इस घटना से पूरा एम्स प्रबंधन सकते में है क्योंकि मरीज को छुट्टी दिए जाने की खबर दी गई, न वो मनोरोगी थी, न अन्य किसी बीमारी से ग्रसित था। फिर उसने यह कदम क्यों उठाया, इसका जवाब किसी के पास नहीं है? इसके पहले भी एम्स के सी-ब्लॉक की तीसरी मंजिल से कूदकर रायपुर निवासी एक कोरोना मरीज ने आत्महत्या की थी। इन दोनों ही घटनाओं में कोई कारण अब तक स्पष्ट नहीं हो सका है। बहरहाल परिजनों को सूचना दे दी गई है।
घटना से जुड़ी कुछ अहम बातें
क्या पहले से थी योजना- मरीज को जब बताया गया कि उसे छुट्टी दी जाने वाली है, तो उसे खुशी होनी चाहिए। फिर जान देने की वजह क्या थी? तो क्या मृतक ने पहले से आत्महत्या की योजना बना रखी थी?
जाली कैसे तोड़ी?- पूर्व की घटना से सबक लेते हुए प्रबंधन ने बाथरूम की खिड़कियों में जाली लगवाई थी। इसे तोडऩा कतई आसान नहीं है। सीसीटीवी फुटेज नहीं- इस घटना और पिछले घटना से जुड़ा कोई भी सीसीटीवी फुटेज पुलिस के हाथ नहीं लगा है। न ही कोई चश्मदीद मिला है। एम्स में कोविड१९ वार्ड इंचार्ज डॉ. अतुल जिंदल ने जैसा ‘पत्रिका’ को मुरलीधर के बारे में बताया मैं बीते ४ दिन से लगातार मुरलीधर को देख रहा था। गुरुवार को करीब साढ़े 11 बजे मैंने उसे देखा था। वह वार्ड का आखिरी मरीज था। मैंने उससे करीब 4-5 मिनट बात की। खाने के बारे में पूछा। पूछा कि क्या तुम खुद खाना लेकर आते हो? मैंने उसकी ऑक्सीजन भी हटवा दी थी क्योंकि वह सामान्य तरीके से सांस ले पा रहा था। उसकी स्थिति बहुत अच्छी थी। मैंने उसे वार्ड में चलाकर भी देखा।
मैंने कहा कि तुम ठीक हो गए हो, 2 दिन बाद छुट्टी मिल जाएगी। अगर, आप 4 दिन से लगातार किसी व्यक्ति से मिलते हैं तो उसके व्यवहार को जानते हैं। अलग-अलग डॉक्टर उससे मिल रहे होते तो अलग बात होती। कभी भी उसके व्यवहार से यह नहीं लगा कि वह किसी भी प्रकार के तनाव में है। मैं जैसे ही दूसरे वार्ड में गया, मूझे स्टाफ ने बताया कि कोई मरीज कूद है। मैं सॉक्ड हूं कि एक सामान्य मरीज कैसे ऐसा कदम उठा सकता है…।
मुरलीधर को शुरुआत में ऑक्सीजन की आवश्यकता थी। मगर स्थिति नियंत्रण में होने के बाद उसे वार्ड में शिफ्ट कर दिया गया था। मगर, उसने कूदकर जान दे दी। प्रयासों के बावजूद हम उसे नहीं बचा सके।
डॉ. नितिन एम. नागरकर, निदेशक, एम्स
जब हमारी टीम मौके पर पहुंची मृतक को इमरजेंसी में ले जाया जा चुका था। मगर, अभी मौत की कोई वजह निकलकर सामने नहीं आ आई है।
भरत बरेट, थाना प्रभारी, आमानाका क्या कहते हैं मनोरोग विशेषज्ञ
कोरोना मरीजों की 3 काउंसिलिंग अनिवार्य हैं। जब वह भर्ती होता है, और फिर 3-4 दिन बाद और फिर छुट्टी होने के पहले। 80-90 प्रतिशत मरीजों में शुरुआती 2 काउंसिलिंग में उसके जवाब देने के तरीके और दूसरे व्यवहार से यह पता लग जाता है कि उसका दिमाग स्थिर नहीं है। इसलिए उन पर ज्यादा ध्यान देने की आवश्यकता होती है। लोगों की सोच है कि हम समाज से कट जाएंगे, लोग हमसे बात नहीं करेंगे। इसे दूर करने की जरूरत है।
डॉ. मनोज साहू, विभागाध्यक्ष मनोरोग, डॉ. भीमराव आंबेडकर अस्पताल