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Chaitra Navratri 2021: चैत्र नवरात्रि के तीसरे दिन होती है मां चंद्रघंटा की आराधना, जानिए पूजा विधि, मंत्र और भोग

locationरायपुरPublished: Apr 15, 2021 09:25:15 am

Submitted by:

Ashish Gupta

Chaitra Navratri 2021: चैत्र नवरात्रि के तीसरे दिन मां चंद्रघंटा (Maa Chandraghanta) की आराधना की जाती है। देवी चंद्रघंटा के सिर पर घंटे के आकार का अर्धचंद्र नजर आता है।

Navratri 2020 3rd Day Maa Chandraghanta Puja Vidhi

Navratri 2020 3rd Day Maa Chandraghanta Puja Vidhi

नवरात्रि के तीसरे दिन मां चंद्रघंटा की आराधना के लिए ब्रह्म मुहूर्त में स्नान कर साफ लाल या हलके भूरे रंग के वस्त्र धारण करें। सबसे पहले पूजा स्थान पर देवी की मूर्ति की स्थापना करें। सबसे पहले भगवान गणेश, मां दुर्गा और फिर मां चंद्रघंटा का ध्यान करें। इसके साथ ही सभी नव ग्रहों का ध्यान कर उन्हें प्रणाम करें। आप देवी मां को चमेली का पुष्प अथवा कोई भी लाल फूल अर्पित कर सकते हैं। इसके साथ लाल फल अर्पित करें। इसके बाद मां चंद्रघंटा को मेहंदी, सिंदूर, अक्षत्, गंध, धूप, पुष्प आदि अर्पित करें। पूजा के दौरान दुर्गा चालीसा का पाठ और दुर्गा आरती का गान करें।

मां चंद्रघंटा का पूजा मंत्र
या देवी सर्वभूतेषु मां चंद्रघंटा रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।

मां चंद्रघंटा का बीज मंत्र
‘ऐं श्रीं शक्तयै नम:’।

व्रत कथा
पौराणिक कथा के अनुसार एक बार देवताओं और असुरों के बीच लंबे समय तक युद्ध चला। असुरों का स्‍वामी महिषासुर था और देवताओं के स्‍वामी इंद्र देवता। महिषासुर ने देवताओं पर विजय प्राप्त कर इंद्र का सिंहासन भी हासिल कर लिया और स्वर्गलोक पर राज करने लगा। इसे देखकर सभी देवता गण परेशान हो गए और इस समस्‍या से निकलने का उपाय जानने के लिए त्र‍िदेव ब्रह्मा, विष्‍णु और महेश के पास गए। वहां जाकर देवताओं ने बताया कि महिषासुर ने इंद्र, चंद्र, सूर्य, वायु और अन्‍य देवताओं के सभी अधिकार छीन लिए हैं और उन्‍हें बंधक बनाकर स्‍वयं स्‍वर्गलोक का राजा बन गया है। देवताओं ने बताया कि महिषासुर के अत्‍याचार के कारण अब देवता पृथ्‍वी पर विचरण कर रहे हैं और स्‍वर्ग में उनके लिए स्‍थान नहीं है।

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यह सुनकर भगवान ब्रह्मा, विष्‍णु और महेश को बहुत क्रोध आया। क्रोध के कारण तीनों के मुख से ऊर्जा उत्पन्न हुई। देवगणों के शरीर से निकली ऊर्जा भी उस ऊर्जा से जाकर मिल गई। यह दसों दिशाओं में व्‍याप्‍त होने लगी। तभी वहां एक देवी का अवतरण हुआ। भगवान शंकर ने देवी को त्र‍िशूल और भगवान विष्‍णु ने चक्र प्रदान किया। इसी प्रकार अन्‍य देवी देवताओं ने भी माता के हाथों में अस्‍त्र शस्‍त्र सजा दिए। इंद्र ने भी अपना वज्र और ऐरावत हाथी से उतरकर एक घंटा दिया। सूर्य ने अपना तेज और तलवार दिया और सवारी के लिए शेर दिया।
देवी अब महिषासुर से युद्ध के लिए पूरी तरह से तैयार थीं। उनका विशालकाय रूप देखकर महिषासुर यह समझ गया कि अब उसका काल आ गया है। महिषासुर ने अपनी सेना को देवी पर हमला करने को कहा। अन्‍य दैत्य और दानवों के दल भी युद्ध में कूद पड़े। देवी ने एक ही झटके में ही दानवों का संहार कर दिया। इस युद्ध में महिषासुर तो मारा ही गया, साथ में अन्‍य बड़े दानवों और राक्षसों का संहार मां ने कर दिया। इस तरह मां ने सभी देवताओं को असुरों से अभयदान दिलाया।
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