अजादी के अजादी के लड़ई म छत्तीसगढ़ के योगदान
रायपुरPublished: Aug 17, 2018 06:20:07 pm
हमर इतिहास
अजादी के अजादी के लड़ई म छत्तीसगढ़ के योगदान
छत्तीसगढ़ म अजादी आंदोलन के अपन गौरवसाली इतिहास हावय। देस के अजादी म छत्तीसगढ़ के बहुचेत बड़का भूमिका रहिस। बछर 1857 के पहिली स्वतंत्रता संगराम म इहां के महत्वपूरन भूमिका रहिस हे। बछर 1857 के पहिली स्वतंत्रता आंदोलन से लेके 1947 के अजादी तक इहां घलो अंगरेजमन के खिलाफ सरलग संघर्स के दौर चलत रहिस। आदिवासीमन तो ऐकर से पहिलीच अंगरेजमन के खिलाफ बछर 1818 म अबूझमाड़ इलाके म गैंदसिंह के अगुवाई म बिदरोह के बिगुल फूंक दे रहिस।
सोनाखान के जमींदार सहीद वीरनारायन सिंह ह 1857 म अंगरेज सासन के खिलाफ बिदरोह के ऐलान करे रहिस। इतिहासकारमन बताथें के, 1856 म छत्तीसगढ़ म अब्बड़ अकाल परे रहिस। तब वीर नारायनसिंह ह साहूकारमन के अनाज ल लूट के गरीबमन म बांट दीस। जमाखोरमन ऐकर सिकायत अंगरेज सासन से कर दीन। मुकदमा लिखके वीरनारायन ल कैद कर लीन, फेर वोला जादा दिन कैद म नइ रख सकिन। वोहा अंगरेजमन के कैद ले भाग गीस। ऐकर बाद म वीर नारायन ह अंगरेजमन के खिलाफ सैनिक दल बनाइस अउ अंगरेजी हुकुमत के खिलाफ हमला बोल दीस। फेर, बेईमान जमीदारमन के मदद से अंगरेजमन वीर नारायन ल गिरफ्तार कर लीन अउ 10 दिसंबर 1857 के दिन रइपुर के अभु के जयस्तंभ चउंक म फांसी दे दीन। वइसे फांसी देय के बात केंद्रीय जेल परिसर म घलो कहे जाथे।
1858 म रइपुर म फौजी छावनी (सैनिक बिदरोह) बिदरोह होइस। वीरनारायन के सहीद होय ले अंगरेज सासन म काम करइया सैनिक हनुमान सिंह म बिदरोह भाव जागिस। 1858 म वोहा अपन दूझन संगवारीमन के संग मिलके एकझन रेजीमेंट अधिकारी के हतिया कर दीन। 6 घंटा तक बिदरोही सैनिक अउ अंगरेज सैनिकमन के बीच लड़ई चलिस। हनुमानसिंह ल अंगरेजमन नइ पकड़ पाइन, फेर वोकर सतराझन संगवारी सैनिकमन ल गिरफ्तार करके फांसी दे दीन। ऐकर बाद 1910 म बस्तर म होय आदिवासीमन ससस्त्र भूमकाल आंदोलन से अंगरेज हुकूमत हिल गे रहिस। लाल कालेन्द्र सिंह अउ रानी सुमरन कुंवर ह अंगरेजमन के खिलाफ बिदरोह के ऐलान करे रहिस। सेनापति गुंडाधुर रहिस।
छत्तीसगढ़ के परमुख स्वतंत्रता सेनानी : वीर नरायन सिंह, पंडित सुन्दरलाल सरमा, डॉ. खूबचंद बघेल, ठाकुर प्यारेलाल सिंह, डॉ. राधाबाई, पंडित वामनराव लारवे, रोहिनी बाई परगनिहा, केकती बाई बघेल, सिरीमती बेला बाई, सिरीमती फूल कुंवर बाई, मीनाक्छी देवी उर्फ मिनी माता, पंडित माधव राव सपरे, पंडित रविसंकर सुक्ल, महंत लछमीनारायन दास, सेठ सिवदास डागा, बाबू मनोहरलाल सिरीवास्तव, यति यतन लाल, परसराम सोनी, धनीराम वरमा, पंडित लखनलाल मिसरा, मौलाना अब्दुल रऊफ, सेठ अनन्तराम बरछिहा, केयूर भूसन, डॉ. दुरगा सिंह सिरमौर, डॉ. तेजनाथ खिचरिया, पंडित रामदयाल तिवारी, पंडित जयनारायन पांडेय, भगवती चरन सुक्ल, रेसमलाल जांगड़े, पंडित मोतीलाल त्रिपाठी, कन्हैयालाल बजारी, कुंजबिहारी चौबे, पंं ा्रामानंद दुबे, डेरहाराम धृतलहरे, रघुनाथ भाले, हृदयराम कस्यप, नंदकुमार दानी, पूरनलाल वरमा, हरिपरेम बघेल, डॉ. कोदूराम यदु, बाबूलाल वामरे, काकेश्वर चंद्र बघेल, लालमनि तिवारी, पंडित पंकज तिवारी।हमर इतिहास
