देवी गंगा, देवी गंगा, देवी हे दू गंगा, हमर भोजली दाई के सोने-सोन के अचरा
भोजली कस दवना, जंवारा, गोवरधन,रैनी, महापरसाद, गंगाजल अउ तुलसी जल घलो बदथे। फूल-फूलवारी ह मित-मितानी के चिन्हारी कराथे। सियानमन कहिथें- ककरो न ककरो संग मितान बद ले रे भई, सुख-दुख म काम आही।
रायपुर
Published: August 01, 2022 04:31:22 pm
सावन महीना म अंजोरी पाख के आठे के दिन भोजली खातिर कडऱा घर ले टोपली, पररी अउ कुम्हार घर ले खातु माटी लाने के नेंग हे। भोजली बोवइया ह नवे के दिन उपास रहि के सराजाम के इंतजाम करे म जुट जथे। टुकनी म खातु माटी भर के गहूं के बांवत करे के बाद माटी के दीया बार के पिंयर पानी छिंच के कुमकुम लगा के पूजा करथे। सात दिन ले रोज भोजली दाई के सेवा होथे। भाई-बहिनी के पावन तिहार भोजली ल खास तौर ले छत्तीसगढ़ म लोधी जात के मन गजब मानथे। भोजली तिहार कोनो कहिनी किस्सा नोहे, बल्कि ए तो इतिहास ले जुड़े हे।
मोहबा के राजकुमारी इन्द्रवली ह हर बच्छर किरती सागर म भोजली सरोवय। एक समे अइसे अइस जब राजा परमाल के राज ल चारों कोती ले दिल्ली के पृथ्वी राज चौहान के सेना ह घेर लिन। ठउंका के समे मोहबा म जबर समसिया खड़ा हो जथे के भोजली कइसे सरोए जाए। इन्द्रावली के भोजली सरोए के परन ल निभाए खातिर उदल ले बीड़ा उठवाथे। तभे तो उदल दुसमन के सेना ल खेदार के परमाल के दुलौरिन के परन ल पूरा करथे। इन्द्रावली के भोजली उगोना के बात ह आल्हा म घलो पढ़े बर मिलथे।
जंह बीड़ा दीन्ह मड़ाय
कउनो वीर मोहबा के रे
जेहा बीड़ा लेहू उठाय
अउ इन्द्रावली के भोजली ल रे
तरिया म देहू सरवाय
लोधी जात के मन जउन लडक़ी के सावन म भोजली उगोना होथे वोकर गवना अवइया बइसाख म देथे। धीरे-धीरे एहू ह नदावत जात हे। उगोना लडक़ी ह सात दिन ले बांटी-भांवरा बनाथे। सातवां दिन सबो ल सकेल के कुआं -बावली म ठंडा कर देथे। सात दिन के सेवा जतन करे के बाद पुन्नी (रक्छाबंधन) के दिन भोजली ल राखी चघा के परसाद बर चनादार भिंगो देथे।
लोगनमन के अइसे मानना हे के कान म दवना पान खोंचे ले भूत परेत, मरी-मसान ह तीर तखार म नइ ओधय अउ टोनही-टम्हानी के आंखी ह पटपट ले फूट जथे। उगेना के रसुम ल निभाए खातिर लडक़ी ह भोजली ल मुड़ म बोहि के पररी के भोजली ल जेवनी हाथ म धरे सब ले आगू म खड़े रहिथे। गांव वालेमन जान डरथे के एसो फलानी के गवना होही। लडक़ी के पाछू म पारा मुहल्ला अउ सगा-सोदर के नोनीमन भोजली ल बोही के खड़े रहिथे। देखे ले अइसे लागथे कि पाछू खड़े नोनीमन अपन उगोना के बाट जोहत हे। घम-घम ले जागे भोजली ल सियानमन के अनुभवी आंखी ह देख के जान डरथे के एसो समे सुकाल होही।
भोजली ह गांव के सबो गली म घुमत गउरा चउंरा डाहर के होवत तरिया जाथे। हरियर पिंवरी भोजली के रेम ल देखे ले अइसे लागथे जानो.-मानो घनहा ले धान अउ भररी ले कोदो ह गली किंदरे बर आए हे। गांवभर के लइका-सियान भोजली कारयकरम संघरत गीत गावत ठंडा करे खातिर तरिया पहुंचथे।
देवी गंगा, देवी गंगा,
देवी हे दू गंगा>
हमर भोजली दाई के
सोने-सोन के अचरा।
हमर देवी दाई के
बड़े-बड़े नखरा।
एकठन कोदो के दूई ठन भूंसा
नान-नान हवन भोजली
झन करहू गुस्सा।
अहो भोजली गंगा
अहो भोजली गंगा।
गंगा पखारे तोर नवमुठा तिरनी, दुघे पखारे लामी केस। गीत गावत तरिया के पानी करा पार म भोजली के पांव पखारे जाथे। भोजली के पूजा पाठ कर के पानी म विसरजन कर देथे। भोजली ल पानी म सरोए के बाद भोजली ल पानी भीतर उखान के अउ टोपली ल खलखल ले धो के पार म लान लेथे। चनादार, सक्कर, खीरा अउ खुरहोरी के परसाद के संग दू-दू डारा भोजली ल घलो बांटथे।
भोजली पा के सबझन धन्य हो जथे। कतकोमन जेकर से मन मिल जथे वोकर संग मितान बद डरथे। मितानी के रिस्ता पीढ़ी दर पीढ़ी रहिथे। रद्दा-बाट, हाट-बजार अउ खेत-खार म कोनो मितान संग भेंट हो जथे त सीताराम भोजली कहि के एक-दूसर ल सम्बोधित करथें। तरिया म भोजली ल ठंडा करे के बाद सुआ नाचथे। गीत म नारी के पीरा ह जगजग ले झलकथे।

देवी गंगा, देवी गंगा, देवी हे दू गंगा, हमर भोजली दाई के सोने-सोन के अचरा
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