रायपुर

छत्तीसगढ़ के इन 39 सीटों पर सबकी नजर, जानिए किस पार्टी का पलड़ा है भारी

छत्तीसगढ़ के बारे में कहा जाता है कि जिसने जीता आदिवासियों का दिल उसने जीता चुनाव। यह बात काफ़ी हद तक सही भी है।

रायपुरSep 10, 2018 / 03:44 pm

Ashish Gupta

छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में कमजोर प्रदर्शन वाले बूथों पर राहुल और अमित शाह की नजर

आवेश तिवारी/रायपुर. छत्तीसगढ़ के बारे में कहा जाता है कि जिसने जीता आदिवासियों का दिल उसने जीता चुनाव। यह बात काफ़ी हद तक सही भी है। 90 सीटों वाली छत्तीसगढ़ विधानसभा में अनुसूचित जाति जनजाति के लिए 39 सीटें आरक्षित हैं यानि लगभग 45 फ़ीसदी उम्मीदवार इन्हीं सीटों से हैं।
2008 तक जनजाति बहुल सीटों में भाजपा का प्रदर्शन बेहद अच्छा था, लेकिन 2013 में कांग्रेस ने नतीजे एकदम पलट कर रख दिए। लोग याद करते हैं कि मतगणना के दौरान सबसे पहले जब इन्हीं आदिवासी बहुल सीटों के नतीजे सामने आने शुरू हुए तो कांग्रेस को ज़बरदस्त बढ़त मिलती दिखाई दे रही थी, बाद में शहरी क्षेत्रों में बीजेपी ने बाजी मार सत्ता हासिल कर ली। 2018 के विधानसभा चुनाव से पूर्व भी तमाम विश्लेषकों का मानना है कि अगर कांग्रेस जनजातियों के लिए आरक्षित सीटों पर अपनी पकड़ बनाए रखती है, तो बीजेपी के लिए राहें आसान नहीं होंगी।

बस्तर की 11 सीटों पर सबकी निगाहें
प्रदेश में अनुसूचित जाति की जनसंख्या 12.82 प्रतिशत है और अनुसूचित जनजाति की जनसंख्या 30.62 प्रतिशत। यानी कुल जनसंख्या का 43.44 प्रतिशत। छत्तीसगढ़ की राजनीति में बस्तर संभाग की 12 सीटों का बेहद महत्व है। जिनमें से 11 सीटें जनजातियों के लिए आरक्षित हैं। 2008 में बीजेपी ने बस्तर संभाग की आरक्षित सीटों में से 10 सीटें जीती थीं, लेकिन 2013 में बीजेपी को बस्तर संभाग में केवल 4 सीटें ही मिलीं। माना जा रहा है कि इस बार इन सीटों पर कड़ा संघर्ष होगा।

कांगेस
– अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित 10 सीटों में कांग्रेस ने कुल 1 सीट अपने नाम की है।
– अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित 29 सीटों में कांग्रेस ने 20 सीटों पर कब्जा किया है।
– अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित पर कांग्रेस की जीत का प्रतिशत 10 रहा।
– अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सीटों पर कांग्रेस की जीता का प्रतिशत 68.9 रहा।

कहां कौन भारी
छत्तीसगढ़ में सामान्य सीटों के अलावा अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षित सीटों पर भाजपा का प्रदर्शन हमेशा से अच्छा रहा है। जहां तक जनजातियों के लिए आरक्षित सीटों का सवाल है, इसमें कभी बीजेपी तो कभी कांग्रेस को बढ़त मिलती रही है। 2013 में बीजेपी ने अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित 10 में से आठ सीटें हथिया ली थी। वहीं कांग्रेस ने जनजातियों के लिए आरक्षित 29 में से 18 सीटों पर कब्जा जमा लिया, लेकिन चुनाव परिणाम बीजेपी के पक्ष में रहे, क्योंकि सामान्य सीटों पर वो कांग्रेस से आगे थी। गौरतलब है कि आरक्षित सीटों पर हार-जीत के फैसले का अंतर सामान्य सीटों की अपेक्षा कम रहता है। इसलिए इन सीटों पर संघर्ष भी ज्यादा है।

नदी घाटी मोर्चा गौतम बंद्योपाध्याय ने कहा कि वनाधिकार कानून के गैरजिम्मेदाराना क्रियान्वयन, बुनियादी सुविधाओं का अभाव और दमनकारी नीतियों के साथ-साथ अनुसूचित जाति जनजाति के प्रतिनिधियों के प्रति उदासीन रवैये से निस्संदेह आरक्षित समुदाय बेहद नाराज है। यह कहने में कोई अतिश्योक्तिनहीं है कि छत्तीसगढ़ में क्षेत्रीय मुद्दों पर आदिवासियों दलितों के मुद्दे हावी रहेंगे और परिणामों पर असर भी डालेंगे।
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