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डोकरी दाई तर गे

locationरायपुरPublished: Feb 19, 2019 07:34:50 pm

Submitted by:

Gulal Verma

नानकीन किस्सा

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डोकरी दाई तर गे

मास्टर ह इस्कूल ले आ के दुवारी म बइठे चाय पियत रहाय। अतके म पंचू ह हफरत-हफतर अइस। मास्टर ह वोकर से पूछिस, का बात ए? पंचू कहिस- मास्टरजी राधे घर के डोकरी दाई सरग सिधार गे। काठी नेवता दे बर आय हंव। मासटर चाय के कप ल मढ़ावत कहिस- जिनगी के मेला दू चार दिन के हे। कब काकर बेरा आही कोन जानय रे भाई।् पंचू कहिस -बने होइस मास्टरजी। मास्टर अकबका के कहिस -कइसे गोठियाथस रे पंचू। पंचू कहिस- का बतावंव मासटर जी। दू बछर होगे रिहिस डोकरी दाई के आंखी नइ दिखय। जइसन मिलय तइसन खाय। बढ़ दुख भोगे रिहिस। भूख लागय अउ कोनो भात-पेज नइ दे त गोटी-माटी ल खावय। कभु-कभु वोकर थारी के भात ल कुकरीमन घलो खा दंय। माछीमन भनन -भनन करत बइठय, तभो ले खावय। पियास म कभु-कभु कुकुर-माकर के चाटे पानी ल पिवय। डोकरी दाई के जिनगी नरक होगे रिहिस। वोकर बहू-बेटामन बर गरु होगे रिहिस। फेर आज डोकरी दाई तर गे।
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