अजादी के लड़ई म छत्तीसगढ़ के योगदान
छत्तीसगढ़ म अजादी आंदोलन के अपन गौरवसाली इतिहास हावय। देस के अजादी म छत्तीसगढ़ के बहुचेत बड़का भूमिका रहिस। बछर 1857 के पहिली स्वतंत्रता संगराम म इहां के महत्वपूरन भूमिका रहिस हे। बछर 1857 के पहिली स्वतंत्रता आंदोलन से लेके 1947 के अजादी तक इहां घलो अंगरेजमन के खिलाफ सरलग संघर्स के दौर चलत रहिस। आदिवासीमन तो ऐकर से पहिलीच अंगरेजमन के खिलाफ बछर 1818 म अबूझमाड़ इलाके म गैंदसिंह के अगुवाई म बिदरोह के बिगुल फूंक दे रहिस।
सोनाखान के जमींदार सहीद वीरनारायन सिंह ह 1857 म अंगरेज सासन के खिलाफ बिदरोह के ऐलान करे रहिस। इतिहासकारमन बताथें के, 1856 म छत्तीसगढ़ म अब्बड़ अकाल परे रहिस। तब वीर नारायनसिंह ह साहूकारमन के अनाज ल लूट के गरीबमन म बांट दीस। जमाखोरमन ऐकर सिकायत अंगरेज सासन से कर दीन। मुकदमा लिखके वीरनारायन ल कैद कर लीन, फेर वोला जादा दिन कैद म नइ रख सकिन। वोहा अंगरेजमन के कैद ले भाग गीस। ऐकर बाद म वीर नारायन ह अंगरेजमन के खिलाफ सैनिक दल बनाइस अउ अंगरेजी हुकुमत के खिलाफ हमला बोल दीस। फेर, बेईमान जमीदारमन के मदद से अंगरेजमन वीर नारायन ल गिरफ्तार कर लीन अउ 10 दिसंबर 1857 के दिन रइपुर के अभु के जयस्तंभ चउंक म फांसी दे दीन। वइसे फांसी देय के बात केंद्रीय जेल परिसर म घलो कहे जाथे।
1858 म रइपुर म फौजी छावनी (सैनिक बिदरोह) बिदरोह होइस। वीरनारायन के सहीद होय ले अंगरेज सासन म काम करइया सैनिक हनुमान सिंह म बिदरोह भाव जागिस। 1858 म वोहा अपन दूझन संगवारीमन के संग मिलके एकझन रेजीमेंट अधिकारी के हतिया कर दीन। 6 घंटा तक बिदरोही सैनिक अउ अंगरेज सैनिकमन के बीच लड़ई चलिस। हनुमानसिंह ल अंगरेजमन नइ पकड़ पाइन, फेर वोकर सतराझन संगवारी सैनिकमन ल गिरफ्तार करके फांसी दे दीन। ऐकर बाद 1910 म बस्तर म होय आदिवासीमन ससस्त्र भूमकाल आंदोलन से अंगरेज हुकूमत हिल गे रहिस। लाल कालेन्द्र सिंह अउ रानी सुमरन कुंवर ह अंगरेजमन के खिलाफ बिदरोह के ऐलान करे रहिस। सेनापति गुंडाधुर रहिस।
छत्तीसगढ़ के परमुख स्वतंत्रता सेनानी : वीर नरायन सिंह, पंडित सुन्दरलाल सरमा, डॉ. खूबचंद बघेल, ठाकुर प्यारेलाल सिंह, डॉ. राधाबाई, पंडित वामनराव लारवे, रोहिनी बाई परगनिहा, केकती बाई बघेल, सिरीमती बेला बाई, सिरीमती फूल कुंवर बाई, मीनाक्छी देवी उर्फ मिनी माता, पंडित माधव राव सपरे, पंडित रविसंकर सुक्ल, महंत लछमीनारायन दास, सेठ सिवदास डागा, बाबू मनोहरलाल सिरीवास्तव, यति यतन लाल, परसराम सोनी, धनीराम वरमा, पंडित लखनलाल मिसरा, मौलाना अब्दुल रऊफ, सेठ अनन्तराम बरछिहा, केयूर भूसन, डॉ. दुरगा सिंह सिरमौर, डॉ. तेजनाथ खिचरिया, पंडित रामदयाल तिवारी, पंडित जयनारायन पांडेय, भगवती चरन सुक्ल, रेसमलाल जांगड़े, पंडित मोतीलाल त्रिपाठी, कन्हैयालाल बजारी, कुंजबिहारी चौबे, पंं ा्रामानंद दुबे, डेरहाराम धृतलहरे, रघुनाथ भाले, हृदयराम कस्यप, नंदकुमार दानी, पूरनलाल वरमा, हरिपरेम बघेल, डॉ. कोदूराम यदु, बाबूलाल वामरे, काकेश्वर चंद्र बघेल, लालमनि तिवारी, पंडित पंकज तिवारी।