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लीम तरी के फइसला

locationरायपुरPublished: Jun 12, 2018 08:20:40 pm

Submitted by:

Gulal Verma

कहिनी

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लीम तरी के फइसला

क तका जुन्ना लीम के पेड़ हे पररीपाली के। जेकर तरी म सैकड़ों बछर ले उहां के कतकोन पीढ़ी के लइकामन खेलत-कूदत हावंय। गांव के कछु मामला के पंचायती करे खातिर पंच-सरपंचमन घलो जम्मो लीम के तरी म जाके बइठथें अउ अपन फइसला ल नियायपूरवक सुनाथें। वोकर छंइहा कस ठंडक गांवभर म कोनो पेड़ के तरी ह नइ लागय।
परमिला के उमर ओनाइस बछर ले पार करत रहय। उलखरहीन अपन बेटी परमिला खातिर सुग्घर बर के तलास म रहय। परमिला के ददा सुखी तो अतका सोझवा रहय कि जम्मों गांवभर म वोहा जुर-मिल के रहय। कोनो कछू कतीन त वोकर बर उहिच ह सिरतो हो जाय। आज के कलजुग के समे सुखी कस बहुत कम मनखे रहिथें। जेमन ल बजा दे त बजा दे अउ थिरका दे त थिरका दे। ऐकर मतलब वोकर आदत ह नगंतेच सीधा-साधा रहय अउ हपकन काकरो उप्पर भरोसा घलो कर लय। सही-गलत के वोहा बरोबर चिन्हारी नइ कर सकय। जेकर सेती उलखरहीन वोला काकरो मेर अउ काकरो घर जाके बइठे-उठे बर बरजत रहय। कभु-कभु सुखी ल उलखरहीन उप्पर गुस्सा घलो आवय। फेर, वोहा अपन सोज सुभा के सेती वोला कछू जवाब नइ दय। बेटी के गवन-पठोनी के जिम्मा ह उलखरहीन उप्पर जादा रहय।
उलखरहीन के रउती-पउती म घर-दुआर ह घलो चलय। कोन जिनीस घर म चाही अउ कोन जिनीस घर बर नइ चाही वो जम्मो के तकियाद घला उलखरहीनेच करय। फेर, कमाय-कोड़े बर सुखी ह वोकर ले घलो बरकस रहय। घर के खेती-किसानी से लेके वोहा साग-भाजी तक जगावय अउ टेड़ा-टेर के पलोवय। वोकरे मिहनत मजूरी से घर ह चलत रहय। उलखरहीन तो सुखी के कमई से उपजाय भाजी-पाला अउ साग-सबजी ल बेचय। सुखी के हिसाब-किताब करई ह गड़बड़ा जावय वोकरे सेती उलखरहीन वोला धनधा-पानी से धूरिहा राखय। पढ़-लिख के परमिला घर आतीस त उहू साग-भाजी बेचे म अपन महतारी के मदद करय।
मुहंटा म ही वोमन साग-भाजी के ठेला ल लगावंय अउ गांवभर के जम्मों मनखेमन ओमेर साग लेहे बर आवंय। ताजा-ताजा अउ घर के टोरे रहय साग-भाजीमन वोकरे सेतीक थोरकुन जादा बेचाय। जेकर से आमदनी घलो बढिय़ा हो जावय। परमिला के पढ़ई-लिखई के खरचा के संग म घर के रासन-पानी बर घलो वोकरेच कमई के पइसा ह हो जावय। देखते-देखत परमिला के उमर बीस बछर के हो गे। उहू समे वोकर दाई के तबीयत ह बिगड़ गे। जेकर से परमिला ल पढ़ई ल छोड़ा दे गीस।
परमिला ह साग-भाजी के ठेला ल समहाले लगिस। परमिला इस्कूल के समे ले मास्टर रजत ल पसंद करत रहय, फेर अपन मन के गोठ ल कोनो ल नइ बताय सकत रहय। रजत दूसर गांव लेे इस्कूल म पढ़ाय बर आय रहय। उहां किराया म रहत सात बछर हो गे रहय। जात-पात ह वोकर थोरकन छोटे रहय। फेर, चाल-चलन ह बड़ सुग्घर रहय। एक दिन अचानक सब्जी बिसाय बर रजत परमिला के ठेला म हबर जाथे। परमिला वोला देख के सांप सुंघे कस टकटकी