त्याग के बिना नहीं आएगा आकिंचन : ब्रह्मचारी अनिमेष
नवापारा-राजिम। पर्युषण पर्व के आठवें दिन त्याग धर्म मनाया गया। त्यागधर्म के बारे में आचार्यों ने कहा कि प्राणी मात्र पर करुणा, सभी जीवों के प्राणों की रक्षा करना, धर्मात्माओं की सुरक्षा अभय- दान है शाकाहार, निर्दोष भोजन प्रदान करना दान है। उत्तम, मध्यम, जघन्य तीनों पात्रों को आठ योग्य भक्तिपूर्वक दान देने से उत्तम, मध्यम, जघन्य फल की प्राप्ति होती है। अज्ञानी जीव ध्वनि से प्रभावित होते है, लेकिन ज्ञानी जीव दिव्य ध्वनि से प्रभावित होते हैं। वहीं त्याग है, वहीं तप जहां आर्जव मार्दव धर्म है। जब तक त्याग नहीं आएगा तब तक आकिंचन आएगा कैसे? उक्त बातें ब्रह्मचारी अनिमेष भैया ने आज की धर्म सभा मे कही।
उन्होंने कहा कि राग का त्याग वस्तु का त्याग नहीं है। बिना वस्तु के त्याग के त्याग होता नहीं है। जहां-जहां वस्तु का त्याग है। वहां राग न हो ये नियत नहीं है। अतंरग का त्याग के बिना बहिरंग का त्याग त्याग नहीं होता है। जैसे पके आम का रंग बदल जाता है, ऐसे ही त्यागी का परिणाम बदल जाता है। भेष बदले न और तुम त्यागी बन जाओ ये असंभव है। अपनी सामथ्र्य देखकर त्याग करना चाहिए। वध करना और बदनाम करना दोनों ही वध है। वध करेगा तो एक ही बार मरेगा, लेकिन बदनाम करेगा तो क्षण-क्षण मरेगा। जब तक कार्य की सिद्धि न हो तब तक गुप्त रखना चाहिए। यदि प्रचार अधिक हो गया और कार्य नहीं हुआ तो फिर उसका जगत उपहास करेगा। लेन-देन कि दृष्टि में त्याग नहीं चलता है। धर्मसभा के पूर्व जिनसहस्त्रनाम का वाचन ज्योति जय कुमार जैन तथा नम्रता अम्बर सिंघई ने किया। सायंकाल की आरती तथा झांझ मंजीरे द्वारा बस स्टैंड स्थित पारसनाथ दिगम्बर जैन मंदिर में हुई। शांतिधारा के पुण्यार्जक- स्वर्ण कलश- जय श्रेणिक चौधरी, रजत कलश- निखिल, नीलम, नितिन, निश्चल जैन, रजत कलश- गजेंद्र, विराट विवेक सिंघई, दीप प्रज्वलन- संजय नाहर, पारसनाथ जिनालय में शांतिधारा के पुण्यार्जक – स्वर्ण कलश- सुनील जैन, रजत कलश- अनिल, अंकित, डॉ. अनुज जैन रहे।
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