रायपुर . यकीन नहीं हो रहा था कि जिस यात्रा को हम कभी 30 दिनों में गांव-गांव की ठोकर खाते हुए पूरा करते थे आज उसे अपनी गाड़ी में बैठकर आदि कैलाश व ओम पर्वत के दर्शन करने वाले हैं। बता दें कि हिमालय की 20 हजार फीट की ऊंचाई पर बॉर्डर रोड आर्गनाइजेशन (बीआरओ) की ओर से बनाई जा रही सडक़ आम लोगों के लिए खोल दी गई है। यह सडक़ 75 प्रतिशत बन चुकी है, 25 प्रतिशत पर तेजी से काम चल रहा है। यह सडक़ उत्तराखंड राज्य के अंतिम छोर पर स्थित है। यहां दिल्ली से काठगोदाम, पिथौरागढ़ और धारचुला के रास्ते पहुंचा जा सकता है। छत्तीसगढ़ से हम तीन लोग जिसमें मैं खुद अजय नैथानी, भाटापारा, हमारे दूसरे साथी राजनांदगांव से राजेंद्र शर्मा और दुर्ग से आर.एन. सिंह इस यात्रा पर निकले हैं। धार्मिक और सामरिक दृष्टि से अहम धार्मिक दृष्टि से ये सडक़ इसलिए खास है क्योंकि एक साथ आप ओम पर्वत और आदि कैलाश के दर्शन कर सकते हैं जबकि सामरिक रूप से महत्वपूर्ण इसलिए है क्योंकि ओम पर्वत से लिपुलेक पास नौ किमी है और वहां के बाद से चीन की सीमा शुरू हो जाती है। इस सडक़ को हिमालय को काटकर बनाया गया है। जब हम इस मार्ग पर चल रहे थे तो आगे हिमालय की ऊंचाई थी तो किनारे में हजारों फीट की गहराई। रोमांच भरा ये सफर हमें गर्व से भर रहा था।
रायपुर . यकीन नहीं हो रहा था कि जिस यात्रा को हम कभी 30 दिनों में गांव-गांव की ठोकर खाते हुए पूरा करते थे आज उसे अपनी गाड़ी में बैठकर आदि कैलाश व ओम पर्वत के दर्शन करने वाले हैं। बता दें कि हिमालय की 20 हजार फीट की ऊंचाई पर बॉर्डर रोड आर्गनाइजेशन (बीआरओ) की ओर से बनाई जा रही सडक़ आम लोगों के लिए खोल दी गई है। यह सडक़ 75 प्रतिशत बन चुकी है, 25 प्रतिशत पर तेजी से काम चल रहा है। यह सडक़ उत्तराखंड राज्य के अंतिम छोर पर स्थित है। यहां दिल्ली से काठगोदाम, पिथौरागढ़ और धारचुला के रास्ते पहुंचा जा सकता है। छत्तीसगढ़ से हम तीन लोग जिसमें मैं खुद अजय नैथानी, भाटापारा, हमारे दूसरे साथी राजनांदगांव से राजेंद्र शर्मा और दुर्ग से आर.एन. सिंह इस यात्रा पर निकले हैं। धार्मिक और सामरिक दृष्टि से अहम धार्मिक दृष्टि से ये सडक़ इसलिए खास है क्योंकि एक साथ आप ओम पर्वत और आदि कैलाश के दर्शन कर सकते हैं जबकि सामरिक रूप से महत्वपूर्ण इसलिए है क्योंकि ओम पर्वत से लिपुलेक पास नौ किमी है और वहां के बाद से चीन की सीमा शुरू हो जाती है। इस सडक़ को हिमालय को काटकर बनाया गया है। जब हम इस मार्ग पर चल रहे थे तो आगे हिमालय की ऊंचाई थी तो किनारे में हजारों फीट की गहराई। रोमांच भरा ये सफर हमें गर्व से भर रहा था।