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बासी के अब्बड़ महत्ता हे

locationरायपुरPublished: Dec 04, 2018 07:23:46 pm

Submitted by:

Gulal Verma

हमर खान-पान

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बासी के अब्बड़ महत्ता हे

ना नपन म बिहनिया तरिया ले नहाके आंव तहां ले जोर से चिल्ला के दाई कना बासी मांगंव। दाई ह तुरंतेच कटोराभर के बासी ल दय। अंगना के रंधनी खोली के ओइरछा तीर पीढ़ा म बइठ जंव। आगू म बासी के कटोरा अउ कटोरी म कभु घुघरी, कभु कढ़ी, कभु चेंच भाजी, कभु कांदा भाजी, कभु जिमीं कांदा, कभु मखना अउ कभु कोचई के साग। कभु-कभु रातकुन के बांचे साग ल घलो बासी संग म दाई ह दे दय। दाई ह चानी गोंदली ल बासी ल बोर के दय, सइघो अथान, कुर संग। हमर घर मा बासी खाय के सब्बो झन के अलगेच-अलगेच कटोरा रहाय। बाबू अउ दाई बर बड़ेचजान, नान्हें भाई बर नानचुक टठिया। ए कटोरा ह स्टील नइते जरमन के बने रहाय। दाई ह बिहनिया के बासी बर रातकुन चाउर जादा बना देत रिहिस। बासी बनाय बर हे कहिके चाउर ल थोरकिन टांठ पसाय। सब्बोझन ह रातकिन के जेवन कर डरे तब दाई ह बांचे भात ल पानी अउ पसिया म फि जो देय। बासी बर करइया हंडिय़ा ल बउरे जाय। इही हंडिय़ा मा फि जोय ले बासी के सुवाद ह बने लागे।
बासी खाय के चालू करंव अतकी म दाई ह आगी म सेकाय बिजौरी ल लान देत रिहिस। बिजौरी संग म बासी के सुवाद ह बाढ़ जाय। कभु-कभु दाई ह आधा बासी ल खाय रहांव अउ अंगाकर रोटी घलोलान देय। ए अंगाकर रोटी बासी अउ चाउर पिसान ल सान के तावा मसेंक के बनाय जाए। कभु-कभु दाई ह बासी म दही नइते मही ल डार देय। अइसन करे ले बासी के सुवाद ह दुगुना हो जाय। जबले होस संभाले हंव तब ले बासी खात हंव।
नानचुक रहेंव त दाई अउ मेहा एके टठिया म बासी ल खान। दाई ह पसिया ल पीये लागे, त मेहा टुकुर-टुकुर वोला देखंव, तहान महूं ह पसिया ल पियंव। कभु-कभु अथान ल जादा खा दंव, तहान चुचुर लागे। सू-सू करे बर चालू कर दंव। तहान दाई ह कहाय ले पसिया ल पी। आजो मोला सुरता हावे कि दाई ह बिक्कट मया ले मोला बासी खवाय।
दाई ह घर के बुता खतम कर डरे अउ बासी खा ले, वोकर बाद बासी धरे के अकोड़ा वाले जरमन के डब्बा म बासी अउ साग धर के ददा बर खेत जान। घर कोती आवत-आवत मेहा बंबूर कांटा अउ परसा पान ले फिलफिली बनांव। जेहा हवा आए त बिक्कट तेजी ले घूमें। घर म कभु-कभु मेहा मलिया म कागज चिपका के बाजा बनांव। बासी के सिथ्था ले कागज ल चिपकांव। बाजा ह बने छुनुक-छुनुक बाजे। इही पायके बाजा के तरी म बासी के सिथ्था ल डार दंव। जब बासी के सिथ्था ह सूखा जाए अउ कागज ह चिपक के सूखा जाए त खरेरा बाहरी नइते सरसो के काड़ी ले बाजा ल बजांव।
जब बड़े होगेन त ए गोठ जनाइस कि बासी ह बिक्कट पौस्टक जेवन हरे। वोमां पानी के मातरा बने रहिथे। पेट बर अउ मांसपेसी बर घलो बने रहिथे बासी। हमर छत्तीसगढ़ के पहिचान हरे बासी। इही बासी ल खा के हमूमन बाढ़ेन। हमर राज के बड़ेचजान महापुरुसमन घलो बासी खांय हे। फेर, दुख के बात ए के आज हमर खान-पान के संस्करीति ले बासी ह नदावत हे।

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