भजन में आध्यात्म शामिल है?
पहली बात मैं उस बात को नहीं मानती की भजन गायकी कुछ अलग है। जिसको संगीत का स मिल गया वह कुछ भी गाए। मैं भी आशाजी, लताजी के साथ श्रेया, अलीशा, मोनाली ठाकुर तक के गीत गाती हूं। यदि इंसान अच्छा है तो फिर भजन हो या गीत भाव अपने आप आएगा। आध्यात्म मन की शक्ति है जो ब्रह्मांड से हमें लेनी है उसके लिए मन का पात्र साफ और खाली होने चाहिए।
संगीत की शिक्षा कहां से ली?
संगीत बचपन से मिला। याद नहीं किस उम्र से गाना शुरू किया। स्कूल में म्यूजिक विषय था। बाद में कई संगीत विद्यालयों से सीखा। गायक हेमन्त कुमार के दामाद गौतम मुखर्जी से सीखा। रायपुर में बसंत टिमोथी से सीखा। सबसे बड़े गुरु रविन्द्र जैन हैं। उनके साथ बहुत स्टेज शो किए। एलबम्स में गाया। अनूप जलोटा,अनुराधा पौडवाल, साधना सरगम, मोहम्मद अजीज के साथ बहुत एलबम किए।महारथियों के साथ गाकर क्या सीखा?
महारथियों के साथ यही सीख मिलती है कि कड़ी मेहनत करो। हम्बल रहो। अपना काम खामोशी से करते रहो। सबसे ज्यादा दादू यानी रविन्द्र जैन जी से सीखा। वो एक विद्वान थे।सोशल मीडिया से मिली तरक्की को किस नजर से देखती हैें?
बहुत जल्दी तरक्की कभी भी तरक्की नहीं होती। संगीत में तो बिल्कुल नहीं। क्योंकि कुछ दिन की पॉपुलैरिटी और उस से अपनी जीविका चलानी 2 अलग बातें हैं। संगीत सीखने वाला ताउम्र साधक होता है इसलिए सीखते रहने की इच्छा और पैशन बहुत जरूरी है। कामयाबी मिलने से ज्यादा उसे संभाल कर रखना जरूरी है।