लगाय गुमसुम वोकरेच अंगत ल बिना कछु गोठियाय देखथ रहिथे। मास्टर वोकर हाल ल देख के खांसे लागथे। वोतका म परमिला के पलक ह झपके लागथे अउ वोहा सरमात अपन आंखी ल झुकाय लागथे। अपन मन म कई बछर से छुपाय गोठ ल रजत मास्टर ल वोहा सकुचात बताय लागथे- मंय तोला लइकई से ही बड़ मन करथंव कहिथे। सुन के मास्टर हांस के ओमेर ले चल देथे। घर जाके वोकर से बिहाव करे खातिर सनदेसा भेजव देथे। जेला उलखरहीन ह सुन के ठाड़ करिया जाथे। काबर रजत ह छोटे कुलखुंट अउ नीचे जात के रहिथे। परमिलामन अमीर नइ रहंय, फेर वोमन बड़का कुलखुंट के रहंय। वोकरे सेती वोकर अतेक हिम्मत हो गे कि मोर बेटी बर रिस्ता भेजे हावय कहिके बिपतियाय लागथे। सुखी बर तो जम्मो ह काये, न का वोला कमाय अउ अपन पेट भरे से ही मतलब रहिथे।
परमिला रजत ल लइकइ ले ही पसंद करत रहय त वोहा रिसता के बारे म सुनके मने-मन हांसत रहय, फेर अपन दाई ल कछु नइ कहे सकत रहय। उलखरहीन सुखी ले कहिथे- ऐहा नानमून गोठ नइ हवय। ऐकर सिकायत ल गांव के पंच-सरपंच म करे बर लागही। सुखी अउ परमिला दूनों उलखरहीन ल समझाय लागथें। पंचायत म गोठ ह जाही त हमन के बदनामी होही। तभो ले वोहा नइ मानंय। सरपंच मेर फरियाद ले के चल देथे। सरपंच रेसम पढ़ेे-लिखे आज के सोच-बिचार के रथे। वोहा उलखरहीन के फरियाद ल सुन के बिहान दिन संझा लीम तरी म पंचायती बइठाथे। मास्टर अउ परमिला दूनों पछ के मनखेमन ल पंचायत म बुलवाथे।
काय होही, कइसे होही सोचत उलखरहीन हड़बड़ावत रहिथे। तभो सरपंच के बलावा म माई-पिला लीम तरी म जाथें। रजत मास्टर घलो अपन दाई-ददा ल बलवा के संग म लेके ओमेर आथे। दूनों पक्छ से पंच-सरपंचमन पूछताछ करिथें। पता चलथे कि रजत अउ परमिला दूनों एक-दूसर ल पसंद करथें अउ दूनों झन बालिग घलो हो चुके हावंय। वोमन अपन जिनगी के फइसला ल खुद कर सकत हावंय। परमिला ल सरपंच ह पूछथे त वोहा रजत से ही बिहाव करहूं कहिथे। ओती रजत घलो परमिला से बिहाव करे बर तियार रहिथे। वो करा के हाल ल देख के उलखरहीन चिरचिरा जाथे। रजत ल छोट जात के हावय अउ मोर बेटी से वोकर कछु मेल नइये कहिथे।
वोकर गोठ ल सुनके सरपंच रेसम वोला समझाथे- देख दाई तंय-मंय अउ जम्मों एके भगवान के रचना हावन। ऐमा जाति-पाति जम्मो ह मनखेमन के बनाय हावय। भगवान ह उंचा-नीचा नइ बनाय हे। जे लहू रजत के सरीर म उदड़त हवय उही तोर- मोर म घलो दउड़त हवय। जेकर रंग ह जम्मो के समान रहिथे त कइसे कोनो उंचा अउ कोनो नीचा होइस। जम्मों बरोबर हावंय। सरपंच के गोठ ल सुनके उलखरहीन समझ जाथे। अपन गलती के पछतावा करथे। वोहा पंच-सरपंच से हाथ जोर के माफी मांगथे। रजत अउ परमिला के बिहाव करवाय खातिर तियार हो जाथे।
रजत के दाई-ददा घलो परमिला ल बहू बनाय बर तियार हो जाथें। लीम तरी के फइसला ले दूनों परिवार ह एक हो जाथे। चार दिन के गे ले रजत अउ परमिला के बिहाव के बाजा बाजे लागथे। वोमन अपन गीरहस्त जीवन ल खुसी से सुरुआत करथें।
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