scriptयोग व प्राणायाम से बढ़ाएं शरीर की रोगों से लडऩे की क्षमता | cg news | Patrika News

योग व प्राणायाम से बढ़ाएं शरीर की रोगों से लडऩे की क्षमता

locationरायपुरPublished: Jul 08, 2020 05:55:59 pm

Submitted by:

Gulal Verma

ऋषि परंपरा का अनुसरण कर रह सकते हैं निरोगी : डॉ. इंदुभवानंद महाराज

योग व प्राणायाम से बढ़ाएं शरीर की रोगों से लडऩे की क्षमता

योग व प्राणायाम से बढ़ाएं शरीर की रोगों से लडऩे की क्षमता

रायपुर। छत्तीसगढ़ युवा विकास संगठन शिक्षण समिति द्वारा संचालित विप्र कला वाणिज्य एवं शारीरिक शिक्षा महाविद्यालय में मंगलवार को कोविड-19 महामारी में प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए अष्टांग योग विषय पर तीन दिवसीय नेशनल वेबिनार का शुभारंभ किया गया। इस अवसर पर स्वामी डॉ. इंदुभवानंद महाराज (प्रमुख शंकराचार्य आश्रम बोरियाकला) ने कहा, आज एक ऐसे रोग से पूरा विश्व ग्रसित है, जिसकी कोई औषधि नहीं है। सब भारत की ओर देख रहे हैं। जहां ऋषि परंपरा का अनुसरण करके हम निरोगी रह सकते हैं। प्रथम धर्म स्वस्थ रहना है। निरोगी काया प्रथम सुख है। स्वस्थ व्यक्ति का लक्षण वात, पित्त, कफ में संतुलन हो। जठा अग्नि सम हो, घात की समानता हो। अवशिष्ट पदार्थ शरीर से बाहर निकले, यह बाहरी स्वास्थ्य है। आत्मा, मन, इंद्रियों का संयम और प्रसन्नता आंतरिक स्वास्थ्य है। जो व्यक्ति बाहर और आंतरिक रूप से स्वास्थ्य है, वही वास्तव में निरोगी है। योग के आठ अंग इसी का उपाय बताते हैं।
प्रारंभ के तीन अंग यम, नियम, आसन साधन हैं, अंतिम तीन अंग धारणा, ध्यान, समाधि साधन हैं और बीच के 2 अंक प्राणायाम और प्रत्याहार इन दोनों को जोडऩे वाली सेतु है। प्राणायाम वात, पित्त व कफ के दोषों को दूर करके प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि करती है। योग के लिए शरीर को भी योग्य बनाना आवश्यक है। इसके लिए युक्त आहार और विहार आवश्यक है।
रोग प्रतिरोधक क्षमता बनाए रखने योग जरूरी
डॉ. भागवत सिंह (पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय ) ने अष्टंग योग का विस्तारपूर्वक व्याख्या करते हुए कहा, मानव शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता पहले से है, वह बना रहे इसके लिए योग आवश्यक है। शरीर को निरोगी रखने के लिए व्रत आवश्यक है। सभी धर्मों में व्रत की व्यवस्था है। इसे धर्म से इसलिए जोड़ा गया, ताकि व्यक्ति उपवास रहे। उपवास रहने से शरीर का विषैला तत्व खत्म हो जाता है।
प्रकृति से दूर होने से आती है विकृति
द्वितीय सत्र में डॉ. बृजेश सिंह (सीएसआईएल नई दिल्ली) ने प्रकृति और संस्कृति पर अपने विचार प्रस्तुत करते हुए कहा, जितने हम प्रकृति से दूर होते हैं, हममें विकृति आती है और हम अस्वस्थ होते हैं। जितने हम प्रकृति के निकट होते हैं, उतने ही हम स्वस्थ होते हैं। यही मानव संस्कृति है। आप कहीं भी प्रकृति के बिना संस्कृति की कल्पना नहीं कर सकते। प्राचीन नगरों, हड़प्पा आदि में अस्पताल के प्रमाण नहीं मिले, जो बताता है कि प्राचीनकाल में लोग प्रकृति से जुड़े होते थे, इसलिए निरोग रहते थे।
योग हमें बचा सकता है कोरोना से
प्राचार्य डॉ. मेघेश तिवारी ने वेबिनार की रूपरेखा पर प्रकाश डालते हुए कहा, कोविड-19 महामारी के समय योग एक ऐसा साधन है, जो हमें बचा सकता है। मैं खुद 20 वर्षों से योग और प्राणायाम से जुड़ा हूं, जिसका लाभ मुझे मिला है। इसका लाभ सब लें, वेबिनार का यही उद्देश्य है।
अपनाना होगा भारतीय संस्कृति को
डॉ. उषा दुबे (पंडित रविशंकर शुक्ल विश्व विद्यालय) ने कहा, वर्तमान परिदृश्य में योग आवश्यक और उपयोगी है। पूरे विश्व में भारत एक ऐसा देश है, जिसकी संस्कृति, विश्व का नेतृत्व करेगा, तभी मानव जाति बचेगा। आज भारतीय संस्कृति नमस्ते को पूरा विश्व अनुसरण कर रहा है। इसके बाद अंतिम सत्र में प्राध्यापकों और शोधार्थियों ने अपना शोध पत्र प्रस्तुत किए। द्वितीय दिवस 8 जून को विषय विशेषज्ञ डॉ. प्रज्ञा मित्रा (सहायक प्राध्यापक अभिलाषी आयुर्वेदिक महाविद्यालय एवं शोध संस्थान मंडी हिमाचल प्रदेश ) व योग आचार्य मनान कुमार (हिंदू बनारस विश्वविद्यालय) का व्याख्यान होगा। इसके बाद शोध पत्रों की प्रस्तुति होगी।
loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो