रायपुर

Chaitra Navratri: नवरात्रि के छठवें दिन मां दुर्गा के कात्यायनी स्वरूप की होती है पूजा, जानें भोग विधि, बीज मंत्र और स्त्रोत पाठ

Chaitra Navratri 2021: चैत्र नवरात्रि का छठा दिन है। आज के दिन मां कात्यायनी (Maa Katyayani) की उपासना की जाती है। जानें भोग विधि, बीज मंत्र और स्त्रोत पाठ

रायपुरApr 18, 2021 / 09:21 am

Ashish Gupta

Navratri 2021: नवरात्रि का छठवां दिन आज: शीघ्र विवाह के लिए ऐसे करें मां कात्यायनी की आराधना

चैत्र नवरात्रि के छठवें दिन मां कात्यायनी की सच्चे मन से पूजा करने से वैवाहिक जीवन में भी लाभ मिलता है।

पूजन विधि
माना जाता है कि इस दिन मां कात्यायनी की पूजा करने से जो अविवाहित लोग हैं उनके विवाह में आ रही परेशानियां भी समाप्त हो जाती हैं कहा यह भी जाता है द्वापर युग में गोपियों ने भगवान कृष्ण को पति के रूप में पाने के लिए ही मां कात्यायनी की पूजा की थी। अगर किसी की कुंडली में बृहस्पति कमजोर हो ऐसे में मां कात्यायनी की उपासना जरूर करनी चाहिए।

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पूजा करने के लिए ब्रह्म मुहूर्त में स्नानकर पीले या सफेद रंग के वस्त्र धारण करें। इसके बाद कलश की पूजा करें। साथ ही नौ ग्रहों का आह्वान करें। इसके बाद मां दुर्गा आह्वान करें। फिर मां कात्यायनी का ध्यान करते हुए उन्हें प्रणाम करें। पूजा करते समय पीले या सफेद फूल पूजा मंत्र के साथ मां कात्यायनी के चरणों में अर्पित करें। इसके बाद मां को अक्षत, रोली, कुमकुम से तिलक करें। मां को लाल वस्त्र अवश्य अर्पित करें। हल्दी की गाँठ, पीले या सफेद अर्पित करें धूप दीपक जलाकर मां कात्यायनी का स्त्रोत पाठ करें।

पूजा मंत्र
या देवी सर्वभूतेषु माँ कात्यायनी रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।

मां कात्यायनी का स्त्रोत पाठ
कंचनाभा वराभयं पद्मधरा मुकटोज्जवलां। स्मेरमुखीं शिवपत्नी कात्यायनेसुते नमोअस्तुते॥ पटाम्बर परिधानां नानालंकार भूषितां। सिंहस्थितां पदमहस्तां कात्यायनसुते नमोअस्तुते॥

मां को लगाएं शहद का भोग

मां कात्यायनी को शहद का भोग लगाएं। कहा जाता है माता कात्यायनी को शहद अति प्रिय है। आज के दिन मां को मालपुए का भोग भी लगाया जाता है।

मां कात्यायनी का बीज मंत्र
क्लीं श्री त्रिनेत्रायै नमः।।

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व्रत कथा
पौराणिक कथा के अनुसार महर्षि कात्यायन ने मां आदि शक्ति की घोर तपस्या की थी। महर्षि की तपस्या से प्रसन्न होकर मां ने उन्हें उनके यहां पुत्री रूप में जन्म लेने का वरदान दिया था। मां का जन्म महर्षि के आश्रम में ही हुआ था। मां कात्यायनी का पालन पोषण कात्यायन ऋषि कात्यायन ने ही किया था। पुराणों के अनुसार जिस समय महिसासुर नाम के राक्षस का अत्याचार बहुत अधिक बढ़ गया था, उस समय त्रिदेवों के तेज से मां की उत्पत्ति हुई थी। मां कात्यायनी ने महर्षि कात्यायन के यहां अश्विन मास के कृष्ण पक्ष के चतुर्दशी के दिन जन्म लिया था।

उसके बाद ऋषि कात्यायन ने तीन दिनों तक पूजन किया था। मां ने दशमी तिथि के दिन महिसासुर नाम के राक्षस का अंत किया था। इसके बाद शुंभ और निशुंभ ने भी स्वर्गलोक पर आक्रमण करके इंद्र का सिंहासन छीन लिया था। साथ ही नौ ग्रहों को भी बंधक बना लिया था। अग्नि और वायु का बल पूरी तरह से उनसे छीन लिया था। दोनों असुरों ने देवताओं का अपमान कर उन्हें स्वर्गलोक से भी निकाल दिया था। इसके बाद सभी देवताओं ने मां की स्तुति की। इसके बाद मां कात्यायनी ने शुंभ और निशुंभ का वध करके देवताओं को इस संकट से मुक्ति दिलाई थी। मां ने देवताओं को वरदान दिया था कि संकट के समय वे उनकी रक्षा अवश्य करेंगी।

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