जनतंत्र म नेतामन मारत हें मजा, जनता के हे सजा!
कसम से ये भुइंया म हजारों बछर के इतिहास म अइसन ‘अंधराजुग’ आज तक नइ आय रिहिस। लागथे अब आ गे हे। इहां के सीधा-साधा, भोला-भाला मनखेमन झट ले नेतामन ऊपर बिसवास कर लेथें। अब नेतामन वोकरमन के बिसवास ल कुटि-कुटि कर देवत हें। रहि-रहि के समे-समे म सबो पारटी वोमन ल ठगे हें।
रायपुर
Published: March 29, 2022 04:45:18 pm
मितान! आजकाल के राजनीति म बिचार, सिद्धांत, उद्देस्य सब ‘गदहा के सींग’ कस गायब हे। ऊटफुटांग जुबाव देवइयामन तो गुड़ म माछी भिनभिनाय कस बने बात कहइया ऊपर चघ बइठथें। सत्ता के लालची-सुवारथी नेतामन जनता ल एक-दूसर सेलड़वाय के काम करथें। राजनीतिक दलमन अपन हित के मुताबिक जुन्ना बात, घटना, इतिहास ल जइसे पावत हें, तइसे जनता ल बतावंत हें। हमर सियानमन कहे हावंय -‘बीते बात ल बिसार दव, अउ आगू के सोचव।’ फेर, इहां तो उलटा नरवा बोहावत हे।
सिरतोन! अलग-अलग पारटीमन से जुड़े नेतामन ‘बिना मतलब के बात’ ल उछालत रहिथें। खोर-गली म लड़ई-झगरा करइया लोगनमन कस एक-दूसर बर आने-ताने बोलत रहिथें। अउ ये सब ह वो भुइंया म होवत हे जिहां परबित गंगा मइया बोहाथे। अउ, आज उही ह सबले जादा मइलाहा (परदूसित) होगे हे। नेतामन के ‘सत्ता पोगराय के खेल’ म सबसे जादा दुविधा म ‘छोटकिन मतदाता’ हे। जेन ल दुनिया के सबले बडक़ा लोकतंत्र के सबले जादा ‘ताकत वाले मनखे’ बताय जाथे। जेकर एक अंगरी के इसारा म ‘सत्ता’ बदले के बड़े-बड़े बात कहे जाथे।
मितान! कसम से ये भुइंया म हजारों बछर के इतिहास म अइसन ‘अंधराजुग’ आज तक नइ आय रिहिस। लागथे अब आ गे हे। इहां के सीधा-साधा, भोला-भाला मनखेमन झट ले नेतामन ऊपर बिसवास कर लेथें। अब नेतामन वोकरमन के बिसवास ल कुटि-कुटि कर देवत हें। रहि-रहि के समे-समे म सबो पारटी वोमन ल ठगे हें। जेन काम ल जनता के हित बर करे बर चाही, वोला नइ करंय, अउ अंनते-तंनते के काम ल गिनावत रहिथें। अपन वादा ल निभाय रहितिन त हर चुनई के समे उहिच वादा ल घेरे-बेरी नइ करे बर परतिस। जनता के हाथ जोरे अउ पांव परे के कभु नौबत नइ आतिस।
सिरतोन! नेतामन कोनो पारटी म रहंय, वोकरमन के मजेच रहिथे। जेन पारटी म मजा नइ आवय, त तुरते दूसर पारटी म मजा मारे बर चल देथें। एक पारटी के चिनहा म जीत के दूसर पारटी के सरकार म मंतरी बने म घलो नइ लजावंय। अपन पारटी, अपन नेता ल धोखा देवई, मतदातामन सेे बिसवासघात करई ल दलबदलू नेतामन नवा ‘चानक्य नीति’ समझे बर धर ले हें।
दल बदलई, कुरसी पवई ल ही आज के नेतामन ‘महान काम’ समझ बइठे हें। दुरगति तो जनता (मतदाता) के बनथे। दुनियाभर के मुसीबत गरीब मनखेमन ल उठाय बर परथे। जब जनतंत्र म जनतेच ह सबले जादा पीरा सहत हे, सबले जादा दुख भोगत हे, त अउ का-कहिबे।

जनतंत्र म नेतामन मारत हें मजा, जनता के हे सजा!
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