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ढेकी नदावत हे

locationरायपुरPublished: Dec 05, 2018 08:30:47 pm

Submitted by:

Gulal Verma

छत्तीसगढ़ के धनकुट्टी

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ढेकी नदावत हे

ढेकी छत्तीसगढ़ के धनकुट्टी मसीन आय। ढेकी के नांव लेवत वोकर फोटू आंखी म झूले ल धर लेथे। पुरखा के हमर निसानी आय। फेर, आज समे के संग नदावत हे। कहुं-कहुं एकाध घर देखे ल मिलथे।
पहली जमाना म साधन नइ रहिस त ऐकरे उपयोग करत रहिस। लइकामन ल पूछबे त ढेकी ल नइ जानंय। ढेकी ह छत्तीसगढ़ के धान कुटे के जिनिस आय। ऐमा पइसा के जरूरत नइ लगय। मनखे के जांगर अउ समे के जरूरत परथे।
ढेकी ल बनाय के सामान
सबले पहली एकठन मोटा डाड़ी जेला बढ़ई ह छोल-चाच के लमसोर करथे। आगू ह मोठहा अउ पाछू ह पातर रहिथे। पाछू भाग ल छेदा करथे। जेमा थरा लगथे। ऐकर बाद एकठन मुसरी बनाय जाथे जेन ह लकड़ी के गोल रथे अउ लोहा के चूड़ी पहिनाथे। पखना के बाहना बनाय जाथे। बाहना ल गड्डा करके गोल रखे जाथे। दूठिन धुरखिली लगथे अउ एकठन थरा जोन डाड़ी के पाछू कुती लगथे। दूनों धुरखिली म थरा मड़थे अउ डाड़ी बीच म होथे। डाड़ी के पाछू म गड्डा रखथे ताकि ढेकी ल ऊपर-नीचे कर सकय। डाड़ी, मुसरी, थरा, बाहना, धुरा मिलके ढेकी बनथे।
ढेकी ल चलाय बर दूझन मनखे लगथे। एकझन कुटइया अउ एकझन खोवइया। ढेकी म धान, दार अउ कतकोन जिनिस ल कुटथें। छरे के तको काम आथे। ढेकी म मेहनत लगथे, फेर बिजली अउ पइसा के बचत करे जा सकत हे। जब भी खाली समे हे ढेकी के उपयोग कर सकत हें। ढेकी के कुटे चाउर म स्वाद अबड़ रथे। कनकी तको नइ निकलय। पहली आधुनिक मसीन नइ आय रहय त गांव-गांव म घरोघर ढेकी रखय। भुकरुस- भुकरुस बजथे त ढेकी के राग बड़ निक लागथे।
जब ढेकी म धान कूटंय त ननंद- भौजाई के अब्बड़ ठठ्ठा- दिल्लगी होय। डोकरी दाईमन रंग-रंग के हाना, किसम- किसम के गोठ बताय। समे के पता तको नइ चलय कब छीन बेरा होगे अउ धान तको कुटागे। अब तो ककरो मेर बात करे के समे नइये। पहली के मन बुता-काम करत-करत कतका जिनगी के मजा लेवंय। आज हमर ढेकी का सुरता बनके रहिगे हे!
पुरखा के चिन्हा हमर, रखबो संगी जतन।
जुग-जुग ले सुरता रहय, नइ देवन ग मिटन।
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