बताया जा रहा है कि पहले अकेले दम पर चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे अजीत जोगी को गठबंधन की जरूरत तब महसूस हुई जब वे बीमार होकर दिल्ली में इलाज करा रहे थे। कुछ ठीक होने के बाद 5 जुलाई को उन्होंने मायावती के घर जाकर पहली राजनीतिक मुलाकात की। पार्टी सूत्रों का कहना है कि उस मुलाकात मेंं ही जकांछ प्रमुख ने गठबंधन कर चुनाव लडऩे का पहला प्रस्ताव दिया था। उस समय मायावती ने उत्साह तो दिखाया लेकिन अपनी आदत के तहत तुरंत हामी भी नहीं भरी।
इस बीच लोकसभा चुनाव में भाजपा को रोकने के लिए विपक्ष के गठबंधन की चर्चा शुरू हो गई। मायावती ने उस गठबंधन की उम्मीद में अजीत जोगी के प्रस्ताव को आगे नहीं बढ़ाया। पिछले सप्ताह उस गठबंधन को परवान चढ़ता नहीं देखकर मायावती ने साफ कर दिया कि सम्मानजनक सीटें नहीं मिलने पर वे अकेले चुनाव लड़ने को तैयार हैं।
इससे पहले मायावती के दूत जोगी से मिलकर समझौते की शर्तों पर बात कर चुके थे। बुधवार सुबह अजीत जोगी और उनके पुत्र अमित जोगी दिल्ली पहुंच गए। दोनों ने सीटों के बंटवारे को अंतिम रूप से स्वीकार किया और गुरुवार को इसकी घोषणा लखनऊ से हुई।
जकांछ के प्रवक्ता सुब्रत डे कहते हैं, अजीत जोगी के कांशीराम से बेहद मधुर संबंध रहे हैं। मायावती उन्हें बड़े भाई की तरह मानती हैं। उन्होंने गठबंधन के लिए इशारा कर दिया तो फिर कोई अड़चन ही नहीं थी। बसपा के प्रदेश अध्यक्ष ओपी बाचपेयी का दावा है कि दोनों मिलकर इस बार सरकार बना रहे हैं। हालांकि बसपा से निष्कासित पूर्व विधायक कामदा जोल्हे और महासचिव मैनेजर प्रसाद मधुकर ने कहा, इस गठबंधन से भविष्य में बसपा को नुकसान उठाना पड़ेगा।
जैजैपुर, चंद्रपुर, जांजगीर-चांपा, बिलाईगढ़, पामगढ़, सारंगढ़, अकलतरा, सक्ती, मस्तुरी और नवागढ़ सीटों पर बसपा का प्रभावी वोटबैंक है। जनता कांग्रेस बिलासपुर की मरवाही, कोटा, मस्तुरी जैसी सीटों को एकतरफा जीतने का दावा कर रही है, हालांकि उनकी चुनावी परीक्षा बाकी है। बलौदा बाजार, रायपुर, महासमुुंद, धमतरी और गरियाबंद की सीटों पर भी जोगी का प्रभाव माना जाता है। हालांकि जोगी महासमुंद से ही लोकसभा का चुनाव हार चुके हैं।
जनादेश त्रिशंकू होने की संभावना बनी
कुछ राजनीतिक प्रेक्षकों की माने तो इस गठबंधन की वजह से मैदानी क्षेत्रों में त्रिकोणीय मुकाबला कांटे का हो गया है। अगर यह गठबंधन कुछ सीटें निकालने में कामयाब रहा तो भाजपा-कांग्रेस में से किसी को बहुमत नहीं मिलेगा। इस गठबंधन के लिए बसपा-जोगी की नीति भी फिलहाल यही दिख रही है कि उनके बिना सरकार न बने।