scriptवेस्ट से बेस्ट: पैरे के फाइबर से बनाया सेनेटरी नैपकिन | Best from the West: Sanitary napkins made of pare fiber | Patrika News

वेस्ट से बेस्ट: पैरे के फाइबर से बनाया सेनेटरी नैपकिन

locationरायपुरPublished: Nov 19, 2019 01:47:59 am

Submitted by:

lalit sahu

सुमिता के रिसर्च की मानें तो पैरे में 30 से 45 प्रतिशत सैलिलुज होता है जिसे हम फाइबर भी बोल सकते हैं। यही फाइबर पैड बनाने के लिए काम आता है। पूरी तरह हाइजीन भी।

वेस्ट से बेस्ट: पैरे के फाइबर से बनाया सेनेटरी नैपकिन

सुमिता धमतरी की रहने वाली है। उन्होंने फूड एंड न्यूट्रिशियन में एमएससी किया है।

रायपुर. पिछले साल अक्षय कुमार की मूवी पैडमैन ने न सिर्फ सफलता के रेकॉर्ड बनाए बल्कि समाज हाईजीन का मैसेज के साथ इस विषय पर चर्चा का स्वस्थ माहौल भी बनाया। इन दिनों दिल्ली एनसीआर में पारली के जलने से पॉल्यूशन की खबरें सुर्खियों में है।
एेसे में एग्री वेस्ट से हाईजीन मेंस्ट्रुल प्रोडक्ट की शुरुआत एक महिला ने की है। इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय की इंक्यूबेटर सुमिता पंजवानी ने पैरे से सेनेटरी नेपकीन बनाने का आइडिया इजाद किया है। हालांकि इनका प्रोजेक्ट अभी प्रोटोटाइप है। ग्रांट मिलते ही इसकी कमर्शियल शुरुआत हो जाएगी। सुमिता धमतरी की रहने वाली है। उन्होंने फूड एंड न्यूट्रिशियन में एमएससी किया है।

एेसे आया आइडिया
सुमिता ने बताया कि वे आर्ट ऑफ लिविंग से जुड़ी हैं। संस्था के पवित्रा कार्यक्रम के तहत बीते 10 वर्षों से रुरल इलाकों में स्वच्छा को लेकर अवेयर कर रही हैं। इस दौरान ये बात सामने आई कि महिलाएं माहवारी के दौरान हाईजीन का ध्यान नहीं देती। सुमिता ने इस पर रिसर्च किया तो पाया कि वल्र्ड में होने वाली मौतों का एक चौथाई सर्वाइकल कैंसर है और यह बीमारी पीरियड के दौरान अनहाइजेनिक इस्तेमाल से होती है।

पैरे में यह खासियत
वैसे तो पैरा जलने पर प्रदूषण का बड़ा कारण बनता है जिसका उदाहरण हम दिल्ली-एनसीआर में देख रहे हैं। इससे मिट्टी को भी नुकसान हो रहा है। सुमिता के रिसर्च की मानें तो पैरे में 30 से 45 प्रतिशत सैलिलुज होता है जिसे हम फाइबर भी बोल सकते हैं। यही फाइबर पैड बनाने के लिए काम आता है। पूरी तरह हाइजीन भी। फिजिकल और केमिकल प्रक्रियाओं से गुजरकर यह कंफर्टेबल नेपकिन बनता है।

रोजगार भी मिलेगा
इस प्रयोग से सुमिता ने न सिर्फ स्टार्टअप किया है बल्कि आने वाले दिनों में ग्रामीण इलाकों में रोजगार के अवसर भी होंगे। चूंकि गांवों में पैरा पाया जाता है। वहां के लोग इसका इस्तेमाल कर एंटरप्रिन्योर बन सकते हैं।

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