रायपुर

जलसंसाधन विभाग के अफसरों ने की ये बड़ी हेराफेरी, कैग रिपोर्ट में हुआ खुलासा

जलसंसाधन विभाग के अफसरों की बड़ी लापरवाही सामने आई है। किसानों के लिए बनी परियोजनाओं से उद्योगों को पानी दिया, लेकिन जलकर की राशि भी नहीं वसूल सकी।

रायपुरJan 14, 2019 / 03:41 pm

Ashish Gupta

CAG reports reveals Rs 4000 crore scam in BJP govt in Chhattisgarh

रायपुर. जलसंसाधन विभाग के अफसरों की बड़ी लापरवाही सामने आई है। किसानों के लिए बनी परियोजनाओं से उद्योगों को पानी दिया, लेकिन जलकर की राशि भी नहीं वसूल सकी। नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) के मुताबिक गलत टैरिफ के प्रयोग के कारण दो कंपनियों से जलकर की कम दर पर वसूली की गई।
इसके अलावा एक अन्य कंपनी से बकाया जल प्रभार की वसूली नहीं होने के कारण 1.31 करोड़ रुपए के राजस्व की वसूली करने में जलसंसाधन विभाग नाकाम साबित हुआ है। इस प्रकरण को शासन के ध्यान में अगस्त 2017 में लाया गया था। अक्टूबर 2017 और मार्च 2018 के बीच स्मरणपत्र भी दिए गए थे। इसके बाद भी अगस्त 2018 तक कोई जवाब नहीं मिला।
कैग ने अपनी रिपोर्ट में पाया कि जल संसाधन विभाग ने 3.51 रुपए प्रति घन मीटर के हिसाब से जलकर लेना तय किया था। जबकि जल संसाधन संभाग दंतेवाड़ा के अभिलेखों की जांच में पता चला कि राष्ट्रीय खनिज विकास निगम और एस्सार स्टील लिमिटेड को 3.10 रुपए प्रति घन मीटर की दर से जल प्रभार लगाकर कंपनियों को अनुचित लाभ पहुंचाया गया।
इसके कारण शासन को 85.27 लाख रुपए के राजस्व की हानि हुई। हालांकि इस मामले में विभाग ने अपनी गलती स्वीकार करते हुए कंपनियों को अंतर राशि की मांग की है, जिसके विरुद्ध 20.94 लाख की वसूली की गई है। इसी प्रकार जल संसाधन निर्माण संभाग कसडोल ने मेसर्स साउथ एशियन एग्रो इंडस्ट्रीज लिमिटेड से 670.01 लाख रुपए की जलकर की वसूली नहीं हो सकी है।
 

मोहड़ परियोजना में 9.26 करोड़ रुपए का बेमतलब खर्चा
कैग ने अपनी रिपोर्ट में पाया है कि जल संसाधन विभाग ने भूमि अधिग्रहण की प्लानिंग किए बिना ही मोहड़ जलाशय परियोजना का कार्य प्रारंभ कर दिया। इसके लिए केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय से जलसंसाधन विभाग अनापत्ति प्रमाणपत्र ही प्राप्त नहीं कर सका। इस वजह से परियोजना में खर्च की गई 9.28 करोड़ रुपए बेमतलब खर्च हो गए। बालोद जिले में डौंडीलोहारा के ग्राम मोहड़ में जल संसाधन विभाग ने मोहड़ जलाशय परियोजना के निर्माण के लिए 228.23 करोड़ रुपए की प्रशासकीय स्वीकृति दिसम्बर 2009 और 125.04 करोड़ रुपए की तकनीकी स्वीकृति फरवरी 2010 में प्रदान की। कार्य को सितम्बर 2014 तक करना था, जिसे बढ़ाकर दिसम्बर 2016 तक कर दिया गया।

इस काम के लिए ठेकेदार को 94.25 करोड़ रुपए एकमुश्त निविदा पर सौंपा गया। इस काम के लिए जलसंसाधन विभाग ने केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय से खुद अनुमति लेने की बजाय ठेकेदार को ही इस काम के लिए अधिकृत कर दिया था। स्वीकृति मिलने के पहले ही ठेकेदार ने काम शुरू कर दिया। बाद में ठेकेदार ने 9.28 करोड़ रुपए की फीडर नहर के 55 फीसदी काम को करने के बाद वित्तीय हानि का हवाला देकर काम करने में असमर्थता जता दी।

विभाग के तर्क को किया खारिज
कैग को जलसंसाधन विभाग ने अक्टूबर 2017 में बताया कि कार्य प्रारंभ करने और भूमि अधिग्रहण एकसाथ करने का फैसला लिया गया था, लेकिन एमओइएफ द्वारा जून 2013 में नीति में परिवर्तन के कारण आवश्यक अनुमति मिलना बाकी है। जबकि वनभूमि निर्वनीकरण के प्रस्ताव वनविभाग के पास लंबित थे। कैग ने विभाग के इस तर्क को खारिज कर दिया, क्योंकि परियोजना के लिए सहमति शर्तों का उल्लंघन कर कार्य प्रारंभ कर दिया गया था।

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