाज उठाने और जागरुकता लाने की जरूरत है। सामाजिक संगठनों से जुड़े लोगों को भी संजीदगी से सोचना चाहिए। साथ ही वन्यजीवों के अंगों की तस्करी के मामले में सख्त कार्रवाई होनी चाहिए।

ट्रेंडिंग वीडियो