आखिर कब बसेगा नया शहर, कब मिलेगी गरीब को दवा
लोगों ने मान लिया है कि सरकार की घोषणाओं और बजट प्रावधानों में दिमाग नहीं लगाएं तो ज्यादा अच्छा, क्योंकि सवाल जो खड़े होते हैं उनके जवाब नहीं होते हैं

राजेश लाहोटी @ रायपुर . बजट देखते-देखते कई साल हो गए। अब तो यह लगने लगा है कि क्या आगे भी इसी तरह बजट के नाम पर लोगों को बहलाया जा सकेगा। पक्ष के लिए अच्छा और विपक्ष के लिए नीरस साबित होने वाले बजट को लेकर अब पब्लिक भी कोई प्रतिक्रिया नहीं देती है। लोगों ने मान लिया है कि सरकार की घोषणाओं और बजट प्रावधानों में दिमाग नहीं लगाएं तो ज्यादा अच्छा, क्योंकि सवाल जो खड़े होते हैं उनके जवाब नहीं होते हैं। नया रायपुर को ही लेते हैं। जब से इस शहर की नींव डली है, तब से लेकर अब तक सोचिए कितने साल हो गए? शहर आज तक बसा ही नहीं है, लेकिन हर साल बजट में उसे 200-500 करोड़ रुपए की जरुरत होती है। क्यों? जितनी राशि अब तक नया रायपुर के नाम पर दी गई है, उससे कम में तो अब तक टाटा, जिंदल ने अपने शहर बसा दिए हैं। शिक्षा-स्वास्थ्य के नाम पर हजारों करोड़ का प्रावधान क्या वाकई लोगों की जिंदगी में बदलाव ला देगा? अब तक के बजट में किए गए प्रावधान, फंड आवंटन को देखें तो खुश हो जाएंगेे, लेकिन जब उनके जीवन को देखेंगे तो हैरान हो जाएंगे। उनका जीवन उसी तरह घिसटता हुआ दिखेगा। दवा-दारू की बात भी सामयिक है। हजारों करोड़ के हर साल के बजट प्रावधान के बावजूद गरीब बगैर दवाई के ही मर रहा है। कभी कावड़ में गर्भवती महिला को ला रहे हैं तो कभी मोटरसाइकिल पर बच्चों के शव को पोस्टमार्टम के लिए ले जाते हुए किसी पिता के कांपते हाथ दिखाई दे जाते हैं। एंबुलेंस नहीं है। सडक़ नहीं है, लेकिन बजट प्रावधान करोड़ों में है। रहा सवाल दारू का तो वह सहज उपलब्ध है। मेडिकल स्टोर नहीं मिलेंगे, लेकिन भट्टी जरुर मिलेगी। आखिर ऐसा क्यों हो रहा है?
दरअसल अब बजट में प्रावधान बढ़ाने की जरूरत नहीं है, बल्कि उसकी मानिटरिंग कैसी हो इस पर ध्यान देने की जरूरत है। सरकार को यह ध्यान रखना होगा कि पब्लिक के करोड़ों रुपए का सही उपयोग हो। क्योंकि बजट ठेकेदारों के लिए नहीं होता है, जो घोषणाओं को सुनते ही पूरे साल के टैंडर का खाका खींच लेते हैं। बजट उन अफसरों और दलालों के लिए भी नहीं होता है, जो कमीशन के चलते सरकार की महत्वपूर्ण घोषणाओं को बरबाद कर देते हैं। बजट केवल पब्लिक का होता है, जिसमें जीवन को बेहतर बनाने की बात होती है।
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