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भावनाओं पर आघात

locationरायपुरPublished: Jul 26, 2018 08:12:56 pm

Submitted by:

Gulal Verma

धार्मिक और राष्ट्रीय भावनाओं का दुरुपयोग

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भावनाओं पर आघात

राजधानी रायपुर में धरना-प्रदर्शन करने वालों द्वारा अपनी बात मनवाने और पुलिस के हस्तक्षेप से बचने के लिए राष्ट्रीय व धार्मिक भावनाओं का सहारा लेना न केवल शर्मनाक है, बल्कि निंदनीय भी है। चिंता की बात यह है कि देश में लोकतांत्रिक व्यवस्था के कारण लोगों को धार्मिक स्वतंत्रता मिली हुई है। विरोध प्रदर्शन करने की छूट भी है। बावजूद इसके लोग धार्मिक और राष्ट्रीय भावनाओं का दुरुपयोग करने पर आमादा हैं? लोकतांत्रिक व्यवस्था में मांगें लोकतांत्रिक तरीके से ही की जा सकती हैं। मांगों को मनवाने के लिए धरना-प्रदर्शन के नाम पर कोई भी राष्ट्रीय या धार्मिक भावनाओं को न भड़का सकता है और न ही उसका सहारा ही ले सकता है।
एक तरह जहां राजधानी के प्रतिबंधित मार्ग पर प्रदर्शन कर रहे विभिन्न विभागों के कर्मचारियों द्वारा पुलिस कार्रवाई से बचने के लिए कई बार राष्ट्रगान गाया गया। वहीं दूसरी तरफ धर्मांतरण के खिलाफ उचित कार्रवाई करने की मांग को लेकर कलक्टर कार्यालय पहुंचे बजरंग दल के पदाधिकारियों, कार्यकर्ताओं व साधु-संतों द्वारा कलक्टर से मुलाकात में विलंब होने पर कार्यालय में ही हनुमान चालीसा का पाठ किया गया। दोनों ही मामलों में राष्ट्रीय व धार्मिक भावनाओं का सम्मान व आदर करते हुए पुलिस मूकदर्शक बनी रही। कोई कार्रवाई नहीं की गई।
आंदोलनकारियों के इस तरह के व्यवहार से कई सवाल खड़े हो गए हैं। जिस प्रकार से उन्होंनेे स्वार्थवश बार-बार राष्ट्रगान गाया, उसे कोई भी राष्ट्रभक्त जायज नहीं कह सकता। विरोध करना और अपनी बात कहने के लिए प्रदर्शन करना लोकतांत्रिक व्यवस्था का सामान्य हिस्सा होता है। इसलिए प्रदेश के हजारों कर्मचारी विभिन्न मांगों को लेकर समय-समय पर धरना-प्रदर्शन करते रहे हैं। इस बार कर्मचारियों का विरोध इसलिए भी तेज हुआ, क्योंकि एक तो सरकार उनकी मांगों को अनदेखा करती आ रही है और दूसरी यह कि इस वर्ष प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने वाला है। वे चुनाव से पहले हर हाल में अपनी मांगें मनवाना चाहते हैं।
आंदोलन करने का अधिकार सबको है, इससे कोई इनकार नहीं कर सकता। लेकिन आंदोलन का तरीका सही है या गलत, इसका निर्धारण कौन करेगा? खासकर पुलिस की कार्रवाई से बचने के लिए आंदोलनकारियों द्वारा राष्ट्रीय और धार्मिक भावनाओं जैसे सहारों पर। लक्ष्मणरेखा सबके लिए होनी चाहिए। कहीं भी, कभी भी राष्ट्रीय और धार्मिक भावनाओं से खिलवाड़ करना ठीक नहीं है। ऐसा करने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई होनी चाहिए। बहरहाल, देश-प्रदेश के तमाम संगठनों के आंदोलनकारी गांधीवादी तरीके अपनाएं, ताकि लोगों को किसी भी प्रकार की परेशानी न हो। निजी व सरकारी संपत्तियों की कोई क्षति न हंो। कानून व्यवस्था बिगडऩे की नौबत न आए।भावनाओं पर आघात
