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छत्तीसगढ़ म जोत के परंपरा अउ परभाव

locationरायपुरPublished: Sep 26, 2022 04:46:23 pm

Submitted by:

Gulal Verma

धारमिक जगा, सक्तिपीठ अउ सिद्धपीठ म मुख्य जोत परज्वलन चकमक पथरा के तेज रगड़ ले निकले चिंगारी से होथे। फेर, जोत से जोत महुरत के मुताबिक जलाय जाथे। पहिली माटी के कलस बना के जोत जलाय जाय। फेर अब महंगई के सेती तांबा के कलस म जोत जलाथें। नवरातभर चौबीस घंटा सरलग जोत जलथे। वइसे बछर म चार नवरात होथे, फेर चइत अउ कुंवार नवरात म जोत कलस स्थापना होथे।

छत्तीसगढ़ म जोत के परंपरा अउ परभाव
छत्तीसगढ़ म जोत के परंपरा अउ परभाव
छत्तीसगढ़ म जोत ह सक्ति के पहचान आय। सुभ, मंगल के चिन्हारी आय। एहू जुन्ना रीत-रिवाज आय कि संसार म जतका जगा सक्तिपीठ अउ सिद्धपीठ हे उहां जोत जलाय जाथे। सरलग जोत जलत रहे वोकर घलो परमान मिलथे। जइसे नवरात पाख म तो घर-घर, परिवार म अपन सरधा-भक्ति के अनुसार साफ-सफई करके पबरित जोत जलाय जाथे, स्थापित करे जाथे।
धारमिक जगा, सक्तिपीठ अउ सिद्धपीठ म मुख्य जोत परज्वलन चकमक पथरा के तेज रगड़ ले निकले चिंगारी से होथे। फेर, जोत से जोत महुरत के मुताबिक जलाय जाथे। पहिली माटी के कलस बना के जोत जलाय जाय। फेर अब महंगई के सेती तांबा के कलस म जोत जलाथें। नवरातभर चौबीस घंटा सरलग जोत जलथे। वइसे बछर म चार नवरात होथे, फेर चइत अउ कुंवार नवरात म जोत कलस स्थापना होथे।
जोत ह परकास के संगे-संग बिकास के परिचय घलो देथे। परयावरन ल घलो सिरजाथे। तेकर सेती मंगल भावना से जोत जलाय जाथे। ऐकर से दोख मिटथे। तेकर सेती कोनो बदना बदके जोत जलाथे।
देसभर के संग छत्तीसगढ़ म अइसन कतकोन सामाजिक, धारमिक संगठन हें जिहां सलाना जलसा महोत्सव म सामूहिक जोत हजारों के संख्या म स्थापित करे जाथे।
छत्तीसगढ़ म जंवारा पाख म जोत जलाय के जुन्ना परंपरा हे। जंवारा म तो जलत जोत के संग बिसरजन जुलूस, गावत-बजावत, सेवा करत निकलथे। फेर, जतका सक्तिपीठ अउ सिद्धपीठ हे तिंहा के जोत बिसरजन ल जादा करके पुजारी भगत ल छोड़ के दूसर कोनो नइ देखंय अइसन मानता हे। तेकर सेती आधा रात के बाद जोत बिसरजन करथें।
पहिली घी के जोत जलावंय। घी ह मिलावटी होइस त कम होगे। अब तेल जोत कलस सबे डहर जलाथें। फेर, जोत कलस बइठाय बर सहयोग रासि महंगई के सेती बाढ़ गे हे। धरम अउ आस्था के काम म धन सकेले, सुवारथ साधे के ढकोसला नइ होय बर चाही। पबरित सुद्ध मन से धारमिक अउ सामाजिक बिकास बर, जन-जन के भलई बर मंगल जोत जलाय बर चाही। तभे परयावरन सुधार के संग जनसेवा के भाव जागही। जोत जलाय ले परयावरन ह सुद्ध होथे।
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