विभिन्न विभागों में आउटसोर्सिंग
सरकार ने जहां विभिन्न विभागों में आउटसोर्सिंग की, तो पार्टी में कई महत्वपूर्ण काम आउटसोर्सिंग से भी कराए गए। इसी वजह से निष्ठावान कार्यकर्ताओं को दूर होना पड़ गया। पार्टी सूत्रों का कहना है कि कई वजहों से इस बार संगठन कमजोर हो गया था। इस बार अधिकांश जिलों में संगठन का विस्तार मंत्रियों और विधायकों की पसंद से हुआ था। यहां मंडल अध्यक्षों की नियुक्ति में पुराने कार्यकर्ताओं को जगह देने की जगह समर्थकों को प्राथमिकता दी गई।कई मुद्दों पर सरकार बैकफुट पर रही
इस बार सरकार के कई फैसलों का जमकर विरोध हुआ। स्थिति यह रही कि सरकार को बैकपुट पर भी जाना पड़ा। भू-राजस्व संहिता में संशोधन सबसे बड़ा उदाहरण है। आदिवासी समाज और कांग्रेस की वजह से विधानसभा में पास कानून सरकार ने वापस लिया। नि:शुल्क मोबाइल वितरण के लिए गांवों में टॉवर लगाने के लिए सरकार ने पंचायतों के पैसे लेने का फैसला लिया गया था। विरोध के बाद इसे भी वापस लिया गया। वहीं भोरमदेव अभयारण्य मामले में भी सरकार ने अपने हाथ खिंच लिए थे।
टिकट वितरण से बड़ा नुकसान
भाजपा के हार के पीछे टिकट वितरण को भी बड़ा फैक्टर माना जा रहा है। भाजपा 2013 के चुनाव में हारे ज्यादातर उम्मीदवारों पर अपना दावं खेला था। जबकि इनमें से कई उम्मीदवार ऐसे भी थे, जो 30 से 40 हजार मतों से पराजित हुए थे। वहीं टिकट वितरण में गुटबाजी की भी खबर है। अधिकांश क्षेत्रों में मंत्रियों और वरिष्ठ नेताओं की पसंद से ही टिकट का बंटवारा किया गया है।
केंद्रीय नेतृत्व का अति आत्मविश्वास
भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व मध्य प्रदेश और राजस्थान की तुलना में छत्तीसगढ़ की जीत को लेकर ज्यादा आश्वस्त थी। शीर्ष नेतृत्व ने ज्यादातर जिम्मेदारी प्रदेश नेतृत्व पड़ ही छोड़ दी थी। यही वजह है कि यहां केंद्रीय नेतृत्व ने अपनी ताकत कम लगाई। जबकि राजस्थान में कड़ी मेहनत के बाद नतीजों में आंशिक बदलाव लाने में कामयाब रहे। केंद्रीय नेतृत्व का अति आत्मविश्वास को भी हार के कारणों में गिना जा रहा है।
जनता को नहीं साध सका घोषणा पत्र
इस बार के चुनाव में भाजपा का घोषणा पत्र ज्यादा असरदार नहीं रहा। जनता के बीच में पैठ बनाने में पूरी तरह नाकाम साबित हुआ। घोषणा पत्र में किसानों की कर्ज माफी को लेकर कोई बड़ी घोषणा नहीं की गई थी। वहीं दैनिक वेतनभोगी कर्मचारियों को लेकर भी पार्टी के घोषणा पत्र में स्पष्ट उल्लेख नहीं था।