scriptगुरु के वचनों पर विश्वास कर साधना करने से मिल जाते हैं भगवान: पंडित बद्री | By believing in the words of the Guru, God is found by doing spiritual | Patrika News

गुरु के वचनों पर विश्वास कर साधना करने से मिल जाते हैं भगवान: पंडित बद्री

locationरायपुरPublished: Jan 24, 2020 10:51:19 pm

Submitted by:

dharmendra ghidode

बिलाईगढ़ के भागवत चरणानुरागी पंडित बद्रीप्रसाद दुबे श्रद्धालुओं को कथा का श्रवण करा रहें है। उन्होंने कथा के तृतीय दिवस देवहूति एवं कपिल उपाख्यान का भावपूर्ण, रसमय, मार्मिक उद्धरण देते हुए अनोखे ढंग से कथा को कह कर श्रोता समाज को भावविभोर एवं मंत्रमुग्ध किए।

गुरु के वचनों पर विश्वास कर साधना करने से मिल जाते हैं भगवान: पंडित बद्री

गुरु के वचनों पर विश्वास कर साधना करने से मिल जाते हैं भगवान: पंडित बद्री

बिलाईगढ़. ग्राम गोविंदबन में गोरेबाई साहू, भूरेलाल साहू, अनीता साहू एवं उनके परिवार द्वारा श्रीमद् भागवत कथा आयोजित किया गया। इसमें ग्राम बिलाईगढ़ के भागवत चरणानुरागी पंडित बद्रीप्रसाद दुबे श्रद्धालुओं को कथा का श्रवण करा रहें है। उन्होंने कथा के तृतीय दिवस देवहूति एवं कपिल उपाख्यान का भावपूर्ण, रसमय, मार्मिक उद्धरण देते हुए अनोखे ढंग से कथा को कह कर श्रोता समाज को भावविभोर एवं मंत्रमुग्ध किए।
द्वितीय सत्र में ध्रुव चरित्र की कथा कहते हुए कथावाचक ने बताया कि अपने गुरु के वचनों पर विश्वास करके उनके बताए हुए नियमों के अनुसार साधना करते हैं तो ऐसे साधक को भगवान मिल जाते हैं। गुरु के वचनों पर जिन्हें विश्वास नहीं होता उन्हें स्वप्न में भी सुख नहीं मिलता न ही उन्हें सिद्धि मिलती है। इस बात को प्रात:स्मरणीय पूज्यपाद गोस्वामी तुलसीदास ने भी मानस में लिखा है। गुरु के वचन प्रतीति न जेही। सपनेहु सुगम न सुख सीधी तेही। साधना में यह भी आवश्यक है कि साधक का साध्य के प्रति प्रेम और भक्ति होना चाहिए। प्रेम और भक्ति पूर्वक साधना की जाए तो साध्य की प्राप्ति जल्दी हो जाती है। इसलिए साधक को प्रेम एवं भक्ति पूर्वक साधना करनी चाहिए। उन्होंने कथा में ध्रुव के चरित्र की कथा सुनाते हुए बताया कि राजा उत्तानपाद की दो रानियां सुनीति एवं सुरुचि थी। राजा छोटी रानी सुरुचि से अधिक स्नेह एवं प्यार करते थे। बड़ी रानी सुनीति का पुत्र ध्रुव था एवं छोटी रानी सुरुचि का पुत्र उत्तम था।
उत्तम हमेशा राजा के गोद में खेला करता था। एक दिन ध्रुव भी राजा के गोद में बैठकर खेल रहे थे उसी समय छोटी रानी सुरुचि आई और उसे यह सहन नहीं हुआ। उन्होंने ध्रुव को राजा के गोद से उठाकर हटा दिया और बोली कि राजा के गोद में बैठने के लिए सुरुचि के गर्भ से जन्म लेना होगा। इससे ध्रुव दुखित हुए एवं माता से सलाह लेकर वन को तपस्या के लिए चले गए। मार्ग में उन्हें नारदजी मिले, नारदजी ने ध्रुव को मंत्र एवं भगवान को ध्यान करने की विधि बताई।
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