छत्तीसगढ़ी संस्करीति म बांस सिल्प के अब्बड़ महत्तम हे
छितका ह देखे म कमंडल असन दिखथे। ऐला कोनो मेर भी टांग के रख सकथन। छितका ल घलो बनाए बर बस के पतला-पतला कांडी के उपयोग करथे। गांव घर म छितका म घी रखे बर अउ कोनो अइसने सामान जेला बिलई ह झन अमर सकें तइसने रखें बर कोनो जगा म टांग के रखथे।
रायपुर
Published: May 16, 2022 04:45:11 pm
छत्तीसगढ़ के संस्करीति म वन संपदा के भरमार हे। जंगलमन म गांव के मनखेमन के जीविका के उपयोगी सामान अब्बड़ अकन मिलथे। जेमा एकठन बढ़ उपयोगी जिनिस हे बांस। बांस के बने सामान ल बेच के गंवाई के मनखेमन अपन रोजी-रोटी कमाथें।
टुकना- टुकना बनाए बर बांस ल काट के वोला लंबा-लंबा रस्सी असन बना लेथे। जेला बांस के छिले चौड़ा पट्टी बांस म गूथ के बडक़ा आकार के गोल टुकना बनाथे। बड़े आकार के टुकना ह घर के उपयोग सामानमन, धान, चाउर, गहूं, चना धरे काम आथे।
टुकनी- टुकनी ल बांस के लकड़ी ल काड़ी असन छोटे छोटे टुकड़ा म छिल के निकाले के बाद टुकनी गुत्थे। टुकनी ह टुकना के छोटे आकार हवय। टुकनी के उपयोग सब्जी-भाजी रखें बर काम म आथे। ऐर संगे-संग नवरात के बेरा म भोजली बोए बर उपयोग म लाथे।
पररा- बांस के बने पररा छत्तीसगढ़ के घरोघर म देखे बर मिल जही। छत्तीसगढ़हीन दाई ृमन पररा के सहयोग ले बड़ी सुखाए के बुता म लेथे। ऐकरे संगे-संग सब्जी-भाजी रखे बर घलो ऐर उपयोग करथे। छत्तीसगढ़ी परिवार के बिहाव म पररा के अब्बड़ बुता रहिथे। बिहाव सुरू होए के संग सब्बो नेग म पररा के काम रहिथे। कतको ठन नेग बिना पररा के नइ होवय।
पररी- पररी ल हमन छोटे पररा घलो कही सकथन। पररी ल माइलोगिनमन भात पसाय बर, कुछु कहीं ल परोसे बर प्लेट जइसे उपयोग करथे। ऐकर संग म छोटे-मोटे बरतन ल ढांके बर घलो पररी के उपयोग करथन। जेन घर म चूल्हा म हडिय़ा म भात रांधथे उहां पररी के उपयोग होथे। गंज के, डेचकी म भात पसाय बर पररी ह सहयोग करथे।
झउवा- छत्तीसगढ़ के किसान परिवार म ऐकर अब्बड़ महत्तम रहिथे। जिखर घर म गाय गरवा हे वोमन दाना, भूसी रखे बर, गोबर कचरा उठाये बर झउवा के उपयोग होथे।
खरेटा- खरेटा (बहरी) झाड़ू के दूसरा रूप आए। बांस के पतला-पतला कांडी ले ऐला बनाथे। गरवा कोठा ल बहारे बर, माटी वाले जगा ल साफ करें बर, गोबर कचरा ल बहारे बर खरेटा ल काम म लाथन। जिकर घर म गरवा कोठा रहिथे उंकर घर म खरेटा के अब्बड़ काम परथे। ऐकर संगे-संग खेती किसानी के बेरा ल घलो खरेटा काम म आथे।
सुपा- छत्तीसगढिय़ामन के घरोघर आपमन ल सुपा देखे बर मिल जाही। अभी के बेरा म बांस के सुपा के जगा प्लास्टिक के सुपा ह ले लेह हे। तभो ले गांव-घर म आपमन ल बांस के बने सुपा मिल जही। सुपा बढ़ काम के हवय। घर के माइलोगिन मन चाउर-धान पछिने बर (साफ करे बर) सुपा ल काम म लेथे। धान से चाउर से गोटी माटी ल पछिने बर सुपा के बढ़ जरूरत पड़थे।
सुपेली- बांस के बने सुपा के छोटे रूप हवय सुपेली। सुपेली पहली बांस के जादा मिले। अभी के बेरा म प्लास्टिक के सुपेली के चलन जादा बाढ़ गे हे। सुपेली म धान, भूसी, कचरा सब्बो उठाए के बुता म लाथे।
दौरी- दौरी बांस के बने टुकना आए। ऐमा धान चाउर ल रखथे। खाली टुकना म घलो धान चाउर ल रख सकथे। फेर ऐमन म धान चाउर ह अब्बड़ अकन फंस जाथे। जेकर सेती सामान्य टुकना के जगा म दौरी ल रखथे। दौरी ल बनाए बर टुकना ल गोबर अउ माटी के लेप ले पोतथे जेकर ले वोहा अउ मजबूत हो जथे। संगे-संग वोकर सब्बो छेदरामन भर जाथे। ऐला लिपे के बाद सुखाए बर छोड़ देथे। सूखे के बाद ऐमा धान-चाउर ल सहेज के रखे बर नापे बर एक जगा ल दूसर जगा रखे बर काम म लाथे।
झांपी- झांपी ल बनाए बर बांस के पतला-पतला छिलका निकाल के वोला गुथे जाथे। जेमा छोटे-छोटे छेदा रहिथे जेकर ले हवा ह वोकर भीतरी अउ बाहिर जा सके। ऐला अउ सुग्घर बनाए बर ऐकर पट्टीमन ल अलग-अलग रंग ले रंग देथे। जेकर से देखे म अब्बड़ सुग्घर दिखथे। झांपी ल मनखेमन कुकरा-कुकरी तोपे बर, छोटे चिरई चुरगुन ल टोपे बर, बदक ल तोपे बर राखे रहिथे।

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