बारनवापारा के किसान वन अधिकार पत्र के लिए दफ्तरों के लगा रहे चक्कर
बारनवापारा के कुछ किसानों को आज पर्यंत तक वन अधिकार पत्र नहीं मिलने से वे अपनेआप को ठगा महसूस कर रहे हैं। वे कसडोल अनुविभागीय अधिकारी कार्यालय, कलेक्टर कार्यालय, आदिवासी विकास विभाग बलौदाबाजार कार्यालय के चक्कर-दर-चक्कर लगा रहे हैं।
रायपुर
Updated: April 19, 2022 04:56:17 pm
सेल। राज्य सरकार द्वारा वन अधिकार अधिनियम. 2006 के अंतर्गत पात्र अनुसूचित जनजाति व अन्य परम्परागत वननिवासियों को वन अधिकार पत्र उपलब्ध करावाने नव सामुदायिक वन अधिकारों से लाभान्वित करने के लिए राज्य में विशेष अभियान चलाया गया था। जिसमें कोई भी पात्र हितग्राही वन अधिकार पत्र (पट्टा) पाने से वंचित न हो। किन्तु बारनवापारा के कुछ किसानों को आज पर्यंत तक वन अधिकार पत्र नहीं मिलने से वे अपनेआप को ठगा महसूस कर रहे हैं। वे कसडोल अनुविभागीय अधिकारी कार्यालय, कलेक्टर कार्यालय, आदिवासी विकास विभाग बलौदाबाजार कार्यालय के चक्कर-दर-चक्कर लगा रहे हैं। वहीं संबंधित विभागों के अधिकारी उन्हें सिर्फ आश्वासन-पर-आश्वासन दिए जा रहे हैं। वर्षभर बाद भी वन अधिकार पत्र नहीं मिलने से संबंधित हितग्राहियों में रोष है।
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मुझे और मेरे गांव के कुछ अन्य लोगों को वन अधिकार पत्र नहीं मिला है, जिसके चलते काफी परेशानी हो रही है। मेरा ऊपर सोसायटी का कर्जा है। मैं धान नहीं बेंच पा रहा हूं। खाद-बीज नहीं मिल पा रहा है। शासन की लाभकारी योजनाओं से वंचित हो गया हूं। बारम्बार मुझे सोसायटी कर्जा का नोटिस थमा देते हंै। कर्ज अदा करने के लिए मेरा पास कोई रास्ता नहीं है। सरकारी दफ्तरों खाली हाथ लौटना पड़ता है।
- बेनुराम यादव, प्रभावित किसान
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ग्राम सभाओं में दी जा रही वन अधिकार की विस्तृत जानकारी
मैनपुर। विकासखंड मुख्यालय मैनपुर राजापडा़व क्षेत्र के नगबेल, कोसुममुडा़, छिन्दभर्री, जरहीडीह, अडग़डी सहित अन्य गांवों में सामुदायिक वन संसाधन दावे के लिए ग्राम सभा बैठक का दौर जारी है। प्रेरक स्वयंसेवी संस्था के सामुदायिक प्रशिक्षक बसंत सोनी द्वारा सामुदायिक वन संसाधन अधिकार पत्र ग्राम सभा को मिले इस दिशा में लगातार कानून सम्मत प्रक्रिया को ग्रामसभा के माध्यम से आगे बढ़ा रहे हैं। वहीं गांव के मुखियाओं को वन अधिकारों की मान्यता अधिनियम के क्रियान्वयन के लिए मार्ग दर्शिका (बुकलेट) का भी वितरण किया गया, जिससे दावा करने के लिए नियम कानून की जानकारी हो सके।
सामुदाय प्रशिक्षक ने जानकारी देते हुए बताया कि ग्राम सभा को सामुदायिक वन संसाधन का अधिकार मिलने से वन में निवास करने वाले आदिवासियों व अन्य परंपरागत वन निवासियों के लिए एक नए युग की शुरुआत होगी। क्योंकि, यह अधिकार ग्रामवासियों को अपने जंगल बचाने के साथ-साथ उसका प्रबंधन करने का भी अधिकार देता है। अपने जंगल और जंगली जानवरों को सुरक्षित रखते हुए उन्हें बढ़ाने का कार्य करेगा। उन्होंने कहा कि यह अधिकार गांव को एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी देते हुए अपने गांव के जंगल में समिति बना कर स्वयं प्रबंधन की दिशा में काम करेंगे। वन अधिकारों की मान्यता कानून आदिवासियों व अन्य परंपरागत वन निवासियों के प्रति अंग्रेजों द्वारा किए गए ऐतिहासिक अन्याय को सुधारने की दिशा में एक प्रयास है। इसके माध्यम से जंगल के सभी अधिकार ग्रामसभा को मान्य किए जाने हंै। जिससे वह जंगल को पहले जैसे अपना समझते हुए उससे अपनी आजीविका चला सकें। एक तरफ से ग्राम सभा को जंगल का मालिकाना हक प्रदान करता है। दावा की प्रक्रया को विस्तार से समझाते हुए बताया कि दावा तैयार करने के लिए ग्रामवासियों द्वारा सबसे पहले अपनी गांव की पारंपरिक सरहद का नजरी नक्शा तैयार किया जाना है। उसके बाद बीट गार्ड, पटवारी, पंचायत सचिव तथा गांव की सीमा से लगे सभी गांवों के बुजुर्गो की उपस्थिति में गांव के पारंपरिक सीमा का ग्लोबल पोजिशनिंग (जीपीएस) के माध्यम से सत्यापन किया जाएगा। इसके बाद सामुदायिक वन संसाधन के लिए समिति में दावा किया जाना है।

बारनवापारा के किसान वन अधिकार पत्र के लिए दफ्तरों के लगा रहे चक्कर
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