दिव्यांग बच्चे अपने-अपने घरों में रहते हुए शिक्षकों की मदद से विडियो कॉल के माध्यम से विभिन्न कलाकृतियां बनाना सीख रहे हैं। गणेशोत्सव के लिए शिक्षक चंद्रपाल पांजरे और कृष्णा दास ने विद्याथियों को मिट्टी से इको फ्रेंडली गणेश की मूर्तियां बनाना सिखाया है। इससे बच्चों में रचनात्मकता के विकास के साथ उनके समय का सदुपयोग भी हो रहा है। आगे चलकर उनका यही हुनर उनके लिए आत्मनिर्भरता का पर्याय बन सकता है। राजधानी के माना स्थित दिव्यांग महाविद्यालय इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय खैरागढ़ से मान्यता यह छत्तीसगढ़ का एकमात्र दिव्यांग महाविद्यालय है जहां दृष्टिबाधित, अस्थिबाधित बच्चे शास्त्रीय गायन और तबला बादन तथा मूक-बधिर चित्रकला की विधिवत शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं।
दिव्यांग महाविद्यालय में मूर्तिकला सीख रहे 17 विद्यार्थियों में से कुम्हारी निवासी बी.एफ.ए. (बैचलर ऑफ फाइन आटर््स) की मूकबधिर छात्रा नेहा दुबे और कोरबा निवासी मूकबधिर छात्र हेमप्रकाश साहू ने भी ऑनलाइन कक्षा में सीखकर गणेश की सुंदर प्रतिमाएं तैयार की है। नेहा के पिता पी.एन.दुबे ने बताया कि नेहा ने घर के पास रखी काली मिट्टी से गणेश की दो प्रतिमाएं बनाई है। जिसमें से एक प्रतिमा 200 रुपए में बिक गई और एक प्रतिमा की घर में पूजा कर रहे हैं। अभी कॉलेज बंद है ऐसे में नेहा वॉट्सअप और वीडियो कॉल के माध्यम से अपने शिक्षकों से मार्गदर्शन लेती रहती है। वह सभी प्रकार की प्रतिमाएं बना लेती है, नहा का ये हुनर उसके भविष्य के लिए सहायक होगा।