त्रिलोचन मानिकपुरी@रायपुर. नृत्य एक ऐसी विधा है जिसमें हर कोई रमना चाहता है। ये अलग बात है कि इसका स्वरूप अवसर के हिसाब से बदलता रहता है।
सोमवार को दीनदयाल उपाध्याय ऑडिटोरियम में नृत्य का भव्य नजारा देखने को मिला। यहां भिलाई स्थित नृत्य एकेडमी के 124 कलाकारों ने सवा घंटे में नृत्य के इतिहास को बेहतरीन अंदाज में प्रस्तुत किया।
इंटरनेशनल डांस डे के मौके पर कृष्ण प्रिया ककक केन्द्र की ओर से घुंघरुओं का सफर, इतिहास: ए टेल ऑफ डांस की पेशकश में 6 साल की प्रन्या शुक्ला तो 40 साल की महिला ने परफॉर्मेंस दी।
इस कार्यक्रम में चीफ गेस्ट पंडवानी क्वीन तीजन बाई रही। शुरूआत कृष्ण वंदना से हुई।
आयोजकों ने बताया कि इस कार्यक्रम के लिए रिहर्सल 1 महीने से की जा रही थी। कार्यक्रम का मकसद जनमानस को नृत्य के लेकर आधुनिक काल तक की जानकारी देना था।
इस कार्यक्रम के लिए सभी कलाकार दोपहर दो बजे से तैयार हो रहे थे।
सूत्राधार के रूप में लालकिला और यमुना नदी है। दोनों की बातचीत के साथ नृत्य के इतिहास की जानकारी मिलनी शुरू होती है।
सबसे पहले वैदिक काल में सूर्य नृत्य की झलक दिखाई गई। इसके बाद गुप्त काल में नगर बंधुओं की नृत्य कला का दर्शाया गया।
रामायण काल में तुलसीदास की रचनाओं पर आधारित नृत्य विधाएं दिखाई गई। मुगल काल में कथक, तराना, लखनऊ काल की कव्वाली और आखिरी में आधुनिक काल में नृत्य की प्रस्तुति दी गई।
अलग-अलग काल में नृत्य के साथ-साथ कपड़े में भी बदलाव देखा गया।
रासलीला में चांदी कलर और गेटअप तो नवाबी काल में कव्वाली की झलक देखने को मिली।