रायपुर। छत्तीसगढ़ में सूदखोरी, सट्टेबाजी और नशाखोरी की जितनी निंदा की जाए, कम है। नौबत यहां तक पहुंच गई है कि
बिलासपुर में एक युवक ने सूदखोरों से तंग आकर फांसी लगा ली। 25 मई को फांसी लगाने वाला यह युवक सूदखोरों के चंगुल में बुरी तरह से फंसा हुआ था। फांसी की इस घटना के बाद शहर के तीन सूदखोरों का फरार हो जाना यह संकेत देता है कि सूदखोर उधार की रकम देकर युवाओं के जीवन को कैसे नर्क बना रहे हैं। यह दुखद घटना उन तमाम युवाओं के लिए सबक होनी चाहिए जो सूदखोरों से उधार लेना चाहते हैं, जो उधार के पैसे से सट्टेबाजी करना चाहते हैं, जो उधार के पैसे से नशाखोरी करना चाहते हैं। युवाओं को ऐसे किसी भी बुराई के आसपास भी नहीं फटकना चाहिए। ये सूदखोर उधार देकर उस राशि का दस गुना वसूल करते हैं।
प्रदेश में ऐसे कई परिवार हैं, जिनका जीना सूदखोरों ने दुश्वार कर दिया है। सरकार को आम लोगों की चिंता सिर्फ चुनावों के समय होती है। तब आश्वासनों के झुनझुने थमाए जाते हैं। सत्ता में आते ही सब भूल जाते हैं कि लोग गरीबी व बेरोजगारी से जूझ रहे हैं। कई परिवारों पर कर्जे का कोहरा है। किसी नेता, अफसर को झांकने की फुर्सत ही नहीं है कि आम लोग सूदखोरों से कर्ज लेने मजबूर क्यों हैं, इससे बचाने के लिए कैसे मदद की जा सकती है। ऐसा नहीं है कि सरकार चाहे तो मददगार नहीं हो सकती। आखिर सरकार की ऐसी कौन सी मजबूरी है कि अपने स्तर पर सूदखोरों की पहचान नहीं कर पाती? सूदखोरों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने में सरकार क्यों हाथ बांध लेती है?
ये सूदखोर युवाओं को बड़ी आसानी से उधार देकर अपने चंगुल में फंसा लेते हैं। न जाने कितने युवा उधार लेकर तबाह हुए हैं और बदनामी के भय से चुप बैठ गए हैं। सूदखोरों के आतंक के कारण कोई आत्महत्या के बाद सरकार को भी जागना चाहिए। यह सरकार की प्राथमिक जिम्मेदारी होनी चाहिए कि वह युवाओं को गलत प्रवृत्तियों से बचाने के तमाम उपाय करे और जो लोग युवाओं की जिन्दगी तबाह करने में लगे हैं उनको सलाखों के पीछे पहुंचाए।