कांसे की थाली व बटकी बनाने वाले कारीगर हो रहे बेरोजगार
मशीनी युग में पुश्तैनी कार्य हुआ प्रभावित

नवापारा-राजिम। अगर इंसान के अंदर कुछ कर गुजरने का जज्बा हो तो उसे सफलता जरूर मिलती है, इसमें वक्त जरूर लगता है, मायूसी हाथ लगती है। एक समय ऐसा भी आता है जब इंसान टूट सा जाता हैं। कभी-कभी तो वह बिखर भी जाता है। ऐसे हालात में इंसान को धैर्य रखना बहुत जरूरी होता है। मेहनत व लगन से किया गया काम इंसान को शोहरत व दौलत दोनों ही दिलाता है।
छत्तीसगढ़ में नवापारा नगर को स्थापित करने का श्रेय कसेर (कंसारी) समुदाय को ही जाता है। उन्होंने अपनी मेहनत से अपने समुदाय के लोगों को लाकर नगर को बसाया और कड़ी मेहनत कर कांसे की थाली, थलकूर व बटकी बनाना प्रारंभ किया। ये वर्षों से अपना पुश्तैनी कार्य करते हुए चले आ रहे हैं। लेकिन वक्त की मार ने इन्हें बेरोजगार कर दिया है। इनका पुश्तैनी कार्य समय के साथ-साथ काफी प्रभावित हुआ है। मशीन से बनी कांसे की थाली व बटकी ने इनका स्थान ले लिया है। शुद्ध कांसे की बटकी व थाली बनाने वाले कारीगर आज बदहाली का जीवन जीने के लिए मजबूर है। फिर भी कांसे का काम नाम मात्र के लिए जारी है। आज भी छग के ग्रामीण अंचलों में कंसारी समाज व्दारा निर्मित कांसे के बर्तन हर शुभ व दुख के कार्य में उपयोग में लाते हैं। वर्तमान में इन कारीगरों के घर में रहने वाली महिलाएं कांसे की थाली पर सुंदर नक्काशी का कार्य कर रही हैं, जो दिखने में काफी खूबसूरत नजर आता ह,ै जिससे उन्हें थोड़ी बहुत आय हो जाती है।
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