वादा निभाइए
रायपुरPublished: Aug 09, 2018 08:23:40 pm
भोले-भाले समझे जाने वाले आदिवासियों का भला कैसे और कब होगा, कोई नहीं जानता?
विश्व आदिवासी दिवस पर 9 अगस्त को प्रदेश सरकार आदिवासियों को साधने के लिए राजधानी रायपुर में बड़ा सम्मेलन किया तो प्रमुख विपक्षी पार्टी कांग्रेस जंगल सत्याग्रह। क्योकि, प्रदेश में लगभग 32 फीसदी आबादी अनुसूचित जनजाति वर्ग और 12.81 फीसदी अनुसूचित जाति वर्ग की हैं। वहीं, प्रदेश की 90 विधानसभा सीटों में से अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए 29 और अनुसूचित जाति वर्ग के लिए 10 सीटें आरक्षित हैं। प्रदेश में विधानसभा चुनाव को लेकर राजनीतिक दलों में सरगर्मी तेज हो गई है। सत्तापक्ष कुर्सी बचाने और विपक्ष कुर्सी कब्जाने की कवायद में व्यस्त हंै।
भोले-भाले समझे जाने वाले आदिवासियों का भला कैसे और कब होगा, कोई नहीं जानता? हर कोई आदिवासियों का हितचिंतक होने का दावा करता है, लेकिन आज तक न सरकारें और न ही राजनीतिक दलों ने इनकी खास परवाह की। माओवाद अब भी प्रदेश के लिए अभिशाप बना हुआ है। आदिवासी जनता माओवादियों और पुलिस के बीच ***** रही है। ग्रामीणों को माओवादी बताकर पुलिस द्वारा जेल में डाल देने या फिर मुखबिर बताकर माओवादियों द्वारा उन्हें मार डालने की खबरें आती रहती हैं। इतना ही नहीं, वनांचल और दूरस्थ क्षेत्रों में सरकारी योजनाएं नहीं पहुंच पा रही हैं। समय पर स्वास्थ्य सुविधाएं नहीं मिलने से लोगों की अकाल मौत हो जाती है। एक तरफ मैदानी क्षेत्र में ‘विकास की गंगाÓ बह रही है, दूसरी ओर ‘अमीर धरती के गरीब लोगÓ हर रोज भोजन और जीवन के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
विकास के नाम पर आदिवासियों को उनकी मर्जी के खिलाफ जंगल से खदेड़ा भी जा रहा है। सरकार अगर आदिवासियों को सुख, शांति, समृद्धि और सुरक्षा नहीं दे सकती, उनके जीवन में उजियारा नहीं बिखेर सकती, उन्हें जल, जंगल, जमीन का मालिकाना हक नहीं दे सकती तो ‘सम्मेलनोंÓ के क्या मायने हैं? इस बात में बहस की शायद ही कोई गुंजाइश हो कि यदि वनांचल की तस्वीर और आदिवासियों की तकदीर बदलनी है तो राजनीतिक दलों को चुनाव पूर्व किए वादों को निभाने और आदिवासियों की मांगों व समस्याओं को हल करना होगा। बावजूद इसके राजनीतिक दल चुनावी वादे पूरा न कर आदिवासियों की उम्मीदों और विश्वास पर कुठाराघात करते रहे हैं। यदि सत्तारूढ़ होने के बाद राजनीतिक दल आदिवासियों से किए वादे नहीं निभाते तो उन्हें आदिवासियों का हितैषी होने का ढिंढोरा पीटने और दिखावा करने का क्या हक है?
बेशक, न सम्मेलन करना गलत है और न ही जंगल सत्याग्रह। सम्मेलन-सत्याग्रह करें, जरूर करें। लेकिन आदिवासियों के हित के लिए किए कामों को बताइए। उनसे किए वादों को निभाइए। क्योंकि, वे बेहद कष्ट सह रहे और दुख भोग रहे हैं।