रायपुर

दुर्गम रास्तों से पैदल जाते हैं 20 किलोमीटर दूर कुल्हाडीघाट मतदान केंद्र

एक दिन पहले मतदान करने निकलते हैं कुरूवापानी, ताराझर के ग्रामीण

रायपुरJan 22, 2020 / 05:08 pm

Gulal Verma

दुर्गम रास्तों से पैदल जाते हैं 20 किलोमीटर दूर कुल्हाडीघाट मतदान केंद्र

मैनपुर। गरियाबंद जिले के आदिवासी विकास खण्ड मैनपुर के दूरस्थ वनांचल पहाड़ी पर बसे ग्रामों के विशेष पिछड़ी जनजाति के सैकड़ों कमार आदिवासियों को आजादी के 71 वर्षों बाद भी मतदान करने के लिए 20 किलोमीटर दुर्गम पहाड़ी रास्ता को पैदल तय कर कुल्हाडीघाट आना पड़ता है। उन्हें मतदान करने के लिए एक दिन पहले गांव से निकलना पड़ता है।
ग्रामीण इस उम्मीद के साथ लोकसभा, विधानसभा और पंचायत चुनाव में मतदान करने आते हैं कि उनके चुने हुए जनप्रतिनिधि चुनाव जीतने के बाद उनके गांव तक पहुंचने के लिए पक्की सडक, पेयजल, शिक्षा, बिजली, स्वास्थ्य जैसी मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध कराएंगे, लेकिन अब भी वे बुनियादी सुविधाओं के लिए तरस रहे हैं। किसी ने कोई पहल नहीं की है। चुनाव के एक दिन पहले पूरे गांव के मतदाता पैदल पहाड़ी रास्ते के सहारे कुल्हाडीघाट लगभग 20 किलोमीटर पैदल सफर कर आते हैं और रात्रि विश्राम कुल्हाडीघाट में करते हैं। साथ ही मतदान करने के बाद पुन: पैदल अपने ग्रामों के तरफ वापस जाते हैं। इस तरह उन्हें आने-जाने में लगभग 40 किलोमीटर पड़ जाता है। दिलचस्प यह है कि घने जंगलों और पहाडिय़ों के कारण सरकारी योजनाओं का लाभ यहां के ग्रामीणों को नहीं मिल पा रहा है। बड़े जनप्रतिनिधि तो दूर शासन के आला अफसर भी इन पहाड़ी ग्रामों में नहीं पहुंच पाते। जिसके कारण इन ग्रामों में विकास की रोशनी अब तक नहीं पहुंच पाई है।
राशन सामग्री के लिए घोडे का करते हैं उपयोग
21वंीं सदी मे राशन सामग्री ले जाने के लिए घोड़े का उपयोग करना पड़ रहा है। दुर्गम रास्ता व सड़क के अभाव मे पिछले कई वर्षं से राशन सामग्री के लिए आदिवासी कमार जनजाति के लोगों का एकमात्र सहारा घोड़े ही है। कुल्हाड़ीघाट के शासकीय राशन दुकान मे चावल, दाल मिट्टी तेल लेने पहाड़ी गांव भालूडिग्गी से पहुंचे ग्रामीण तुलासाय कमार, मनबोध कमार, मनराखन, देवींिसंग कमार ने बताया कि भालूडिग्गी पहाड़ी पर बसे ग्राम ताराझर,कुरूवापानी, भालूडिग्गी तक पहुंचने के लिए कोई भी सड़क का निर्माण सरकार द्वारा नहीं किया गया है। सुबह से जब राशन लेने के लिए
कुल्हाड़ीघाट के लिए निकलते हंै तो शाम चार बजे पहुंचते हंै और उन्हे पैदल घोड़े के साथ आना पड़ता है। गांव तक न तो साइकिल पहुंच सकती है और न ही कोई अन्य वाहन। इसलिए यहां के ग्रामीण घोड़े पाले हुए हैं।
वर्जन
ताराझर, मटाल, कुरूवापानी, भालूडिग्गी पहाड़ी के ऊपर बसा है। इन गांवों में पहुंचने के लिए सड़क नहीं है। इसलिए ग्रामीण घोड़े के सहारे राशन सामग्री कुल्हाडीघाट से गांव तक ले जाते हंै। इन ग्रामों के लोग मतदान के लिए एक दिन पहले कुल्हाडीघाट पहुंचते हैं, तब कहीं जाकर दूसरे दिन मतदान करते हैं।
– बनसिंग सोरीे, सरपंच, ग्राम पंचायत कुल्हाडीघाट

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