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आस अउ बिसवास के महीना ‘असाढ़

locationरायपुरPublished: Jul 18, 2018 09:38:44 pm

Submitted by:

Gulal Verma

संस्करीति

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आस अउ बिसवास के महीना ‘असाढ़

असाढ़ महीना आस, बिसवास अउ उम्मीद के संदेस लेके आथे। पानी बरसे ले मन झूमे-नाचे लगथे। तभे तो कवि नारायन लाल परमार ह कहे हे-
‘अबक-तबक लागय दुनिया
तरसय गरू-गाय रे
अब तो पावन जुड़ भइगे
जय-जय होय असाढ़ तोर, नइते हाय-हाय रे।Ó
सहीच म बार-बार बादर के गरजई अउ बिजली के कड़कई ल देख-सुन के धुक-धुकी बाढ़ जथे। संका होय बर लगथे के कहुं जादा पानी झन गिर जाय। असाढ़ म पानी बरसे ले किसान के भाग जाग जथे। भुइंया ह हरियर-हरियर हो जथे अउ किसान खेती-किसानी के काम म भिड़ जथे।
‘नागर-बइला संग धरके,
निकले धरती पुजारी साज के।Ó
असाढ़ लगते कतका पानी बरसही तेन ल लेके गोठ-बात होय लगथे। लोगनमन अपन-अपन अनुमान लगाथें। किसान ह असाढ़ म बोआई करे म पिछड़ गे, समझो वोहा चूक गे। फसल कमती होही। तभे तो कहिथें- ‘डार के चूके बेंदरा, असाढ़ के चूके किसान।Ó
धान बोय के समे
वइसे तो अकती लगिन ल धान बोनी के सुभ मुहरत मानथें। गांव के माता देवालय म भोग लगथे। धान ल ‘बोनीÓ बर सुरछित रखथें। राम-नाम बिचार के अउ ‘पागÓ देखके धान बोनी के मुहरत कर देथें।
समे बदलगे, फेर हमर छत्तीसगढ़ म माइलोगिनमन खांध म खांद जोर के पुरुसमन के संग खेत-खार के काम-बुता म सहयोग करथें। माइलोगिनमन बोझा बोहथें। माइलोगिनमन बहुचेत मेहनत करथें। तभो ले वोमन ल कुछु नइ मिलय।
‘नर-नारी कमाथैं गा
नांगर जोते ला जाथैं गा।
मुंधियार ले आथैं गा
खोंची भर ला पाथैं गा।
हाना उपर बिसवास
कमजोर लोगन ल ‘दुब्बर ला दू असाढ़Ó कहिके चिढ़ाथें। खेती-किसानी के हाना ह घर ले सुरू होके खेत-खार तक पहुंच जथे। एक कोती किसान के मानना हावय के किसमतवाला के घर भूत ह नांगर जोतथे। फेर, अइसन नइ होवय। किसानमन ल अड़बड़ मेहनत करे पर परथे।
‘करम के नांगर, ला भूत जोतय।
सरी दिन कमा-कमा के मरथन
देहें ला टोर-टोर रहिथन।Ó
गलत या फेर असंभव काम बर कहिथें-
‘ओरवाती के पानी,
बरेंडी म नइ चढय़।Ó
जादा फसल खातिर बरसा गीत गाथें-
‘आये-आये बदरा, पाके बुंदलिया,
जुड़ पावय धरती,
हरियर दिखैं चारों कोती।
बारिस के अनुमान
लोकजीवन म मउसम ल परखे के ताकत हे। किसान अनुमान लगाथे के चिरई धुररा म नहाथे त बढिय़ा बारिस होथे। लाइन से चिरईमन उड़थें त समझव पानी गिरइया हे। मस्त होके मयूर नाचथे त बारिस होय के उम्मीद होथे।
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