कृषि और सरकार का रिश्ता जितना सहज और समन्वय वाला हो, उतना ही अच्छा है। कृषि प्रधान प्रदेश में कृषकों की उपेक्षा हमें न केवल समस्याग्रस्त बनाएगी, बल्कि विकास के रास्ते से भटका भी देगी। राजनांदगांव में चने की वाजिब मूल्य के लिए जिस तरह से सत्याग्रह चल रहा है, उसकी हर तरह से प्रशंसा ही की जा सकती है। हमें यह
ध्यान रखना चाहिए कि विगत मौसम में सरकार ने पानी के अभाव के कारण किसानों को धान की खेती से रोका था और किसानों ने चने व दूसरी नकदी फसलों को तवज्जो देते हुए कदम आगे बढ़ाया था। बावजूद इसके न तो उत्पादित फसलों व सब्जियों का वाजिब मूल्य मिल रहा है, और न ही उन्हें सुरक्षित रखने के लिए वातानुकूलित भंडारगृह उपलब्ध हैं। पीड़ादायक व चिंता की बात तो यह है कि मजदूरी और लागत मूल्य नहीं निकल पाने से प्रदेश के किसान सड़क पर फसल फेंकने को मजबूर हो रहे हैं।
सर्वविदित है कि कभी प्राकृतिक आपदा तो कभी कीटप्रकोप के कारण फसल खराब होने से किसान तबाह हो जाते हैं। और, यदि कभी सौभाग्यवश अच्छी फसल हो गई तो उसका उचित मूल्य नहीं मिल पाता। खाद, बीज, कीटनाशक, बिजली,
पेट्रोल-डीजल , कृषि उपकरण. औजार, मजदूरी इत्यादि तमाम कृषि संबंधी संसाधन महंगे होने से कृषि घाटे का सौदा साबित हो रही है। फलस्वरूप, कर्जदार किसान आत्महत्या करने को मजबूर हो जाते हैं।
जैसे की सूचना आ रही है राज्य में चने की पैदावर बहुत अच्छी हुई है। ऐसे में किसानों की फसल को वाजिब मूल्य देते हुए खरीदना सरकार की प्राथमिकता होनी चाहिए। सरकार ने समर्थन मूल्य को लेकर जो घोषणा की है, वह कागजी ही है। उसका लाभ किसानों को नहीं मिल रहा है। अगर हम किसानों को उनकी फसल का वाजिब मूल्य नहीं देंगे तो बेशक प्रदेश पिछडऩे लगेगा। बिचौलिए और गलत तरीके से व्यवसाय करने वाले लोग अमीर हो जाएंगे और किसान गरीब हो जाएगा। सरकार को चना सत्याग्रह कर रहे किसानों की समस्याओं को तत्काल हल करने की दिशा में पहल करनी चाहिए।