scriptभाईचारा, वात्सल्य, आराधना और भक्तिभाव भी हैं धर्म के रूप | Brotherhood, worship and devotion are also forms of Religion | Patrika News
रायपुर

भाईचारा, वात्सल्य, आराधना और भक्तिभाव भी हैं धर्म के रूप

शास्त्र की अनुप्रेक्षा में बहुत गहरा चिंतन है। पहले आप निर्णय करके अपने आप में दृढ़ हो जाओ। वस्तु का जो स्वभाव है वह धर्म है। इसलिए वस्तु स्वभाव की फिक्र करो, धर्म की फिक्र मत करो। वस्तु स्वभाव की फिक्र करोगे तो धर्म हो जाएगा। हिंसा से रहित धर्म होता है। भाईचारे में धर्म है, प्रेम वात्सल्य में धर्म है, भक्तिभाव में धर्म है। आराधना में धर्म है। सभी एक ही रास्ते पर चलते हुए भी सभी के अनुभव अलग अलग हैं। जब भी आपको धर्म की बात करनी होगी तो अहिंसा, अपरिग्रह, सत्य की बात करनी पड़ेगी।

रायपुरOct 24, 2019 / 08:27 pm

Nikesh Kumar Dewangan

भाईचारा, वात्सल्य, आराधना और भक्तिभाव भी हैं धर्म के रूप

मुनि प्रसम सागर के दादाबाड़ी में प्रवचन

रायपुर. राग के अंतर्गत हम सोचते हैं कि अच्छा कर रहे हैं लेकिन बुरा हो जाता है। हम किसी को सुधारने के चक्कर में खुद बिगड़ते चले जाते हैं। धर्म से इतने भर जाओ कि लोग कहें यह होता है धर्मात्मा। धर्म करोगे तो धर्म हो जाएगा। हम धर्म की फि क्र करते हैं और स्वभाव की फि क्रभूल जाते हैं। हमें पता नहीं होता कि धर्म कर क्यों रहे थे। वनस्पति सहारा लेती है भूमि का और भूमि के अंदर तभी बीज डाले जाते हैं, लेकिन ये बाद में पता चलता है कि सहारा लिया जरूर था बाद में पता चलता है किसमें कांटे हैं और किसमें आम।
ये बातें मुनि प्रसम सागर ने चातुर्मासिक प्रवचन के दौरान कही। मुनिश्री ने कहा कि ऐसा कुछ करके दिखाओ जो आज तक ना किया हो। वही क्रोध, मांग, माया, व्यापार रोजाना करते हो, अब तो ऐसा परिवर्तन करो जो आज तक ना किया हो। हम बाह्य वस्तुओं के प्रति सतर्क हैं।
विचार कर्म का पहला चरण
हम बाह्य चीजों को परिवर्तित करते रहते हैं। विचार कर्म का पहला चरण है। और वह धीरे धीरे आपके अंदर में तरंग होता जाता है। जैसे विचार करते हैं वह अंतरंग में घना होता जाता है। एक विचार से चाहो तो समस्या को बड़ी कर लो या समस्या को छोटी कर लो। चाहो तो बड़ी समस्याओं को चुटकी में निकाल सकते हो। चिंता करोगे तो समस्या बड़ी हो जाती है। वहीं चिंतन से बड़ी समस्या हल होने लगती है। जब तक भावना नहीं बनेगी भाव कैसे उद्घाटित होंगे। जो विचार और भाव आप करते हो वह अंदर में सघन होता जाता है। इतना सघन हो जाता है कि हमारा कष्ट बन जाता है, वर्षों बाद घटना बन जाती है।

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