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दुस्करमीमन ल फांसी दे जाय

locationरायपुरPublished: May 24, 2018 11:09:28 pm

Submitted by:

Gulal Verma

कइसे बाचही नारी-परानीमन के इज्जत?

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दुस्करमीमन ल फांसी दे जाय

समाज म होवत चरित्तर ल कहे अउ सुने म बड़ अलकरहा लागथे। चरित मनखे के वो गहना हे जेला पहिने ले समाज म मान-सम्मान बाढ़थे। पुन घलो मिलथे। मन साफ, त तन साफ। फेर, आज कोनो ल चरित के चिनता-फिकर नइये। रुपिया-पइसा के भूख अउ मया के झूठ। ये दूनों जिनिस ह चरित पतन के अलहन ए।
सतजुग, तरेता अउ दुवापर के राक्छसमन ले बड़का राक्छस आज समाज म हावंय। जउनमन नारी देह ल गिधवा कर नोचत हें। नता-रिस्ता ल दागदार करत हें। धरम-ईमान ल बेचत हें। रोज्जेच नारी के इज्जत लूटत हे। छेडख़ानी होवत हे। आज के आधुनिक जुग म टेलीबिजन, सिनेमा, इंटरनेट अउ पस्चिमी संस्करीति के परभाव समाज उप्पर घलो परत हे। ऐला रोके के खच्चित जरूरत हे। भारतीय संस्करीति, संस्कार ल बचाय बर परही। दुस्करम करइया, धरम-करम ल छोड़इयामन के जुरुम ल माफ नइ करे जा सकय। दुस्करमीमन ल तुरते फांसी म लटका देय बर चाही। दूसर के जिनिस ल खाय, लूटे म मजा आवत हे। काली जुवर तोरो जिनिस ल कोनो खाही, लूटही त तोला कइसे जियानही।
समाज ह आगू आवय
आ ज ‘नारीÓ कहुं सुरक्छित नइये। इस्कूल-कालेज अउ धारमिक जगामन म घलो अनैतिक काम होवत हे। लचर कानून बेवस्था, नियाव मिले म बिलंब अउ समाज के कमजोरी के सेती दुराचारीमन के कुछु नइ बिगड़त हे। न कानून के डर हे अउ न समाज के। सरकार ह बारा बछर ले कम उमर के नोनीमन से दुस्करम के दोसीमन ल मउत के सजा देय के कानून बनावत हे। फेर का कानून बने ले दुस्करम रुक जही? का गलत-सलत काम करइयामन डररा जहीं? दुस्करम करइयामन ल बचइयामन ल का ये बात के एहसास होही के पीडि़त अउ वोकर परिवारवाले मन उप्पर का बीतथे?
भले दुस्करम करइया रिस्तेदार, जान-पहिचान वाला हो, भले अपन या दूसर जात-बिरादरी, समाज के हो, फेर वोहा अधरम, अनैतिक काम करे हे त समाज ह का वोला बचाय के ठेका ले रखे हावय? दुस्करमी अउ वोला बचइयामन ल तुरते समाज ले खेदार दे चाही। वोमन ल सजा देवाय बर समाज ल आगू आय बर चाही। समाज म गिरत नैतिक अउ चारित्रिक पतन ल रोके बर चाही।
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