पहली बार नहीं हुआ है एेसा
प्रदेश कांग्रेस में कार्यकारी अध्यक्ष का फॉर्मुला नया नहीं है। संयुक्त मध्य प्रदेश के समय भी एेसा होता रहा है। २००८ के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले दो डॉ. चरणदास महंत और सत्यनारायण शर्मा को कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया था। उस समय धनेंद्र साहू प्रदेश अध्यक्ष थे। 2013 के चुनाव में उतरने से पहले झीरम की घटना में कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं की पूरी कतार खत्म हो गई थी। आनन फानन में चरणदास महंत को कार्यवाहक अध्यक्ष की जिम्मेदारी देकर कांग्रेस चुनाव में उतरी थी।
तीनों शीर्ष पदों पर जोगी के पूर्व सहयोगी
बदलाव के बाद कार्यकारी अध्यक्ष और उपनेता प्रतिपक्ष के पद पर आए तीनों नेता रामदयाल उईके, शिव कुमार डहरिया और कवासी लखमा कभी अजीत जोगी के काफी नजदीकी माने जाते थे। जोगी के कांग्र्रेस छोडऩे के बाद तीनों ने संगठन के साथ रहना ठीक समझा। शिव डहरिया अभी अनुसूचित जाति विभाग के प्रदेश अध्यक्ष हैं। वहीं उईके ने पिछले दिनों आदिवासी नेतृत्व का मामला उठा चुके हैं।
मुख्यमंत्री पद के तीन चेहरे!
इस बदलाव की वजह से अभी तक हासिए पर नजर आ रहे डॉ. चरणदास महंत केंद्रीय भूमिका में दिखने लगे हैं। कांग्रेस ने २०१३ का विधानसभा चुनाव उन्हीं की अध्यक्षता में लड़ा था। कहा जा रहा,अमूमन मुख्यमंत्री पार्टी अध्यक्ष अथवा नेता प्रतिपक्ष ही बनता है। उसके बाद उसका नाम आता है, जिसने चुनाव अभियान का संचालन किया। एेसे में महंत के रूप में एक और दावेदार खड़ा हो गया है। इस समिति में पुराने रणनीतिकार रहे विधायक सत्यनारायण शर्मा के हिस्से कोई विशेष भूमिका नहीं आई है।