धार्मिक और राष्ट्रीय भावनाओं का दुरुपयोग
राजधानी रायपुर में धरना-प्रदर्शन करने वालों द्वारा अपनी बात मनवाने और पुलिस के हस्तक्षेप से बचने के लिए राष्ट्रीय व धार्मिक भावनाओं का सहारा लेना न केवल शर्मनाक है, बल्कि निंदनीय भी है। चिंता की बात यह है कि देश में लोकतांत्रिक व्यवस्था के कारण लोगों को धार्मिक स्वतंत्रता मिली हुई है। विरोध प्रदर्शन करने की छूट भी है। बावजूद इसके लोग धार्मिक और राष्ट्रीय भावनाओं का दुरुपयोग करने पर आमादा हैं? लोकतांत्रिक व्यवस्था में मांगें लोकतांत्रिक तरीके से ही की जा सकती हैं। मांगों को मनवाने के लिए धरना-प्रदर्शन के नाम पर कोई भी राष्ट्रीय या धार्मिक भावनाओं को न भड़का सकता है और न ही उसका सहारा ही ले सकता है।
एक तरह जहां राजधानी के प्रतिबंधित मार्ग पर प्रदर्शन कर रहे विभिन्न विभागों के कर्मचारियों द्वारा पुलिस कार्रवाई से बचने के लिए कई बार राष्ट्रगान गाया गया। वहीं दूसरी तरफ धर्मांतरण के खिलाफ उचित कार्रवाई करने की मांग को लेकर कलक्टर कार्यालय पहुंचे बजरंग दल के पदाधिकारियों, कार्यकर्ताओं व साधु-संतों द्वारा कलक्टर से मुलाकात में विलंब होने पर कार्यालय में ही हनुमान चालीसा का पाठ किया गया। दोनों ही मामलों में राष्ट्रीय व धार्मिक भावनाओं का सम्मान व आदर करते हुए पुलिस मूकदर्शक बनी रही। कोई कार्रवाई नहीं की गई।
आंदोलनकारियों के इस तरह के व्यवहार से कई सवाल खड़े हो गए हैं। जिस प्रकार से उन्होंनेे स्वार्थवश बार-बार राष्ट्रगान गाया, उसे कोई भी राष्ट्रभक्त जायज नहीं कह सकता। विरोध करना और अपनी बात कहने के लिए प्रदर्शन करना लोकतांत्रिक व्यवस्था का सामान्य हिस्सा होता है। इसलिए प्रदेश के हजारों कर्मचारी विभिन्न मांगों को लेकर समय-समय पर धरना-प्रदर्शन करते रहे हैं। इस बार कर्मचारियों का विरोध इसलिए भी तेज हुआ, क्योंकि एक तो सरकार उनकी मांगों को अनदेखा करती आ रही है और दूसरी यह कि इस वर्ष प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने वाला है। वे चुनाव से पहले हर हाल में अपनी मांगें मनवाना चाहते हैं।
आंदोलन करने का अधिकार सबको है, इससे कोई इनकार नहीं कर सकता। लेकिन आंदोलन का तरीका सही है या गलत, इसका निर्धारण कौन करेगा? खासकर पुलिस की कार्रवाई से बचने के लिए आंदोलनकारियों द्वारा राष्ट्रीय और धार्मिक भावनाओं जैसे सहारों पर। लक्ष्मणरेखा सबके लिए होनी चाहिए। कहीं भी, कभी भी राष्ट्रीय और धार्मिक भावनाओं से खिलवाड़ करना ठीक नहीं है। ऐसा करने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई होनी चाहिए। बहरहाल, देश-प्रदेश के तमाम संगठनों के आंदोलनकारी गांधीवादी तरीके अपनाएं, ताकि लोगों को किसी भी प्रकार की परेशानी न हो। निजी व सरकारी संपत्तियों की कोई क्षति न हंो। कानून व्यवस्था बिगडऩे की नौबत न आए।

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