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छत्तीसगढ़ के लोक जीवन म चित्रकला

locationरायपुरPublished: Jun 21, 2018 08:04:10 pm

Submitted by:

Gulal Verma

लोक संस्करीति

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छत्तीसगढ़ के लोक जीवन म चित्रकला

छत्तीसगढ़ के लोक जीवन म चित्रकला के बड़ महत्तम हे। मनखे अपन मन के भाव ल पढ, लिख, बोल अउ चित्र के रूप म खिंच के उतारथे। चित्र बर कोनो भाखा के जरूरत नइ रहय। वो तो चुप होक सब ल कहि देथे। जेमा मनखे के परेमत पीरा, उछाह, संदेस, मनौतु, टोटका, सजावट संग आने आने भाव छिपे रहिथे।
आने- आने रंग ले बने ये चित्रमन हमर मन के भाव ल उघारे बर कुची आय। आकर बिना हमर लोक जीवन के कल्पना नइ करय जा सकय। आदिम जुग म पथरा ल खोद के समे अउ जग के संदेस ल पिरोय गे हे। सिंघनपुर, काबरा, जोगीमारा, चितवा डोंगरी म ऐकर परमान हवय। कला ह अविकसित होय के बाद घला एकठन ठीहा बन गे।
राजा परजा के बीच भाव, सन्देस, देव-धामी, काम कला, टोना-टोटका जइसन कतको चित्रमन मनखे के गुफा ले महल के सभ्यता म आय के परमान आय। जेमा उंकर जिनगी के भाव के संगे-संग बिकास के कहिनी हवय।
छत्तीसगढ़ के लोक जीवन म बनाय के ठउर के हिसाब ले तीन भाग म बांट सकथन। परदा (दीवार) न बने चित्र, भुइंया अउ देह म बने चित्र।
डोंगरी घाटी म बने चित्र, रतनपुर, राजिम, भोरमदेव अउ कतनो मंदिर म खुदाय चित्र, आदिवासीमन के घर म सजे बार खिंचे आड़ा-तिरछा लकीर, पेड, धरती, सूरज, चन्दा संख, चकर, नंदी, गरुड़, काम कला के चाप जेमा परमुख हे। देवारी म राउतमन के खिंचे हाथा, टोटका बर गोबर के खिंचे पुतरामन घला ैऐमा सामिल हे। भुइंया म चित्रकला के कतको रूप हवय। जेमा पितर पाख, बिहाव, सवनाही, जनम-मरन म आदि खिंचे खड़ी लकीर चौक पुरई, रंगोली, गोवरधन पूजा के खुर बहार परमुख हवय।
चित्र बनाय बर घेरुल, पडऱी पिवरी छुही, करिया माटी, कोइला, राख, गोबर, पाना-पतई, फूल के रंग ल परयोग करथे। मनखे समाज सुंदराई बार घला चित्र के परयोग करथें। माहुर, मेहंदी, काजर के संगे-संग लोकजीवन म गोदना के घला बड़ महत्तम हे। वोला देह के संग जवइया सिंगार मने जाथे। सुआरी, दाई-बहिनीमन के देह म गोदना के परथा हवय।
गोदना माने सुजी के नोंक म काजर गाड़ के चितकारी करई। ऐमा देवार जात के माइलोगिनमन कुसल रहिन ए चित्र कला म। आज टेटू ह ऐकर जगा लेवत हे।
प्रो. के सरस्वती कहिथे -लोककला जनसमुदाय के जिनगी म जब्बर कला ए। जोकर जर भुइंया म मजबूत हे। कतको तकलीफ, दुख-पीरा सहे अउ बदलाव के बाद घलो हमर लोककला अंगद के पांव के जमे हे। बाढ़त अउ सुग्घर होवत हे। नवापन आवत हे, फेर नंदावत नइये। गांव ह मेड़वार बनके ऐकर सिरजन म जुड़े हवय।
लोकचित्र बनाय बर आदिम काल ह सूरूज बनके रद्दा देखाथे। ऐमा परेम के भाव हवय। मनखे के धरती के संग जीव-जिनावर बर परेम के संगे-संग दया, साहस, धरम के मरम घलो हवय। ऐहा मन के भाव का उघार के कोदा ल घला बोलइया़ बना देथे। ऐहा सिरिप हमर गांव-गुड़ी तक के नोहय, बल्कि जम्मो मनखे के संस्करीति के मरजाद आय।

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