ऐसी ही चेतावनी केंद्र में भाजपा सरकार के आने के तुरंत बाद 2014 में जारी हुई थी। उसी के बाद भाजपा के नेतृत्व वाली तत्कालीन राज्य सरकार ने 300 रुपए प्रति क्विंटल की दर से बोनस भुगतान से हाथ खींच लिया था।
खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति विभाग के अफसरों का कहना है कि ऐसा डीसेंट्रलाइज्ड प्रोक्यूरमेंट स्कीम के तहत केंद्र और राज्य के बीच हुए समझौते की वजह से है। प्रगतिशील किसान संगठन के संयोजक राजकुमार गुप्त का कहना है, अगर केंद्र का ऐसा दबाव रहा तो राज्य सरकार के सामने दोहरी चुनौती होगी। जितना चावल केंद्र सरकार खरीदेगी वह उसी के मान से न्यूनतम समर्थन मूल्य का भुगतान करेगी।
इससे राज्य सरकार का बोझ बंट जाएगा। लेकिन जो चावल केंद्र नहीं खरीदेगा उसका पूरा भुगतान यानी 2500 रुपए प्रति क्विंटल की दर से राज्य सरकार को ही करना होगा। दूसरी चुनौती बचे हुए चावल को सुरक्षित रखने की है। राज्य सरकार के पास भंडारण क्षमता नहीं है। इधर, राज्य सरकार संसाधनों पर पडऩे वाले बोझ को दूर करने के उपायों पर मंथन कर रही हैं। इसका क्या नतीजा निकलता है ये आने वाला वक्त बताएगा।
खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति निगम के सचिव डॉ कमलप्रीत सिंह ने बताया कि डीसीपी योजना के एमओयू की वजह से केंद्र का दबाव है। वे अभी केवल उसना चावल पर जोर दे रहे हैं। हमने कई बार उनसे केंद्रीय कोटे में लिए जाने वाले चावल की मात्रा 24 लाख मिट्रिक टन से बढ़ाकर 32 लाख मिट्रिक टन का आग्रह करते हुए पत्र लिखा है। चावल बचेगा, उसे यूनिवर्सल पीडीएस में लोगों को वितरित करने में इस्तेमाल किया जाएगा। इसके दूसरे उपायों के बारे में भी सोचा जा रहा है।
खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति निगम मंत्री अमरजीत भगत ने बताया कि केंद्रीय खाद्य मंत्री (Central food minister) से मुलाकात का समय मांगा है। मुलाकात होगी तो उनसे पूरी चावल खरीदने का आग्रह किया जाएगा। एक अनुरोध पत्र भी लिख रहा हूं। उम्मीद है कि इसको सुलझा लिया जाएगा।
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