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महतारी सत्ता के चिन्हारी आय गउ पलई ह

locationरायपुरPublished: May 28, 2018 06:45:55 pm

Submitted by:

Gulal Verma

संस्करीति

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महतारी सत्ता के चिन्हारी आय गउ पलई ह

गउ पालन संस्करीति ह छत्तीसगढ़ के जनजीवन के सुग्घर झांकी देखाथे। गांव के किसान खेती-किसानी के संग गउ पालथें। दूध-दही के बेपार करथें। गांव के जिनगी अउ लोक परंपरामन के मुताबिक हरदफे जानवरमन के देख-रेख करे म आगू रहिथें। तेकर सेती गाय, बइला, भइंस-भइंसा अउ बछिया-बछरू खेती के सबो काम म वोकर संग देथे। फेर, आजकाल मसीन आय ले पसुधन के पूछपरख नइ होवत हे। गाय ल महतारी के रूप म पूजा करथें। महाभारत म बताय गे हे-
‘मातर: सर्वभूतानां गाव: सर्वमुख संप्रदायम्।
वृद्धिनाकांक्षता नित्यं गाव: कार्य प्रदक्षिणा।Ó
छत्तीसगढ़ी लोक संस्करीति म गायमन के सक्ति ल जनवाय खातिर गाय के कसम खाय जाथे। गाय ल पबरित मानके गोवरधन पूजा के दिन गोबर के तिलक लगाय के परंपरा हावय। फेर जिहां महतारी सक्ति के पूजा होथे, वोला मातर घलो कहिथें। मातर के अवसर म चारझिन महतारीमन के पूजा होथे- पहिली धरती माता, जन्मदेवई महतारी, गउमाता अउ जगमाता (लोकमाता)। हमर लोक संस्करीति म गउमाता के दुहाई देय के कतकोन परमान मिलथे।
‘एक कांछ काछौं रे भाई, दूसर दिए लमाई। तीसर कांछ कांछौं रे, मोर सब माता के दुहाई।Ó
उमर के परख
गाय-गरुवा के उमर के सही-सही पता लगाय खातिर खाल्हे के दांतमन ल देखे जाथे। तीन बछर के गाय-गरुवा ह बछिया या बछड़ा कहाथे। ऐकर दांत नइ होवय तेकर सेती उदंत कहाथे। दू दांत नजर आथे त दू-दत्ता कहाथे। चार बछर बाद चारदत्ता कहाथे। पांच बछर के उमर म छह दांत दिखई देय बर लगथे। जब आठ दांत निकल जथे त वोला जवान होगे समझथें। छत्तीसगढ़ी म ऐला ‘पुरोÓ डरिस कहिथें। बछिया के गाय बनत ले वोहा पीला, माई, बुडग़ी जइसे कतकोन नांव ले पुकारे जाथे।
गायमन के नांव धरई
गाय के रंग-रूप के मुताबिक घर वालेमन पियार-दुलार से नांव धर देथें। जइसे- धंवरी गाय, पिंवरी गाय, कबरी गाय, गजरी गाय, कारी गाय, लाली गाय।
‘धंवरी करथे कोटना ला खाली।
सियान कहय बढिय़ा हे लाली।Ó
अलग-अलग संस्कार अउ समे के मुताबिक घलो अलग-अलग नांव धर देथें। जइसे- दहेज म दे गाय ल दहेजी गाय, दान के गाय ल दानी गाय, दूध देवई गाय ल दूहानू गाय, घरेच म रहइया गाय ल घोरदही गाय, एक बछर म बछरू जनमइया गाय ल बरग-बियानी गाय, डेढ़ बछर म जनम देवइया गाय ल डेढ़ोली गाय। गोरोचनधारी गाय ह पियास-घाम लागथे त पेटभर पानी म जाके खड़े हो जथे अउ पानी पीथे। वोहा जूठा नइ खावय। वोहा दूसर गायमन ले कमती दूध देथे। फेर बहुचेत सुभ फलदायी होथे। भूसनलाल परगनिया के रचित गोरामायन म लिखाय हे-
‘गोरोचन ग्रह दोष हटाता, और धनवृद्धि कराता। वशीकरण का यह उत्तम माध्यम, बतलाते हैं सारे ज्ञाता।Ó
बिरहद पारासर इसमरिति म लिखा हे के गोमाता के अंग-अंग म देवतामन बसथें। ऐकर चारों पांव म चार वेद निवास करथें। छत्तीसगढ़ी लोक संस्करीति म पहिली पइत जनम देवइया गाय ल ‘पहली बेंवठÓ कहे जाथे। अउ जउन बंध्या गाय होथे वोला बंदेली या बकठी गाय कहे जाथे। जब गाय जनम देथे त कुछ दिन दूध दूहे ले पेउंस दूध मिलथे। दूध के पेउंस बनाकर आस-परोस म बांटे के परंपरा घलो हे। वोकर बाद म दू-तीन खुजरी पकाय जाथे। पहिली जेन दाऊ-गौंटिया घर चालीस-पचास गाय-गरुवा रहय तेन ल ‘पहाट या ‘गोहड़ीÓ कहे जाय। पहाट के चरवाहा ल पहाटिया कहंय। जिहां गाय-गरुवा सुरताथें वो जगा ल गोडऱा (गोररा) कहिथें।
कहिथें के जउन मनखे गाय के खुर ले खुंदाय धुररा ल माथा म तिलक लगाथे, वोला तीरथयात्रा के फल मिलथे। गरंथमन म लिखाय हे के जउन गाय ल सताथे, 21 पीढ़ीमन नरक म परथे। कहिथें के जेवन के पहिली कौंरा गउमाता ल खवाय बर चाही। ऐकर से जिनगी धन्य होथे। दूध पियावत गाय के दरस ल सुभ फलदायक कहे जाथे। गायमन ल दुलार करई, खजवई, नहवई ह गउ दान जइसे पुन देथे। गउदान, कीरतन से कुल के उद्धार होथे। महाभारत म बताय गे हे-
‘गाव: स्र्वस्व सोपानं, गाव: स्वर्गअपि पूजिता:, गाव: कामदुही देव्यो, नान्य कचित् परं स्मृतमं।Ó
डेरी धंधा म पूंजीपतिमन के कब्जा हे। गांववालेमन गाय-गरुवा नइ पाले सकत हें। छत्तीसगढ़ म गउपालन ह कोनो धंधा नोहय, बल्कि पसु रूप म लछमी परेम के नांव ए। फेर, आजकाल सब बदल गे हे। गउ ह सुख-समरिद्धि के दाता ए। गोमूत्र ह कतकोन रोग-राई, बीमारी ल बने करथे। गोबर ले खातू बनाय जाथे। गोरब गैस संयंत्र चलत हे। आजकाल के लोगनमन गउमाता ल बोझा समझे बर धर लेहें। गांवमन म चरागान नइये। गाय-गरुवा के बेचई अउ हतिया ह बड़ चिंता के बात ए। गउमाता के सुरक्छा अउ सेवा-जतन उप्पर समाज अउ सरकार दूूनों ल धियान देय बर चाही।

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