छत्तीसगढ़ी भूले बिसरे गीतों को सुनकर दर्शक झूम उठे
राजिम माघी पुन्नी मेला के दूसरे दिन मुख्यमंच पर दूसरे दिन झमाझम प्रस्तुति

राजिम। राजिम माघी पुन्नी मेला के दूसरे दिन खैरागढ़ विश्वविद्यालय के कुलपति पद्मश्री सम्मानित डॉ. ममता चंद्रकार और लोककला मंच दुर्ग के कुलेश्वर ताम्रकार की टीम द्वारा शानदार प्रस्तुति दी गई। सर्वप्रथम मंच पर दुर्ग के कुलेश्वर ताम्रकार की टीम ने लगातार गीतों की बौछार की। दूसरे दिन सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आनंद लेने गरियाबंद जिले के कलेक्टर निलेश कुमार क्षीरसागर, पुलिस अधीक्षक भोजराम पटेल, अपर कलेक्टर जेआर चौरसिया, अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक सुखनंदन राठौर मंच पर उपस्थित थे।
कार्यक्रम की शुरुआत अरपा पैरी के धार, गणेश वंदना, आकाशवाणाी से प्रसारित होने वाले गीतों को जब दर्शकों ने सुना तो रेडियो का जमाना याद आ गया। हाय डारा लोर गेहे रे...। इस गीत ने दर्शकों को बांध रखने में सामर्थ दिखाई। कते जंगल कते झाड़ी कते बन मा ओ.. गीत ने धु्रव जाति में ममा फूफू के लडक़ी-लडका के विवाह के संबंध की जानकारी दी। स्वरगायक कुलेश्वर ताम्रकार का सबसे प्रसिद्ध गीत लहर मारे बुन्दिया जिन्दगी के नई हे ठिकाना लहरगंगा ले लेतेन जोड़ी, कईसे दिखत हे आज उदास रे कजरी मोर मैना, ये छत्तीसगढ़ी गीत का शान बना हुआ है। उसके बाद पंथी गीत तेहा बरत रईबे बाबा और फाग गीत गाकर मुख्यमंच को होली मय कर दिया। उनकी अंतिम प्रस्तुति ओम जय जगदीश थी।
मुख्य मंच पर दूसरे कार्यक्रम की कड़ी में खैरागढ़ विश्वविद्यालय के कुलपति पद्मश्री सम्मानित डॉ. ममता चंद्रकार यथा नाम तथा गुण छत्तीसगढ़ की स्वर कोकिला द्वारा एक नया आयाम स्थापित किया। कला की साधना से लोककला के क्षेत्र में सतत् ऊॅचाइयों की ओर अग्रसर रही। प्रेम चंद्रकार के मार्गदर्शन में लोककला मंच चिन्हारी बड़े-बड़े मंचों पर सफर कर रही है। उनकी टीम के द्वारा राजकीय गीत अरपा पैरी के धार,गीत के साथ इसी के साथ एक के बाद एक झमाझम प्रस्तुति दी गई। नवदुर्गा भवानी तोरे शरण में हो, इस भक्तिमय जसगीत से पूरा माहौल भक्ति के सागर में डूब गया। छत्तीसगढ़ की संस्कृति को उजाकर करती और अपनी परम्परा को बनाए रखने के लिए बिहाव गीत काकर घर मड़व गड़ाव, नदिया तीर के पटवा भाजी, राजिम के टुरा मन मट मट करथें, गीत में छत्तीसगढ़ में होने वाले बिहाव के रीति-रिवाजों का बहुत सुन्दर वर्णन किया। जिसमें छत्तीसगढ़ की सौंधी माटी की झलक दिखाई दी।
कर्मा नृत्य में सा...रिलो रे रिलो रे गेंदा फूल की मनमोहर प्रस्तुति दी गई। माते रहिबे माते रहिबे माते रहिबे अलबेला मोर...गीत को सुनकर तालियों की गूंज से पूरा परिसर झूम उठा। आदिवासियों की बोली-भाषा और उनके रहन-सहन को दर्शाता यह गीत ढोलक और मंजिरो की थाप पर कलाकारों की एक लय स्वर और ताल में नृत्य देख कर दर्शकों ने दांतो तले उंगली दबा ली। प्रेम चंद्राकार के द्वारा भात रांधेव साग रांधेव... तोर मया के मारे.. इस गीत में गांव रहने वाले भोले-भाले लोगों की आभाव को दर्शाया। कलाकारों ने मशाल लेकर बहुत की आकर्षक नृत्य प्रस्तुत किया, जिसने ने समां बांध दी। मोला कैसे लागे राजा मोला कैसे लागे जोड़ी मोला कैसे लागे ना, इसमें देवार संस्कृति को दर्शाया गया है। जिसमें बताया गया है कि वे अपने आजीविका किस प्रकार अर्जित करते है।
मंच संचालन पुरूषोत्तम चन्द्रकारए मनोज सेनए महेन्द्र पंत द्वारा किया गया। कलाकारों को कलेक्टर निलेश कुमार क्षीरसागर, पुलिस अधीक्षक भोजराम पटेल, अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक सुखनंदन राठौर, अपर कलेक्टर जेआर चौरसिया व जनप्रतिनिधियों के द्वारा स्मृति चिन्ह प्रदान किया गया।
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