भिलाई स्टील प्लांट में कोक ओवन गैस पाइप लाइन में विस्फोट से 13 लोगों की मौत और 17 कर्मचारियों के झुलसने की घटना जितनी दुखद है, उतनी ही चिंतनीय भी है। दुखद इसलिए कि कोक ओवन में मरम्मत कार्य के दौरान सुरक्षा मानकों का सख्ती से पालन किया जाना चाहिए था, लेकिन असावधानी और लापरवाही बरतने के दुष्परिणाम स्वरूप इतना भयानक विस्फोट हुआ कि 30 कर्मी गंभीर रूप से झुलस गए। चिंतनीय इसलिए कि भिलाई स्टील प्लांट में गंभीर हादसे होना आम बात हो गई है। कुछ साल पहले ही कार्बन मोनो ऑक्साइड गैस रिसाव से 6 लोगों की दम घुटने से मौत हो गई थी। 32 से अधिक कर्मचारी गंभीर रूप से प्रभावित हुए थे। इस हादसे से एक बार फिर बीएसपी प्रबंधन की कार्यशैली और आंतरिक सुरक्षा इंतजाम सवालों के घेरे में हैं। कोक ओवन गैस पाइप लाइन की मरम्मत जैसी बेहद संवेदनशील व खतरनाक कार्य प्रारंभ करने से पहले पाइपलाइन में गैस खाली होने तक का इंतजार नहीं किया जाना यह बताता है कि कितनी लापरवाही से काम किया जा रहा था। इससे एशिया के सबसे बड़े संयंत्र में कर्मचारियों की जान की सुरक्षा को लेकर प्रबंधन द्वारा बरती जा रही घोर लापरवाही उजागर हुई है। संयंत्र कर्मियों के परिजन और आम जनता का दिल तो यह सोच कर ही बैठा जा रहा है कि अगर विस्फोट के बाद संयंत्र में आग फैल गई होती, तो सैकड़ों जानें जा सकती थी? हजारों लोग प्रभावित हो सकते थे? ऐसा गंभीर हादसा भविष्य में कभी नहीं होगा इसकी क्या गारंटी है? क्या सरकार व संयंत्र प्रबंधन की आंखें अब खुलेंगी? क्या संयंत्र में सुरक्षा के पुख्ता व पर्याप्त इंतजाम होंगे? संयंत्रों में हर हादसे के बाद सरकार ‘सांप निकलने के बाद लकीर पीटतीÓ नजर आती है। सवाल है कि क्या शासन-प्रशासन का काम सिर्फ दुर्घटनाओं के बाद जांच और घटना के दोषियों के खिलाफ कथित कार्रवाई करने तक ही सीमित है? क्या इनकी जिम्मेदारी दुर्घटनाएं रोकने के लिए संयंत्रों में सुरक्षा के समुचित व्यवस्था व सुरक्षा मानकों का पालन कराने की नहीं है? सुरक्षा व्यवस्था नहीं होने पर संयंत्रों को बंद नहीं करा देना चाहिए? बहरहाल, सरकार को बीएसपी सहित प्रदेश की तमाम औद्योगिक इकाइयों के प्रबंधकों को यह सख्त आदेश देना चाहिए कि कर्मचारियों की सुरक्षा सर्वोपरि हो।