स्वामी राजेन्द्र दास जी महराज ने कहा कि गोवर्धन प्रसंग में इंद्रदेव ने भगवान गोवर्धन की पूजा करने से क्रुद्ध होकर अति वृष्टि कराया। श्रीकृष्ण ने अपने भक्तों की रक्षा तथा इंद्रदेव का अहंकार तोडऩे के लिए गोवर्धन पर्वत को उठाकर ब्रजवासियों को इंद्र के कोप से बचाया। द्वापर युग में अर्थ संवर्धना वेदलक्षणा गायें हुआ करती थी। इन्ही गायों को नष्ट करने तथा ब्रज की अर्थव्यवस्था को खत्म करने के लिए इंद्र देव ने ब्रज की गौ को ही खत्म करना चाहा, इसलिए अतिवृष्टि कराई।
उन्होंने कहा कि वर्तमान स्थिति भी वही है। वेदलक्षणा गायों को काटने के लिए अनेक कसाई घर खोला गया है, और अनेक जहरीले रसायन के प्रयोग से आज माता धरती ऊसर होती जा रही है। अंग्रेजों ने जब देश को गुलाम बनाना चाहा तो हमारे तीन चीजों पर पहला प्रहार किया गया। आहार, ब्रह्मचर्य और निद्रा पर पहले प्रहार किया गया। इसके लिए चाय, चलचित्र और चर्म उद्योग कि शुरुआत की, जिसके प्रभाव में आकर हिन्दू सनातन व्यवस्था प्रभावित होने लगा और हम धीरे-धीरे उनके गुलाम होने लगे।
स्वामी ने कहा कि अंग्रेज तो चले गए पर आज भी वही स्थिति बनी हुई है। आज भी अग्रेजों के बनाए गुलाम की तरह काले अंग्रजों के गुलाम हैं। हम गोबर खाद की जगह जहरीले रासायनिक खाद का प्रयोग कर रहे हैं। खेतों में संकर किस्म की बीज का प्रयोग कर रहे है। इसका परिणाम यह हो रहा है कि हमारी संतानें कमजोर हो रहे हैं और अनेक प्रकार की बीमारियों की उत्पत्ति हो रही है। इन सब का एक मात्र उपाय वेदलक्षणा गौवंश का संवर्धन और संरक्षण से हमारी धरती माता भी गोबर खाद से उर्वर होगी और दूध और घी के सेवन से हृष्टपुष्ट संतान की उत्पत्ति होगी। खानपान अगर सात्विक हुआ तो मानसिक स्थिति भी निर्विकार रहेगा।
स्वामी जी ने शिक्षण संस्थानों पर पौष्टिक आहार के नाम पर अंडे खिलाए जाने को दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए कहा कि तन और मन को पुष्ट करने वाले वेदलक्षणा गायों के लिए कसाईघर खोल कर किस तरह की शिक्षा देना चाहती है सरकार। महारास की कथा में स्वामी राजेन्द्र दास जी महाराज ने कहा कि ब्रज की गोपियों ने अपने सांसारिक संबंधों को त्यागकर सर्वव्यापी जगतपति के साथ सर्वकालिक संबंध स्थापित करने निकल पड़ी। महारास के दौरान किसी को प्यास लगे, किसी को थकान महसूस हो तो जगत पति ने उनका निदान भी किए।
स्वामी जी ने बताया कि जो सर्वस्व निछावर कर जगतपति के सरणागत हुए उनके लिए हर छोटी सी छोटी दु:ख को श्रीठाकुर जी अपना दु:ख मानते है और उनका सर्वस्व रक्षा की जिम्मेदारी भी खूब निभाते हैं, इसलिए प्रत्येक व्यक्ति को अपना सम्पूर्ण रूप से समर्पित कर ईश्वर की आराधना करना चाहिए। हजारों की संख्या में श्रद्धालुओं ने कथा श्रवण लाभ उठाया। इस दौरान विगत छ: दिनों से नि:शुल्क भंडारा भगवत प्रसाद लोगों को बघेल परिवार संस्कार ग्राम बांकी द्वारा वितरित किया जा रहा है।